वाराणसी। उत्तर प्रदेश में पीएम आवास आवंटन मामले में अफसरों की मिलीभगत से बड़ी संख्या में अपात्रों को ‘पात्र’ बनाकर आवास मुहैया कराने का मामला सामने आया है। मामला 2016-17 से 2023 तक का है। इस दौरान कुल 9217 प्रधानमंत्री आवास अपात्रों को आवंटित किए गए। टॉप दस जिलों में, बहराइच पहले नंबर पर है, जिसमें अपात्रों की संख्या 816 है। इनमें से कुछ अपात्रों से वसूली हुई, जबकि अभी भी 63.21 लाख रुपये का बकाया बाकी है। वहीं दूसरे नंबर पर प्रतापगढ़ है, जिसमें 475 अपात्रों को प्रधानमंत्री आवास मुहैया करा दिया गया। इस जिले से अब 99.14 लाख की वसूली की जानी है। तीसरे नंबर पर जिस जिले का नाम आता है वह सीतापुर जिला है। यहाँ पर 375 अपात्रों को पीएम आवास दे दिया गया। यहाँ सबसे ज्यादा 1.72 करोड़ रुपये की वसूली की जानी है। चौथे नंबर पर बलिया जिला है। यह जिला पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखरजी के कारण याद किया जाता है, लेकिन आज कुछ अफसरों की कारगुजारियों के लिए सुर्खियों में आया। पांचवें नंबर पर हरदोई है। हरदोई में कुल 300 अपात्रों को पीएम आवास आवंटित कर दिए गए। यहाँ से 70.55 करोड़ रुपये की वसूली होनी है। कभी गांधी परिवार का पसंदीदा क्षेत्र रहे रायबरेली में देखा जाए तो 286 अपात्रों को पात्र बनाकर पीएम आवास आवंटित कर दिया गया। अब यहाँ से 1.09 करोड़ रुपये की वसूली की जानी है। अब अगला नंबर आता है सुल्तानपुर का, जहां पर 263 ऐसे व्यक्तियों को पीएम आवास दे दिया गया, जो किसी भी तरह से उसकी योग्यता पूरी नहीं कर रहे थे। सुल्तानपुर के इन अपात्रों से 1.37 करोड़ रुपये की वसूली की जानी है। 209 अपात्रों को पात्र बनाकर पीएम आवास देने के मामले में आठवें नंबर पर फतेहपुर है। यहाँ से 1.04 करोड़ रुपये की वसूली 209 लोगों से की जाएगी। अगला नाम आता है आजमगढ जिले का, जहां पर कुल 187 लोगों को अवैध तरीके से पीएम आवास आवंटित कर दिया गया। अब यहाँ पर गैरकानूनी तरीके से पीएम आवास पर कब्ज़ा करने वाले लोगों से वसूली की तैयारी जिला प्रशासन ने कर ली है। जल्दी ही यहाँ से इन लोगों को नोटिस भी जारी की जाएगी है। इस जिले से 84.58 लाख रुपये की रिकवरी की जानी है। टॉप टेन में अंतिम नाम आता है औरैया का। औरैया में ऐसे 103 लोगों को चिन्हित किया गया है, जिन्होंने गलत तरीके से पीएम आवास हासिल किया। इन 103 लोगों में से कुछ को छोड़कर बाकी लोगों से 91 लाख की वसूली की जानी है।
ज्ञात रहे कि कच्चे घर या फिर खुले आसमान के नीचे जीवन-यापन करने वालों को पीएम आवास देने का प्रावधान किया गया है। योजना के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में लाभार्थियों को 1.2 लाख और शहरी क्षेत्रों में 2 .50 रुपये दिए जाते हैं।
दरअसल, सरकारी अफसरों ने लाभार्थियों के सत्यापन में सारा खेल कर दिया। उनके बैंक खातों में आवास की रकम ट्रांसफर कर दी गई। पक्के मकान वाले अमीर लोगों को भी आवास दे दिया गया, जबकि जो वास्तव में इसके हकदार थे, उन्हें निराशा मिली। शिकायतों के बाद हुए ‘क्रॉस चेक’ में पता चला कि बड़ी संख्या में अपात्रों ने पीएम आवास हासिल कर लिया है।
