Tuesday, July 1, 2025
Tuesday, July 1, 2025




Basic Horizontal Scrolling



पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

होमविचारसिंधिया ही नहीं कई और भी थे अंग्रेजों के वफादार

इधर बीच

ग्राउंड रिपोर्ट

सिंधिया ही नहीं कई और भी थे अंग्रेजों के वफादार

जब सोवियत रूस में क्रांति हो गई तो व्लादिमीर लेनिन ने पूरे राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह कहा कि ‘क्रांति के पूर्व पूरे देश के नागरिकों की क्या स्थिति थी यह मेरी चिंता का विषय नहीं है। परंतु अब क्रांति के बाद यदि कोई नागरिक देश के साथ गद्दारी करेगा तो यह किसी भी […]

जब सोवियत रूस में क्रांति हो गई तो व्लादिमीर लेनिन ने पूरे राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह कहा कि ‘क्रांति के पूर्व पूरे देश के नागरिकों की क्या स्थिति थी यह मेरी चिंता का विषय नहीं है। परंतु अब क्रांति के बाद यदि कोई नागरिक देश के साथ गद्दारी करेगा तो यह किसी भी हालत में सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने विशेषकर अधिकारियों व कर्मचारियों से सौ प्रतिशत वफादारी की अपेक्षा की।’

इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन समाप्त होने के बाद वहां के सर्वोच्च नेता अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) के नेल्सन मंडेला ने अपने देश के सभी गोरे नागरिकों को माफ कर दिया। जिस दिन दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति के रूप में उनकी शपथ हो रही थी तो मंडेला ने दुनिया भर के राष्ट्रपतियोंप्रधानमंत्रियों आदि की उपस्थिति में कहा कि अब मैं आपका परिचय मेरे दो अत्यंत महत्वपूर्ण मेहमानों से करवाना चाहता हूं। इसके बाद मंच पर दो गोरे आ गए। उनका परिचय देते हुए मंडेला ने कहा कि मेरे 27 वर्ष के कारावास के दौरान मेरे ऊपर सबसे ज्यादा ज्यादतियां इन दोनों ने कीं थीं। पर मैं आज इन्हें क्षमा प्रदान कर रहा हूं और इनके माध्यम से देश के उन सभी गोरों को क्षमा प्रदान कर रहा हूं जिन्होंने समय-समय पर दक्षिण अफ्रीका के मूल निवासियों पर तरह-तरह के जुल्म किए थे।

यह बात हमारे देश पर भी लागू होती है। हमारे देश पर लंबे समय तक अंग्रेजों ने राज किया। उस दौरान अनेक लोगों ने अंग्रेजों की सेवा की। लाखों लोगों ने अंग्रेजों की नौकरी की। हजारों लोग सेना और पुलिस में भर्ती हुए। अंग्रेजों की पुलिस ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर गोलियां चलाईं, जेल में उन्हें नाना प्रकार की यातनाएं दीं। आज़ादी के बाद इन सभी कर्मियों की सेवाएं यथावत रखी गईं। यहां तक कि उच्चतम पदों पर पदस्थ आईसीएस अफसर सभी राज्यों के मुख्य सचिव सहित ज्यादातर महत्वपूर्ण पदों पर बने रहे। हमारे प्रदेश के मुख्य सचिव लगातार आईएएस कैडर के रहे। सबने काफी क्षमता और योग्यता से सेवाएं दीं। इनमें से कई की सेवाओं को आज भी याद किया जाता है। आरसीवीपी नरोन्हा ऐसे ही अधिकारियों में से थे जिनके प्रेरणादायी किस्से आज भी लोगों की जुबान पर हैं।

यह भी पढ़ें…

झूठ का पुलिंदा है वाय आई किल्ड गांधी

अंग्रेजों के शासन के दौरान देश के करीब एक तिहाई हिस्से पर राजा-रजवाड़ों का राज रहा। अंग्रेजों ने इन्हें अपने क्षेत्र में शासन करने की पूर्ण स्वतंत्रता दी। इन्हें अपनी सेना और पुलिस रखने की इजाजत दी। आजादी के बाद एक-दो को छोड़कर सभी ने आजाद भारत की सार्वभौमिकता स्वीकार की। यहां तक कि राजाओं के प्रतिनिधियों ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया में भाग लिया। इनमें से बहुसंख्यक ने स्वतंत्रता आंदोलन दबाने में अंग्रेजी साम्राज्य की मदद की।

