अगर आपको लगता है कि मणिपुर भारत का हिस्सा है और आपको पता है कि मणिपुर जल रहा है या फिर जलाया जा रहा है तो यकीनन आपको यह भी कहने और मानने से परहेज नहीं करना चाहिए कि देश जल रहा है। देश का हर संवेदनशील आदमी मणिपुर के इस तरह जलने और जलाए जाने को लेकर चिंतित है। अगर यह चिंता कहीं नहीं रेखांकित हो पा रही है, तो निःसंदेह वह देश के प्रधानमंत्री की जुबान है। विपक्ष प्रधानमंत्री से लगातार मांग करता रहा कि वह सदन में आकर मणिपुर के हालात और हिंसा रोकने के प्रयास पर अपना पक्ष रखें। मणिपुर में आज जो जातीय आग लगी है, उसके लिए सरकार के तमाम लोग कांग्रेस के अतीत का हवाला दे रहे हैं। मणिपुर में जो आग जल रही है, जिसे पिछले तीन महीने में राज्य और केंद्र सरकार रोक पाने में पूरी तरह से अक्षम साबित हुई हैं। यदि वह कांग्रेस के अतीत की गलती है, तब भी क्या देश के प्रधानमंत्री को इस विषय पर संसद में अपना पक्ष नहीं रखना चाहिए। जबकि पूरा विपक्ष और देश के तमाम नागरिक संगठन इसे पूरी तरह से सरकार की असफलता ही नहीं, बल्कि सरकार का सुनियोजित प्रयास बता रहे हैं। इस सबके बावजूद प्रधानमंत्री इस मामले पर कुछ भी कहने से लगातार बचते रहे हैं।
तीन कुकी महिलाओं के साथ यौन हिंसा का भयावह और शर्मनाक वीडियो वायरल हो जाने के बाद जब भारत पर दुनिया भर से शर्मसार करने वाली टिप्पणी की जाने लगी तब भारत के प्रधानमंत्री ने मीडिया के पूछने पर यह कहा कि, ‘ वह मणिपुर की घटना से दुखी हैं, उन्होने कसम खाई है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।’ इस वीडियो के वायरल होने के बाद सरकार द्वारा हिंसा रोकने का प्रयास तो बहुत साफ नहीं दिखा पर इस बात को लेकर सरकार की चिंता साफ दिखाई दी कि आखिर यह वीडियो वायरल कैसे हुआ। राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने वीडियो पर विपक्ष के तमाम हमलो के मद्देनजर यह कहा कि इस तरह की सैकड़ो घटनाएँ यहाँ घटी हैं, एक वीडियो सामने आ जाने से जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है वह बेवजह है। मणिपुर के इस भयावह हालात पर जिन कुछ लोगों ने जांच की उन्होंने भी इस पूरे घटनाक्रम में सरकार के समर्थन की बात कही है। बड़ी संख्या में सरकारी हथियार भी हिंसा की गतिविधियों में शामिल किए गए।
[bs-quote quote=”अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिशों में विपक्ष के असफल होने पर भाजपा अपनी जीत पर भले ही खुद की पीठ थपथपा ले, परंतु मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री ने वहाँ के सवालों को जिस तरह टरकाया, यह किसी भी जिम्मेदार सरकार के लिए सही नहीं है। पर सच्चाई यह है कि विपक्ष ने इस अविश्वास प्रस्ताव में एक ऐसी पटकथा लिख दी है कि अब भाजपा और एनडीए को राहुल गांधी से डरना पड़ेगा। अब राहुल गांधी इमली के बिया नहीं रह गए हैं कि सस्ते ट्रोल के दबाए उछल जाएँगे। यह ट्रोल ही भाजपा की ताकत है। हरियाणा के नूंह ने इसे साबित कर दिया है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