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हालांकि, शासन की तरफ से ऐसे लापरवाह जिलों की लिस्ट भी जारी की गयी है। इसमें अलीगढ़, अमरोह, बदायूं और हाथरस अपात्र लोगों से वसूली के मामले में सबसे पीछे हैं। शासन ने जल्द से जल्द रकम को वसूल कर सरकारी खाते में जमा करने के भी आदेश दिए हैं।
देखा जाए तो बरेली मण्डल के बदायूं में 59 अपात्र लोगों से 30.44 लाख की रिकवरी की जानी है। सात साल बीत जाने के बाद भी बदायूं के जिला प्रशासन ने अभी तक एक पैसे की रिकवरी नहीं की।
इस संबंध में बहराइच के परियोजना निदेशक डीआरडीए राजकुमार कहते हैं- ‘प्रधानमंत्री आवास हासिल करने वाले अपात्रों से वसूली करने की प्रक्रिया चल रही है। नोटिस भी भेजी गई है। कुछ लोगों से धन जमा भी कराया गया है।’
एक तरफ जहां पीएम आवास लेने में पैसे वाले ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग इन आवासों में कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
उदाहरण के लिए चंदौली जिले में वनवासी जाति के लिए बना सरकारी आवास अभी भी खाली है, क्योंकि यहाँ पर इस जाति के लोगों ने रहने से मना कर दिया। इसका कारण यह माना जा रहा है कि इस जाति के लोग फैलाव वाले स्थान पर रहना पसंद करते हैं। कमरों में रहने से उन्हें वह फैलाव नहीं मिल पाता यानी वह उबन महसूस करते हैं।
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गौरतलब है कि बहुत-सी अनुसूचित जाति के लोग (नट, धरकार, बढ़ई, लोहार, धूनी आदि) आज चाहकर भी पीएम आवास से वंचित हैं। कारण कई हैं, जैसे- अफसरों की मिलीभगत से असली पात्रों का वंचित रह जाना है। गलत तरीके से अवैध लोगों को आवास दे देना, पात्रों के कागजातों में गलतियाँ निकाल देना, इत्यादि। इसलिए कागजी कार्रवाई के झमेले में न पड़कर लोग नून-रोटी खाकर ही जीवन व्यतीत करना पसंद करते हैं। अफसरों का रवैया भी गरीबों को आवास लेने से रोक देता है और जो कोर-कसर रह जाती है उसे पूरा कर देते हैं विभाग के बाबू। एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब मैंने पीएम आवास के लिए आवेदन किया और सारी लिखा-पढ़ी के बाद कागज डूडा कार्यालय में जमा कर दिया तो अगले दिन कार्यालय का ही आदमी आया और मेरी माँ से 25 हजार में उस ‘आवास’ को पास करवाने की बात करके चला गया। इसके बाद मेरी पहली किस्त आ गयी, कुछ माह बाद दूसरी किस्त। लेकिन जैसे ही दूसरी किस्त आई, उसके कुछ दिन बाद कार्यालय का वही कर्मचारी मेरे घर फिर आया और मुझसे 25 हजार की मांग करने लगा। जब मैंने उसका कड़ा विरोध किया तो उसने मुझे देख लेने की धमकी दी। वह मुझ पर कई तरफ से दबाव डलवाता रहा, लेकिन मैंने भी पैसा न देने की ठान ली थी और अंत तक मैंने उसे एक रुपये तक नहीं दिया। लेकिन शायद मेरी जगह कोई दूसरा व्यक्ति होता तो वह तुरंत ही पैसा देकर अपनी जान बचाता।’
यहाँ पर एक सवाल उठता है कि इन अधिकारियों को ऐसी गड़बड़ियाँ पहले क्यूँ नहीं नजर आती। जब कहीं से कोई शिकायत मिलती है या किसी के द्वारा की जाती है, तभी प्रशासन अपनी कुंभकर्णी नींद से उठता है।
राहुल यादव गाँव के लोग के उप-संपादक हैं।