शिमला। हिमाचल प्रदेश में जारी सियासी घमासान फिलहाल टलता नजर आ रहा है लेकिन कब तक कांग्रेस हाईकमान इस घमासान को शांत रख पता है यह देखने वाली बात होगी। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और सुक्खू सरकार में मंत्री विक्रमादित्य की बगावत भी खुलकर सामने आ गई है, उन्होंने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।
विक्रमादित्य की मां और सांसद प्रतिभा सिंह ने कहा है कि सरकार से विधायक खुश नहीं हैं। विधायकों के काम नहीं हो रहे हैं। शीर्ष नेतृत्व को ध्यान देना चाहिए। जबकि आज सुबह विक्रमादित्य सिंह ‘बागी विधायकों’ से मिलने पंचकुला ललित होटल पहुंच गए, सूत्रों की मानें तो बागी विधायकों से मिलने के बाद विक्रमादित्य आत्मविश्वास से भरे नजर आये।
आगे देखना दिलचस्प होगा कि विक्रमादित्य किस पाले में खड़े नजर आते हैं। राजनीतिक गलियारों में उनके भाजपा में जाने के कयास लग रहे हैं। हालाँकि दोनों तरफ से इस संदर्भ में अभी कोई खुलकर नहीं बोल रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर जहाँ पहले कांग्रेस के बागी विधायकों को आमंत्रित कर रहे थे वहीं आज उन्होंने मीडिया से बात चीत के दौरान कहा, ‘हम अपने कामकाज में व्यस्त हैं, जो कुछ हो रहा है उनके (कांग्रेस) बीच में ही हो रहा है।’
क्या है पूरा मामला?
विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने हाल के राज्यसभा चुनाव में ‘क्रॉस वोटिंग’ करने वाले छह कांग्रेस विधायकों को बृहस्पतिवार को अयोग्य घोषित कर दिया।
ये विधायक वित्त विधेयक पर सरकार के पक्ष में मतदान करने के पार्टी व्हिप की अवहेलना करते हुए विधानसभा में बजट पर मतदान के दौरान अनुपस्थित थे। राज्य की सत्तारूढ़ कांग्रेस ने इस आधार पर उन्हें अयोग्य ठहराए जाने की मांग की थी।
अयोग्य घोषित किए गए विधायकों में राजेंद्र राणा, सुधीर शर्मा, इंद्रदत्त लखनपाल, देवेंद्र कुमार भुट्टो, रवि ठाकुर और चैतन्य शर्मा शामिल हैं।
इस संबंध में बृहस्पतिवार शाम एक अधिसूचना जारी की गई जिसमें कहा गया कि ये छह विधायक 29 फरवरी से हिमाचल प्रदेश विधानसभा के सदस्य नहीं रहेंगे।
अधिसूचना में कहा गया, ‘इसके परिणामस्वरूप, विधानसभा क्षेत्रों-धर्मशाला, लाहौल और स्पीति, सुजानपुर, बड़सर, गगरेट और कुटलैहड़ की सीट रिक्त हो गई हैं तथा इससे हिमाचल प्रदेश की चौदहवीं विधानसभा में छह सीट खाली हो गई है।’
राजेंद्र राणा ने बृहस्पतिवार को कहा कि अयोग्य ठहराए गए छह विधायक आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील करेंगे।
उन्होंने कहा, ‘छह विधायकों में से केवल एक को 27 फरवरी की रात को व्हाट्सऐप पर नोटिस मिला और हम 27 तथा 28 फरवरी को सदन में मौजूद थे।’
बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के बाद सदन में कुल विधायकों की संख्या 68 से घटकर 62 रह गई है। वहीं कांग्रेस विधायकों की संख्या 40 से घटकर 34 हो गई है।
जबकि विधानसभा अध्यक्ष ने एक संवाददाता सम्मेलन में छह बागी विधायकों की अयोग्यता की घोषणा करते हुए कहा कि वे दल-बदल रोधी कानून के तहत अयोग्यता के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने व्हिप का उल्लंघन किया और वे तत्काल प्रभाव से सदन के सदस्य नहीं हैं।
हिमाचल के इतिहास में पहली बार
हिमाचल प्रदेश के इतिहास में यह पहली बार है कि किसी विधायक को दलबदल रोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित किया गया है।
हिमाचल प्रदेश की एकमात्र राज्यसभा सीट पर हुए चुनाव में भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन को वोट देने वाले ये विधायक बजट पर मतदान के दौरान सदन में मौजूद नहीं थे।
संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन ने मंगलवार शाम अध्यक्ष के समक्ष एक याचिका दायर की थी और मांग की थी कि इन सदस्यों को सदन में उपस्थित रहने तथा बजट के लिए मतदान करने के पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने पर दलबदल रोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित किया जाए।
अध्यक्ष ने विधायकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था और उन्हें सुनवाई के लिए बुधवार दोपहर 1.30 बजे उपस्थित होने को कहा था। ये विधायक मंगलवार को राज्यसभा चुनाव के लिए मतदान के बाद पंचकूला चले गए थे और बुधवार को सुनवाई के लिए पहुंचे।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अध्यक्ष ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रख लिया था और बृहस्पतिवार को इसकी घोषणा की थी।
बागी कांग्रेस विधायकों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सत्यपाल जैन ने दलील दी कि इन विधायकों को केवल कारण बताओ नोटिस दिया गया था तथा न तो याचिका की प्रति और न ही अनुलग्नक प्रदान किया गया था। उन्होंने कहा कि नोटिस का जवाब देने के लिए सात दिन का समय अनिवार्य था लेकिन कोई समय नहीं दिया गया।
हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने मंगलवार को राज्य की एकमात्र राज्यसभा सीट जीत ली थी और इसके उम्मीदवार हर्ष महाजन ने कांग्रेस के उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी को हरा दिया था।
अध्यक्ष ने 30 पन्नों के आदेश में दलबदल रोधी कानून के तहत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के फैसलों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि नोटिस का जवाब देने के लिए समय देने की बागी विधायकों के वकील सत्यपाल जैन की याचिका पर विचार नहीं किया गया क्योंकि ‘सबूत बिलकुल स्पष्ट थे।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने और ‘आया राम, गया राम’ की प्रवृति को रोकने के लिए ऐसे मामलों में त्वरित निर्णय देना आवश्यक है।’
हिमाचल में हालिया राजनीतिक सरगर्मियां कुछ इस तरह बढ़ी हैं कि सत्ता की डोर किसके हाथ में जाएगी यह कह पाना मुश्किल है। जहां एक तरफ बागी विधायकों पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू हमलावर हैं वहीं हिमाचल सरकार में मंत्री विक्रमादित्य राजधानी दिल्ली में सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से मुलाकात करने पहुंच गये हैं।
(भाषा के इनपुट के साथ)