विपक्ष लगातार मणिपुर के मामले पर सरकार के प्रधानमंत्री से यह मांग कर रहा है कि वह इस मुद्दे पर सदन के पटल पर अपना विचार स्पष्ट करें। प्रधानमंत्री की तरफ से इस मामले पर जब किसी तरह कि प्रतिक्रिया नहीं दी गई, तब विपक्ष जो अब I.N.D.I.A. बनने के बाद आत्मविश्वास से भरा हुआ है और भाजपा के सामप्रदायिक राष्ट्रवाद का किसी भी तरह से मुक़ाबला करना चाहता है ने प्रधानमंत्री को उस संसद तक खींचने के लिए अपने उस अधिकार का प्रयोग किया जिसके आगे प्रधानमंत्री को अपनी जिद्द के साथ संसद के समक्ष आने के लिए मजबूर होना पड़ा। राहुल गांधी, सांसद के रूप में बहाल होने के बाद जब वापस आए तो विपक्षी की जिस एकता पर सत्ता पक्ष लगातार हमला कर रहा था वह एकता अब और ज्यादा ताकत के साथ सामने आ गई थी। विपक्ष ने मणिपुर पर प्रधानमंत्री के मौन को तोड़ने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। बावजूद प्रधानमंत्री ने जब इस मामले में कुछ भी नहीं बोला तब विपक्ष ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कर दी।अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री को चाहे-अनचाहे सदन में विपक्ष के सवाल का जवाब देना था। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा को लेकर विपक्ष का मंसूबा यह नहीं था कि वह सरकार गिराएगा बल्कि वह सिर्फ यह चाहता था कि देश के ज्वलंत मुद्दों पर प्रधानमंत्री बात करें। वह देश को बताएं कि मणिपुर में जिस तरह से हिंसा बदस्तूर जारी है उस पर वह चुप क्यों हैं? क्या मणिपुर भी किसी तरह की प्र्योगशाला बनाया जा रहा है?
फिलहाल अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान राहुल ने जो बातें कही पहले उसे जान लीजिये। राहुल ने कहा कि केंद्र सरकार भारतीय सेना को लगाकर मणिपुर में जारी हिंसा को एक दिन में रोक सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने अपने 37 मिनट लंबे भाषण का ज़्यादातर हिस्सा मणिपुर पर ही केन्द्रित रखा। उन्होंने कहा कि ‘मैं कुछ दिन पहले मणिपुर गया, हमारे प्रधानमंत्री आज तक नहीं गए क्योंकि उनके लिए मणिपुर हिंदुस्तान नहीं है। आज मणिपुर को दो हिस्सों में बाँट दिया गया है।’
इस दौरान उन्होंने अपने कुछ अनुभव का जिक्र भी किया और बताया कि, ‘एक महिला ने मुझसे बताया कि उनका बेटा हिंसा में मारा गया और वह उसकी लाश के साथ पूरी रात रही और अब अपना घर-बार छोडकर आ गई, अब उनके पास सिर्फ अपने बेटे की फोटो है।’
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हिंसा प्रभावित एक अन्य महिला का जिक्र करते हुये उन्होने बताया कि ‘मैं एक दूसरी महिला से मिला, जिनसे मैंने पूछा कि तुम्हारे साथ क्या हुआ तो वो औरत काँपने लगी और बेहोश हो गई। राहुल गांधी ने कहा यह सिर्फ दो उदाहरण हैं इन्होंने सिर्फ मणिपुर का नहीं बल्कि हिंदुस्तान का कत्ल किया है। राहुल ने सरकार पर तीखा हमला करते हुये कहा, ‘मणिपुर के लोगों की हत्या करके आपने भारत माता की हत्या की है। यह करके आपने देशद्रोह किया है। इसी वजह से प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर नहीं जाते।’ उन्होने कहा कि मेरी एक माँ यहाँ बैठी हुई हैं और दूसरी माँ को आपने मणिपुर में मारा है। राहुल ने मणिपुर में शांति के प्रयास बढ़ाने की मांग करते हुये सेना की तैनाती का प्रस्ताव रखा।
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुये कहा कि आपने मणिपुर से नूह तक पूरे देश में आग लगा दी है। पूरे देश पर किरोसिन छिड़क कर उस पर चिंगारी फेंकने का प्रयास कर रहे हैं।
