राजस्थान एक बार फिर दलित उत्पीड़न के कारण सुर्खियों में है। घटना के संबंध में आई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक स्कूल परिसर में लगे हैंडपंप पर पानी पीने गया बच्चा वहां रखी बाल्टी को छू लेने के कारण बर्बरता और दमन की मानसिकता का शिकार हो गया।
जिले के रामगढ़ थाना क्षेत्र के मंगलेशपुर गांव में एक चौथी कक्षा में पढ़ने वाले 8 वर्षीय बालक को बेरहमी से सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि उसने हैंडपंप पर रखी वाल्टी को छू लिया था।
इस मामले में पुलिस कार्रवाई का आश्वासन तो दे रही है, लेकिन चौथी कक्षा में पढ़ने वाला बच्चा इतना डरा हुआ है कि उसने स्कूल जाना ही छोड़ दिया है। स्थानीय पुलिस का कहना है कि आरोपियों के खिलाफ जांच हो रही है, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी। मामले की जांच कर रहे इंस्पेक्टर ने भरोसा दिलाया है कि लड़का स्कूल जा सकता है, उसे अब कोई परेशानी नहीं होगी।
बेटे की पिटाई के बाद उसके पिता ने स्थानीय पुलिस से शिकायत की। सर्किल इंस्पेक्टर सवाई सिंह के मुताबिक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है।
दलित एवं आदिवासी उत्पीड़न के मामले में दूसरे नंबर पर राजस्थान
राजस्थान पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत 2017-2023 के बीच 56879 मामले दर्ज किए गए। 2018 से 2022 के बीच राजस्थान में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि की दर 22% रही है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) की Crime In India Report 2022 के अनुसार 2022 में भारत में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध करने के कुल 57582 मामले दर्ज किए गए हैं। दलितों के खिलाफ अपराध की दर 2022 में 28.6 तक जा पहुंची है जबकि 2021 में यह 25.3 थी।
वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ अपराध के 15368 मामले एवं राजस्थान में दलितों के खिलाफ अपराध के 8752 मामले दर्ज किए गए। राजस्थान दलित उत्पीड़न के मामले में दूसरे नंबर पर आता है।
वर्ष 2022 में मध्य प्रदेश में आदिवासियों के खिलाफ अपराध के 2979 मामले एवं राजस्थान में आदिवासियों के खिलाफ अपराध के 2521 मामले दर्ज किए गए।
राजस्थान दलितों एवं आदिवासियों का उत्पीड़न करने के मामले में दूसरे नंबर पर आता है।
दलितों के उत्पीड़न मामले में किन आरोपों को गिनती है पुलिस
अनुसूचित जाति के खिलाफ किए गए अपराधों/अत्याचारों के रिपोर्टेड मामलों (NCRB डेटा के मुताबिक) के बारे में यह जानना भी अहम है कि इस दायरे में केवल उन्हीं मामलों को गिना गया है जो पुलिस के रिकॉर्ड्स में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, 1989 (एससी/एसटी एक्ट) के तहत दर्ज किया गया है। अगर पुलिस ने किसी दलित के खिलाफ अत्याचार का मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दर्ज किया हो तो एनसीआरबी ने उसे दलित उत्पीड़न के दायरे में नहीं रखा है।
एनसीआरबी के मुताबिक ऐसा इसलिए है क्योंकि उन मामलों में अनुसचित जाति के ही किसी सदस्य द्वारा किसी अन्य एससी/एसटी के खिलाफ किये गए अपराध का उल्लेख होता है।
दलितों के उत्पीड़न का कारण क्या मानते हैं विशेषज्ञ
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दलितों के खिलाफ राजस्थान में अधिक अपराध का कारण आंशिक रूप से धीमी आर्थिक वृद्धि और इसी कारण से सामाजिक परिवर्तन में पिछड़ना है। विशेषज्ञों का मानना है कि पुराने समय की तुलना में अब लोग मुखर हो रहे हैं। जाति-आधारित अपराधों या भेदभाव के मामले में लोग खुलकर बोलने और पुलिस से संपर्क करने लगे हैं। पश्चिमी राजस्थान में जाति-आधारित मुद्दों के विशेषज्ञ कहे जाने वाले खिनवराज जांगिड़ के मुताबिक राजस्थान में अधिकांश नौकरियां पर्यटन उद्योग पर आधारित हैं। पारंपरिक व्यवसाय अभी भी सामाजिक समीकरणों पर हावी हैं। राज्स्थान में ऐतिहासिक विरासतों और रजवाड़ों से जुड़ी निशानियों की भरमार है, लेकिन महानगरीय क्षेत्रों की कमी है। आवाजाही की उच्च लागत आर्थिक गतिशीलता में बाधा बनती है। ऐसे में शायद ही कभी अपनी पारंपरिक अलग-अलग घेरेबंदी वाली रिहाइश से बाहर लोग बाहर निकल पाते हैं। यही कारण है कि यहां का समुदाय अपेक्षाकृत अधिक जातिवादी है।
दमन के खिलाफ युवा बुलंद कर रहे आवाज
राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों में दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार में उल्लेखनीय वृद्धि के मामले में दलित कार्यकर्ता और लेखर भंवर मेघवंशी बताते हैं कि नई पीढ़ी के युवा अपमानों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। स्मार्टफोन के दौर में वीडियो वायरल होना भी आम बात है। सबूत सामने होने के कारण पुलिस-प्रशासन को भी ऐसे मामलों को गंभीरता से देखना पड़ता है। अब पुलिस से शिकायत के लिए वीडियो सबूत काफी है। दबंगई करने वाले और दलितों की आवाज दबाने वाले लोगों के खिलाफ अब प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जमा करने की जरूरत नहीं।
देश में जातिवाद का जहर कई दशक पुराना
इन घटनाओं के अलावा एनसीआरबी के आंकड़े यह बता रहे हैं कि भले ही भारत को आजाद हुए 77 साल बीत चुके हैं। संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर को अपने बचपन में जैसी यातनाएं झेलनी पड़ीं, वैसा ही मंजर आज भी दिखाई देता है। जिस तरह अलवर में अपनी प्यास बुझाने हैंडपंप पर गए आठ साल के मासूम बच्चे के साथ शर्मनाक बर्ताव हुआ, वैसा ही दशकों पहले कभी आंबेडकर के साथ होता था।