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लोकसभा चुनाव : भाजपा से टिकट कटने के बाद सपा या कांग्रेस में जाएंगे वरुण गांधी ?

वरुण गांधी कोविड-19 के संकट,  तीन कृषि कानूनों, खीरी में थार से किसानों को कुचले जाने, बेरोजगारी और अग्निवीर जैसे तमाम मुद्दों पर मुखर होकर सवाल उठाते रहे हैं। 

भाजपा ने पीलीभीत लोकसभा से वरुण गांधी का टिकट काटकर इस बार उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री जितिन प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया है। जितिन प्रसाद जून 2021 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। 

पीलीभीत से उम्मीदवार बनाए जाने पर जितिन प्रसाद ने ‘एक्स’ कर प्रधानमंत्री समेत शीर्ष नेतृत्व एवं चुनाव समिति को धन्यवाद दिया। वहीं दूसरी तरफ वरुण गांधी की मां मेनका गांधी सुल्तानपुर लोकसभा से टिकट मिलने के बाद भी किसी खुशी का इजहार नहीं किया है।

राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी वरुण गांधी को अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश में जुटी है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव खुले मंच से वरुण गांधी को सपा से चुनाव लड़ने का ऑफर भी दे चुके हैं।

वहीं 26 मार्च को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने वरुण गांधी को कांग्रेस में शामिल होने का ऑफर दे दिया। अधीर रंजन चौधरी ने भाजपा पर आरोप लगाया कि भाजपा ने वरुण गांधी को इसलिए प्रत्याशी नहीं बनाया क्योंकि वे गांधी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने कहा, ‘वरुण गांधी एक कद्दावर और काबिल नेता हैं अगर वे कांग्रेस में आते हैं तो हमें बेहद खुशी होगी।’

जबकि कुछ दिन पहले ही वरुण गांधी को लेकर जब पत्रकारों ने राहुल गांधी से सवाल किया तो उन्होंने कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी। 

तमाम खबरों के बीच वरुण गांधी के निर्दलीय चुनाव लड़ने की चर्चा भी है। उनके निजी सचिव द्वारा नामांकन पत्र खरीदने की बात मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से सामने आई है। 

वरुण गांधी का टिकट कटने की मुख्य वजह उनका भाजपा में रहते हुए ही लगातार भाजपा सरकार की नीतियों एवं निर्णयों से खुले तौर पर असहमति व्यक्त करना और पार्टी लाइन से हटकर बयान देने को माना जा रहा है। 

वे कोविड-19 के संकट,  तीन कृषि कानूनों, खीरी में थार से किसानों को कुचले जाने, बेरोजगारी और अग्निवीर जैसे तमाम मुद्दों पर मुखर होकर सवाल उठाते रहे हैं। 

वरुण गांधी को पार्टी की ओर से टिकट न मिलने की प्रमुख वजह में एक योगी सरकार की मुखालफत करना भी बताया जा रहा है।

जब योगी सरकार ने 18 सितंबर को अमेठी में संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया था। सोनिया गांधी इस अस्पताल को चलाने वाले संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की चेयरमैन थीं। वरुण गांधी ने योगी सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए पूछ डाला कि इस कार्रवाई के पीछे की मुख्य वजह उनके पिता का नाम तो नहीं है?

पिछले साल उन्होंने योगी आदित्यनाथ पर तंज कसते हुए लोगों को सलाह दी थी कि वे आस-पास के साधुओं को परेशान न करें, क्योंकि कोई नहीं जानता कि महाराज जी कब मुख्यमंत्री बन जाएंगे। 

2014 में राजनाथ सिंह के अध्यक्ष रहने के दौरान उन्हें पार्टी में कई पदों पर स्थान मिला। हालांकि 2014 के बाद उनकी प्रतिष्ठा में कमी देखने को मिली। किसान आंदोलन से लेकर बेरोजगारी जैसे सभी मुद्दों पर उन्होंने पार्टी को घेरा था। वरुण ने 2020-21 में कोविड-19 महामारी के समय भाजपा की सरकारों को आड़े हाथों लिया और कई मुद्दों पर आलोचना की थी। कोरोना के दौरान नाइट कर्फ्यू लगाने की नीति पर गहरे सवाल उठाए थे। 

लखीमपुर खीरी मामले में वरुण गांधी ने भाजपा से तीखे सवाल किए थे। उन्होंने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। इससे पार्टी को फजीहत हुई और अंतत: उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।

पीलीभीत सीट पर मेनका गांधी और वरुण गांधी का दबदबा रहा है। वरुण गांधी 2004 में भाजपा में शामिल हुए थे। उस समय उनकी छवि एक फायरब्रांड नेता के रूप में उभरी थी। 2009 में वह पहली बार संसद पहुंचे। पीलीभीत सीट पर मेनका गांधी 6 बार सांसद रही हैं।

2009 में मेनका गांधी ने पीलीभीत सीट वरुण गांधी के लिए छोड़ दी थी और वह आंवला से चुनाव लड़ीं। 2009 में वरुण गांधी पहली बार पीलीभीत लोकसभा से सांसद निर्वाचित हुए। 2014 में एक बार फिर मेनका गांधी ने पीलीभीत लोकसभा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2019 में मेनका गांधी ने सुल्तानपुर तो वरुण गांधी ने पीलीभीत से चुनाव लड़ा और दोनों ने ही जीत हासिल की।

नामांकन की अंतिम तिथि सामने है वहीं यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि मेनका गांधी सुल्तानपुर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ती हैं या अन्य नेताओं की तरह टिकट वापस करती हैं? यदि मेनका टिकट वापस करती हैं तो सुल्तानपुर लोकसभा भाजपा के हाथ से निकल सकती है।

वहीं पीलीभीत से यदि वरुण गांधी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरते हैं तो भाजपा से जितिन प्रसाद मुश्किल में पड़ सकते हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दो दिनों में वरुण गांधी के साथ-साथ मेनका गांधी क्या निर्णय लेती हैं?

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