राहुल गांधी के पूरे भाषण के दौरान सत्ता पक्ष ने जमकर शोर-शराबा किया बावजूद इसके राहुल गांधी बिना रुके बोलते रहे। इस भाषण के दौरान राहुल गांधी की बॉडी लैंगवेज़ की भी काफी चर्चा हुई है। अविश्वास प्रस्ताव पर बोलने के दौरान राहुल गांधी में जमकर आत्मविश्वास देखने को मिला। राहुल के इस अंदाज और सत्ता पर ताकतवर तरीके से हमला करने की वजह से पूरा विपक्ष राहुल की अगुवाई में संसद में खुद को मजबूत महसूस करता दिखा और। गठबंधन धर्म को निभाने में भी पूरी नैतिकता दिखाई। विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव से एक नई ऊर्जा मिल गई है और राहुल गांधी को भी खुद को विपक्ष का अगुआ साबित करने का मौका।
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इस पूरे बहस का केंदीय सिरा राहुल बनाम नरेंद्र मोदी ही था। राहुल और अन्य विपक्ष के नेताओं का पूरा फोकस मणिपुर पर बहस को केन्द्रित रखना था, पर जवाब देते हुये प्रधानमंत्री ने जो भाषण दिया उसे यदि हम द टेलीग्राफ अखबार के मुख्यपृष्ठ पर पढ़ते हैं तो आपको जो पढ़ने को मिलेगा वह है ‘बला, बला, बला……………………. ……….बला, बला। दरअसल यह एक तंज़ है। प्रधानमंत्री के सदन में दिये गए भाषण को गोदी मीडिया कितना भी महिमा मंडित करे पर सच्चाई यह है कि पूरे भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मणिपुर के सवाल से बचते नजर आए। उन्होने 2घंटे 12 मिनट का भाषण दिया। 1घंटे 32 मिनट के बाद पहली बार उन्होने मणिपुर का जिक्र किया, प्रधानमंत्री के मुख्य मुद्दे पर बात को केन्द्रित ना करने की वजह से विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी का भाषण सुनना उचित नहीं समझा और वाक आउट कर गए ।
प्रधानमंत्री के इस भाषण पर वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की टिप्पणी गलत नहीं दिखती। वह कहते हैं कि यह भाषण या फिर प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया यह जवाब उस बच्चे के जवाब की तरह है जिसे प्रश्न का उत्तर ना पता होने पर भी वह पूरी कापी भर देता है।
दरअसल सदन में प्रधानमंत्री बहुत हद तक चुनावी अंदाज में ही भाषण देते रहे। जिस पर पार्टी और समर्थक खुश हो कर कितना भी जयनाद करें पर यह लोकतन्त्र के लिए और एक देश के लिए किसी भी तरह से उचित नहीं है। एक प्रधानमंत्री की चिंता का सबब सिर्फ विपक्ष और कांग्रेस पार्टी नहीं हो सकते हैं।
राहुल गांधी के भाषण का काउंटर करने वाली वक्ता स्मृति ईरानी जब बहस के किसी भी मुद्दे पर बेहतर उत्तर नहीं दे सकीं तो वह फ्लाइंग किस की चिड़िया उड़ाते हुये उस पूरी बहस की गंभीरता को खत्म करने की कोशिश की। इस तरह की बेवजह की बातों को फ्रंट पर लाने की वजह से स्मृति ईरानी को जमकर ट्रोल भी होना पड़ा।
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अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिशों में विपक्ष के असफल होने पर भाजपा अपनी जीत पर भले ही खुद की पीठ थपथपा ले, परंतु मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री ने वहाँ के सवालों को जिस तरह टरकाया, यह किसी भी जिम्मेदार सरकार के लिए सही नहीं है। पर सच्चाई यह है कि विपक्ष ने इस अविश्वास प्रस्ताव में एक ऐसी पटकथा लिख दी है कि अब भाजपा और एनडीए को राहुल गांधी से डरना पड़ेगा। अब राहुल गांधी इमली के बिया नहीं रह गए हैं कि सस्ते ट्रोल के दबाए उछल जाएँगे। यह ट्रोल ही भाजपा की ताकत है। हरियाणा के नूंह ने इसे साबित कर दिया है।
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फिलहाल अविश्वास प्रस्ताव में सदन के अंदर भले कुछ भी नहीं बदला हो पर सदन के बाहर काफी कुछ बदलता दिख रहा है। मणिपुर के बाहर भी एक संवेदनशील समाज है जिसे मणिपुर की परवाह है। जिसे देश की परवाह है।