ऐसे ही रजवाड़ों में सिंधिया परिवार भी शामिल था। इसलिए अकेले उस परिवार की निंदा करना कहां तक उचित हैहांउन्हें भी यह स्वीकार करना चाहिए कि उनके पूर्वजों ने झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई के विरूद्ध अंग्रेजों की मदद की थी। परंतु ज्योंही भारत आजाद हुआ सिंधिया ने अपने साम्राज्य का विलय भारत में कर दिया और कुछ संपत्तियों को छोड़कर अपनी सारी संपत्ति भारत सरकार को सौंप दी। भारत की आजादी का उत्सव मनाने के लिए सिंधिया ने बाकायदा सभी जिलों के लिए एक निश्चित राशि मंजूर की। फिर सिंधिया परिवार देश की राजनीति में भाग लेने लगा। आजादी के बाद लगभग सभी पार्टियों ने उनकी लोकप्रियता का लाभ उठाया। यहां तक कि जनसंघ ने अपने ग्वालियर अधिवेशन के लिए माधवराव सिंधिया को स्वागताध्यक्ष बनाया। अधिवेशन में बोलते हुए अध्यक्ष अटलबिहारी वाजपेयी ने भविष्यवाणी की कि माधवराव भारत के विलियम पिट द यंगर होंगे। यंगर ब्रिटेन के ऐसे राजनीतिज्ञ थे जो मात्र 24 वर्ष की आयु में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गए थे।

यह भी पढ़ें…

राम के सहारे विध्वंसक राजनीति

सन् 1967 तक माधवराव की माता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस की सांसद रहीं। सन् 1967 में टिकट वितरण के सवाल पर उनके तत्कालीन मुख्यमंत्री डी.पी. मिश्र के साथ मतभेद हो गए और उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और कांग्रेस के विरूद्ध चुनाव लड़ा। उनके प्रभाव वाले क्षेत्र में उनके उम्मीदवार न केवल चुनाव जीते बल्कि उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानतें भी जप्त करवाईं। चुनाव के नतीजों से यह स्पष्ट हुआ कि ग्वालियर क्षेत्र में सिंधिया परिवार की कितनी जबरदस्त लोकप्रियता है।

इसी तरह जब सन् 1987 में माधवराव सिंधिया की पुत्री का विवाह हुआ तो यह आरोप लगाया गया कि विवाह की तैयारी में सरकारी साधनों का उपयोग हो रहा है। वास्तविकता जानने के लिए भोपाल से हम कुछ पत्रकार ग्वालियर गए और वहां के निवासियों से चर्चा की। लगभग सभी ने यह कहा कि यदि सरकारी साधनों का उपयोग हो रहा है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। आखिर महाराज ने अपनी पूरी संपत्ति भारत सरकार को दे दी थी इसलिए यदि उनके परिवार में हो रहे महोत्सव में सरकार मदद कर रही है तो इसपर शोरगुल मचाने का कोई औचित्य नहीं है।

वैसे यह जानने का प्रयास किया जाना चाहिए कि सिंधिया समेत अनेक राजा-महाराजा अपने-अपने इलाकों में इतने लोकप्रिय क्यों रहे?

 

गाँव के लोग
गाँव के लोग
पत्रकारिता में जनसरोकारों और सामाजिक न्याय के विज़न के साथ काम कर रही वेबसाइट। इसकी ग्राउंड रिपोर्टिंग और कहानियाँ देश की सच्ची तस्वीर दिखाती हैं। प्रतिदिन पढ़ें देश की हलचलों के बारे में । वेबसाइट को सब्सक्राइब और फॉरवर्ड करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Bollywood Lifestyle and Entertainment