लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। चुनाव 19 अप्रैल से शुरू होकर 1 जून तक चलेंगे और परिणाम 4 जून को सामने आएगा। ऐसे में पार्टियां चुनावों की तैयारियों में जोर-शोर से जुट गई हैं। लेकिन चुनाव में हर पार्टी के समक्ष कुछ न कुछ समस्याएं हैं। इस मामले में जिस पार्टी से चुनाव में बड़ा चमत्कार करने की उम्मीद की जा रही है, वह कांग्रेस कुछ ज्यादा ही समस्याग्रस्त दिख रही है। क्या है कांग्रेस की समस्या, इस सवाल से टकराते ही सबसे पहले ध्यान उसके फंड की ओर जाता है। सभी जानते हैं आयकर विभाग की सक्रियता से कांग्रेस के बैंक एकाउंट के 285 करोड़ रुपये सीज कर दिए गए हैं। इससे पार्टी आर्थिक रूप से पंगु हो गई है और चुनावी गतिविधियां चलाना मुश्किल हो गया है। कांग्रेस का बैंक एकाउंट फ्रीज़ किए जाने के बाद जो दूसरी समस्या दिखाई पड़ रही है, वह है पार्टी का लचर संगठन।
यदि संगठन के मामले में सत्ताधारी पार्टी भाजपा से कांग्रेस की तुलना की जाए तो कांग्रेस की स्थिति बेहद दयनीय लगेगी। कांग्रेस की एक बड़ी समस्या यह भी है कि जिस इंडिया गठबंधन के सहारे उसे दुनिया की सबसे शक्तिशाली पार्टी को शिकस्त देनी है, उस इंडिया गठबंधन के घटक दलों में भाजपा को सत्ता से दूर धकेलने की अपेक्षित आग का अभाव दिख रहा है। गठबंधन की क्षेत्रीय पार्टियां न तो कांग्रेस को सीट देने के प्रति उदार दिख रही हैं और न ही राहुल गांधी के उस पाँच न्याय के फ़ॉर्मूले को जोर-शोर से हवा दे रही हैं जो पूरी तरह से सामाजिक न्याय पर केंद्रित है और भाजपा को सत्ता से बेदखल करने में अहम भूमिका निभा सकता है। उस आवाज को आगे बढ़ाने में कोई दल रूचि नहीं दिखा रहा है। यही नहीं भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूँड़ की इच्छाशक्ति के जोर से जो चुनावी बॉन्ड का मुद्दा इंडिया के हाथ लगा है, उस मौके का फायदा भी यह गठबंधन नहीं उठा पा रहा है।
उस गठबंधन के साथी अरविन्द केजरीवाल की गिरफ़्तारी से मंद पड़ते जा रहे हैं। हालांकि राहुल गांधी चुनावी बॉन्ड से जरा भी ध्यान नहीं हटा रहे हैं, बावजूद इसके केजरीवाल की गिरफ़्तारी के समक्ष यह जोर नहीं पकड़ पा रहा है। तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केजरीवाल की गिरफ़्तारी से सिर्फ वह आम आदमी पार्टी लाभान्वित होती दिख रही है, जिसे ढेरों लोग भाजपा का ही एक रूप मानते हैं। इस बीच मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लेकर जो हालात पैदा किए हैं, उन्हें देखते हुए ऐसा लगता है कि अप्रतिरोध्य भाजपा के समक्ष राहुल को अकेले ही लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
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राहुल गांधी इंडिया गठबंधन के दलों के चाल-चलन से हतप्रभ हैं। अक्सर लगता है ये दल घोषित तौर पर इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद स्वेच्छा या अनिच्छापूर्वक भाजपा को लाभ पहुँचा रहे हैं। लेकिन तमाम बाधाओं के बावजूद राहुल-खड़गे को यह उम्मीद थी कि गठबंधन में शामिल सपा–राजद जैसी पार्टियां कांग्रेस के भागीदारी न्याय को मुद्दा बनाने में पर्याप्त रुचि लेंगी पर ऐसा होता नहीं दिख रहा है। तमाम समस्याओं के बीच यदि कांग्रेस के केंद्र, प्रदेश और जिला स्तर पर काबिज नेता, राहुल गांधी के भागीदारी वाले नारे ‘जितनी आबादी-उतना हक’ में विश्वास करते हुए कांग्रेस के पाँच न्याय में से भागीदारी न्याय को जनता के बीच ले जाने में रुचि लेते तो राहुल गांधी मोदी राज के अंत के लक्ष्य को पा लेते। यदि जनवरी माह से शुरू हुई चुनावी सरगर्मियों पर ध्यान दें तो साफ नजर आएगा कि कांग्रेस का केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व, जिस पर जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग का वर्चस्व है, कांग्रेस के भागीदारी न्याय को प्रचारित करने में कम रुचि ले रहा है।
