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कच्चातिवु द्वीप मामला क्या है, क्यों मचा है सियासी घमासान ? जानिए

वर्तमान में तमिलनाडु के कई क्षेत्र में मछलियां खत्म हो गई हैं। जिस कारण भारतीय मछुआरे समुद्री सीमा को पार करते हुए कच्चातिवु द्वीप पहुंचते हैं और उन्हें कई बार हिरासत में लेने की खबरें मिलती रहती हैं।

लोकसभा चुनाव के बीच इन दिनों कच्चातिवु द्वीप के मुद्दे पर सियासत भी गरमाई हुई है। केंद्र सरकार ने कांग्रेस और उसके सहयोगी दल द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) पर हमला बोला है। इस मामले पर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने ट्वीट किया था।

केंद्र ने आरटीआई का हवाला देते हुए पूर्व की कांग्रेस सरकार और डीएमके पर 1970 के दशक के बीच में कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपने में राष्ट्र के हितों की अनदेखी करने और विभिन्न पहलुओं को छिपाने का आरोप लगाया है। यह आरटीआई तमिलनाडु के बीजेपी चीफ के. अन्नामलाई ने 2015 में लगाई थी। जिसमें बताया गया कि 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया था।

कांग्रेस ने किया पलटवार

कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने भाजपा नीति केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेते हुए पूछा है कि 2014 तक द्वीप के फिशिंग राइट्स थे, 2014 के बाद कच्चातिवु द्वीप के फिशिंग राइट्स कहां चले गए ? उन्होंने पीएम मोदी पर अनभिज्ञता और ठीक से होमवर्क न करने का आरोप लगाया है।

 

क्या है कच्चातिवु द्वीप का मामला

हिंद महासागर के भारतीय दक्षिणी तट पर कच्चातिवु द्वीप स्थित है। यह भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 285 एकड़ है। 17वीं शताब्दी में यह द्वीप मदुरई के राजा रामानंद के अधीन था। अंग्रेजों के शासनकाल में, कच्चातिवु द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया और उस समय यह द्वीप मछली पालन के लिए महत्वपूर्ण था।

भारत और श्रीलंका दोनों इस द्वीप पर मछली पकड़ने के लिए अपना दावा करते थे। स्वतंत्रता के बाद, 1974-76 के बीच समुंद्री सीमा को लेकर 4 समझौते किए गए, जिसके तहत भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर आराम करने और जाल सुखाने की अनुमति दी गई। इस द्वीप पर मछली पकड़ने लेकिन बाद में यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया।

पीएम मोदी ने मेरठ की रैली में कहा था कि पता चल रहा है कि किस तरह से कांग्रेस ने कच्चातिवु द्वीप दे दिया। लोग जानते हैं कि वे अब कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर सकते हैं। कांग्रेस ने पिछले 75 सालों में भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर किया है।

कांग्रेस नेता प्रमोद कुमार ने पलटवार करते हुए कहा, लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही गवाह है। अभी भारत और बांग्लादेश के बीच वार्ता हुई थी… क्या आपने(भाजपा) 7000 एकड़ जमीन के बदले 17,000 एकड़ की भूमि उन्हें नहीं सौंपी?… ये 10,000 हजार एकड़ का जवाब कब देंगे आप?…पहले अपने दामन में झांकें… आज आपको तमिलनाडु के लिए पीड़ा हो रही है लेकिन जब आप तमिल भाषा के खिलाफ बोलते थे तब आपको पीड़ा नहीं होती थी… जिस दिन आपको वहां(तमिलनाडु) से वोट मिल जाएगा फिर आप 5 साल तक नहीं बोलेंगे।

वर्तमान में तमिलनाडु के कई क्षेत्र में मछलियां खत्म हो गई हैं। जिस कारण भारतीय मछुआरे समुद्री सीमा को पार करते हुए कच्चातिवु द्वीप पहुंचते हैं और उन्हें कई बार हिरासत में लेने की खबरें मिलती रहती हैं।

भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी पर विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार मछुआरों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है। हमें समाधान ढूंढना होगा। हमें श्रीलंकाई सरकार के साथ बैठकर इस मुद्दे पर काम करना होगा। मंत्री के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में श्रीलंका ने 6,184 भारतीय मछुआरों को हिरासत में लिया है।

द्वीप को वापस लेने पर क्या होगा असर

श्रीलंका में संप्रभुता और उसके महत्व पर चर्चा करते हुए, पूर्व उच्चायुक्त अशोक कांता ने द हिंदू से बातचीत में कहा कि जब भी सरकारें बदलती हैं, तो यह संप्रभुता और क्षेत्रीय एकता में कोई परिवर्तन नहीं लाता। यदि सरकार इस प्रकार के मुद्दों को सामने लाती है, तो इसका नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है। यदि वास्तविक समझौतों में कोई परिवर्तन होता है तो भारत के पड़ोसियों के साथ किए गए समझौतों का पूरा प्रस्ताव बिगड़ जाएगा।

वहीं श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त रहे शिवशंकर मेनन ने द हिंदू को दिए एक साक्षातकार में कहा कि जमीन पर यथास्थिति को बदल पाना बेहद मुश्किल है लेकिन ऐसे मुद्दे को देश के नेतृत्व की तरफ से उठाया जाना भारत की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाएगा। उन्होंने आगे कहा कि यह निजी स्वार्थ हो सकता है।

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