इसका ताजा दृष्टांत आनंद शर्मा ने स्थापित किया है। भारत में व्याप्त भीषण आर्थिक असमानता और अवसरों के अन्यायपूर्ण बंटवारे का इलाज राहुल गांधी जाति जनगणना में देख रहे हैं। उनका मानना है कि जाति जनगणना और आर्थिक सर्वे से भारतीय समाज का एक्स-रे हो पाएगा तथा इससे मिले आंकड़ों के आधार पर ही जितनी आबादी-उतना हक की पॉलिसी बन पाएगी। इसमें कोई शक नहीं कि यह चुनाव का गेम चेंजर मुद्दा है और संख्यानुपात में हिस्सेदारी पाने की चाह में 90 प्रतिशत आबादी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को वोट करेगी। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने इस पर असहमति जताते हुए न सिर्फ राहुल गांधी को, बल्कि 90 प्रतिशत वंचित आबादी को ही विस्मित कर दिया है।
आनंद शर्मा ने कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखकर कहा है कि कांग्रेस कभी भी पहचान की ऐसी राजनीति में शामिल नहीं हुई और न ही इसका समर्थन करती है। ऐसे में इस मसले पर कांग्रेस के ऐतिहासिक दृष्टिकोण की स्थिति से पीछे हटना पार्टी के लिए चिन्ता का विषय है। शर्मा ने पूर्व पीएम इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के जात-पात विरोध का हवाला भी दिया है। जातीय जनगणना का विरोध करते हुए शर्मा ने कहा है कि बेरोजगारी से लेकर सामाजिक असमानताओं का समाधान इससे नहीं हो सकता। समझा जाता है कि आनंद शर्मा ने खड़गे के साथ ही अपना पत्र कांग्रेस कार्यसमिति के सभी सदस्यों, प्रदेश अध्यक्षों और विधायक दल के नेताओं को भी भेजा है।
इसमें उन्होनें कहा है कि बेशक कांग्रेस इंडिया के सहयोगियों के साथ विभाजनकारी एजेंडे के खिलाफ आवाज उठाते हुए बेरोजगारी, मंहगाई और बढ़ती असमानता के मुद्दे उठा रही है, मगर इसमें जाति जनगणना एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। पार्टी को क्षेत्रीय व जाति-आधारित संगठनों के अतिवादी रुख से बचना चाहिए। शर्मा के पत्र को आधार बनाकर भाजपा और उसकी समर्थक मीडिया को राहुल गांधी पर निशाना साधने का बड़ा अवसर मिल गया है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा है, ‘राहुल गांधी की अवसरवादिता और मौकापरस्ती की पोल अब कांग्रेस के नेता ही खोल रहे हैं। राहुल गांधी अपने पूर्व प्रधानमंत्रियों का अपमान कर रहे हैं, क्योंकि जाति जनगणना का पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी विरोध किया था। आनंद शर्मा ने कांग्रेस पार्टी को आईना दिखाया है और राहुल गांधी को इसका जवाब देना चाहिए।’ आनंद शर्मा के पत्र को आधार बनाकर सिर्फ भाजपा नेता ही राहुल गांधी को निशाने पर नहीं ले रहे हैं, बल्कि पूरी गोदी मीडिया ही उनके खिलाफ हमलावर हो उठी है।
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भाजपा के मुखपत्र के रूप में पहचान रखने वाले देश के सबसे बड़े राष्ट्रवादी अखबार ने अपनी संपादकीय मे लिखा है, ‘एक ऐसे समय में जबकि राहुल गांधी जातिवार जनगणना पर खूब जोर देने में लगे हैं तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने यह चिट्ठी लिखकर पार्टी को असहज करने का ही काम किया कि ऐसा किया जाना इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की विरासत का अपमान करना होगा। पूर्व केन्द्रीय मंत्री आनंद शर्मा एक समय उस असन्तुष्ट समूह के नेता थे, जिसे जी- 23 कहा जाता था। समय के साथ यह समूह बिखर गया। इसकी कोई आशा नहीं कि आनंद शर्मा की चिट्ठी के बाद कांग्रेस अपनी जाति जनगणना की मांग से पीछे हटेगी, लेकिन ऐसे प्रश्न अवश्य उठेंगे कि अभी हाल तक इससे इंकार करने वाली पार्टी यकायक इस पर इतना जोर क्यों दे रही है?’
राहुल गांधी जाति जनगणना पर क्यों इतना जोर दे रहे हैं, इस बात से आनंद शर्मा जैसे लोग अनजान नहीं होंगे। उन्हें भलीभाँति पता है कि 1990 में मण्डल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद सामाजिक न्याय की उपेक्षा के फलस्वरूप कांग्रेस मण्डल और कमंडल की राजनीति के बीच पिसकर रह गई थी और जो दलित वंचित पार्टी के आधार वोटर थे, वे दूर छिटक गए। इससे पार्टी एक तरह से वनवास में चली गई और केन्द्रीय सत्ता सपना बन गई। फरवरी 2023 में रायपुर के अपने 85वें अधिवेशन में कांग्रेस ने न सिर्फ सामाजिक न्याय का पिटारा खोला बल्कि कर्नाटक और तेलंगाना विधानसभा चुनाव को सामाजिक न्याय पर केंद्रित कर बड़ी विजय भी हासिल की। रायपुर अधिवेशन में ही कांग्रेस ने केंद्र की सत्ता में आने के बाद जाति जनगणना कराने का प्रस्ताव पेश किया और कर्नाटक तथा राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना विधानसभा चुनावों में राहुल उत्तरोत्तर इसे हवा देते गए। बाद में ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में राहुल गांधी ने ‘पाँच न्याय’ के साथ ‘जाति जनगणना’ को शिखर पर पहुँचा दिया।
इस क्रम में देखते ही देखते सामाजिक अन्याय की शिकार दलित, आदिवासी और पिछड़ों से युक्त 73 प्रतिशत आबादी न सिर्फ राहुल के समर्थन में सड़कों पर उमड़ने लगी, बल्कि विभिन्न दिशाओं से भाजपा की विदाई की घंटी भी बजने लगी। ऐसे में राहुल गांधी के जाति जनगणना के साथ पाँच न्याय ने जहां भाजपा को चुनाव जीतने के लिए अनैतिक हथकंडे अपनाने पर मजबूर कर दिया, वहीं इंडिया गठबंधन में शामिल दलों में असुरक्षा की भावना को भी पैदा कर दिया। क्योंकि राहुल गांधी के पाँच न्याय और जाति जनगणना की जोरदार हिमायत से इंडिया के सहयोगी दलों में भी असुरक्षा का भाव पैदा होने लगा, जिससे वे राहुल को पीछे धकेलने की साजिश में जुट गए। लेकिन राहुल गांधी के पाँच न्याय और जाति जनगणना से सबसे ज्यादा असुरक्षा बोध कांग्रेस पार्टी के नेता आनंद शर्मा और उनके सजातीयों में पैदा हुआ। उन्हें लगा कि सत्ता में आने के बाद जब कांग्रेस जाति जनगणना के साथ आर्थिक सर्वे कराकर शक्ति के समस्त स्रोतों आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, धार्मिक में जितनी आबादी-उतना हक की पॉलिसी लागू करेगी तो सदियों से तमाम क्षेत्रों में कायम प्रभुवर्ग का वर्चस्व ध्वस्त हो जाएगा। यह सोचकर जहां प्रभुवर्ग के कुछ लोग कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने लगे, वहीं बाकी लोग राहुल गांधी के पाँच न्याय के संदेश को जनता तक पहुंचाने में कोताही बरतने लगे। लेकिन आनंद शर्मा ने पार्टी न छोड़कर दूसरा रास्ता अपनाया और पार्टी नेतृत्व को जाति जनगणना से दूर रहने का पत्र लिख डाला।
बहरहाल, कांग्रेस नेतृत्व को आनंद शर्मा का आभारी होना चाहिए कि उन्होंने पार्टी नेतृत्व को पत्र लिखकर संगठन पर हावी प्रभुवर्ग के नेताओं के मंसूबों से आगाह कर दिया। आनंद शर्मा के पत्र के बाद राहुल गांधी को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि कांग्रेस में छाए आनंद शर्मा जाति जनगणना और पाँच न्याय से खौफ़जदा होकर, इसे फेल करने में जुट गए हैं। इसे लेकर जिस तरह 2020 में गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में कांग्रेस के असंतुष्टों का एक समूह, जिसे जी-23 का नाम दिया गया था, उभरा था, वह फिर सक्रिय हो सकता है। फिलहाल चुनाव के समय इस पर अंकुश लगाना संभव नहीं है। ऐसे में बेहतर होगा पार्टी चुनाव में टिकट देते समय इनको इनके संख्यानुपात पर सिमटाए और 90 प्रतिशत वंचित आबादी को टिकट बंटवारे में वाजिब अवसर देकर साबित करे कि सत्ता में आने पर वह हर हाल में जितनी आबादी-उतना हक पॉलिसी लागू करेगी।