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ग्राउंड रिपोर्ट

बलिया पुलिस पत्रकार की जान पर खतरा बता रही है जबकि वह समझ नहीं पा रहा है कि उसे किससे खतरा है

बलिया पुलिस और इंटेलीजेंस विभाग की सक्रियता से जिले के वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता अजीब पशोपेश में हैं कि क्या उनकी जान को सचमुच किसी से खतरा है। बलिया की जनता के हक की आवाज बने पत्रकार संतोष कुमार सिंह और उनके साथी सशंकित हैं। उनका कहना है कि मनोवैज्ञानिक रूप से दबाव बनाकर प्रशासन उनकी निगरानी कर रहा है।

बलिया स्थित वरिष्ठ पत्रकार और विभिन्न आंदोलनों में शामिल रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कुमार सिंह आजकल अजीब अनुभवों से गुजर रहे हैं। उनकी इस स्थिति के पीछे बलिया पुलिस प्रशासन की वह शुभेच्छा है जिसके कारण वह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर उनकी जान को खतरा किससे है? गौरतलब है कि बलिया पुलिस अधीक्षक सहित दूसरे पुलिस अधिकारियों द्वारा बार-बार यह पूछे जाने पर कि आप ठीक तो हैं? किसी किस्म की चिंता तो नहीं? संतोष भरी अचरज में पड़ गए हैं और उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर उनकी जान को किससे खतरा है?

संतोष कुमार सिंह ने फेसबुक पर 14 मार्च की रात 10.20 बजे वीडियो जारी कर समर्थकों का आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि ‘उनकी जान को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि इंटेलिजेंस और पुलिस प्रशासन की तरफ से उनके पास फोन आ रहे थे। लेकिन यह सुरक्षा या सतर्कता के लिए नहीं, उनकी निगरानी के लिए थे। उन्होंने बताया कि जनार्दन जी, तेजनारायण जी, लक्ष्मण पांडे और भाई बलवंत सरीखे वरिष्ठ नेताओं की भी निगरानी की जा रही है। बलिया में टीम वर्क कर रहे हम सभी लोगों पर नजर रखी जा रही है। उन्होंने बताया कि वे सभी संयुक्त किसान मोर्चा के संस्थापक सदस्य हैं। समय-समय पर बलिया जनपद में आंदोलन हुए हैं। उन्होंने आगे कहा कि वह आगामी 18 अप्रैल को रेलवे से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करेंगे। हालांकि अगर चुनाव को देखते हुए आचार संहिता लागू होगी तो, वह इस आंदोलन की रूपरेखा में परिवर्तन करते हुए दूसरी रूपरेखा तैयार करेंगे।

अब प्रशासन सशंकित है कि मोर्चा कुछ कर रहा है। ऐसे में उनपर नजर रखी जा रही है। निगरानी का कारण आंदोलन है, लेकिन हम पीछे हटने वाले नहीं हैं। आंदोलन यथावत चलता रहेगा। कई बार मोर्चा से जुड़े लोगों को नजरबंद रखा जा चुका है। संतोष के मुताबिक किसी से सहयोग न मिलने पर भी उनका आंदोलन चलता रहेगा। पीड़ितों और स्थानीय लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए वे हमेशा तत्पर रहेंगे। उन्होंने जिला प्रशासन से मिले सहयोग का आभार प्रकट किया। संतोष के मुताबिक बलिया पुलिस ने अब तक उनके साथ सहयोगपूर्ण बर्ताव किया है।’

बलिया के लोगों के लिए रेल सेवा का जिक्र करते हुए संतोष ने बताया कि फेफना में ट्रेनों के ठहराव को लेकर क्षेत्रीय संघर्ष समिति के आंदोलन का सकारात्मक नतीजा निकला है। बलिया के लिए एकमात्र जंक्शन फेफना है। ट्रेन का एक रूट वाराणसी की तरफ जाता है। दूसरा रूट आजमगढ़, लखनऊ और मऊ की तरफ जाता है। उन्होंने बताया कि एक्सप्रेस ट्रेनों के ठहराव की मांग लंबित है, लेकिन ट्रेन का किराया घटाने की मांग पूरी हुई है। बकौल संतोष फेफना से बलिया की 10 किमी दूरी के लिए पैसेंजर ट्रेन का किराया 30 रुपये लिया जाता था, लेकिन आंदोलन का नतीजा रहा कि अब किराया केवल 10 रुपये हो चुका है। अपनी दूसरी मांग के बारे में जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वे रेलवे द्वारा वृद्धों को दिए जाने वाले सुविधाओं के विस्तार की मांग काफी लंबे समय से करते आ रहे हैं। वहीं एक्सप्रेस ट्रेनों के फेफना रेलवे स्टेशन पर ठहराव की भी मांग की है।

निजी सुरक्षा को लेकर जताई जा रही चिंता को लेकर संतोष सिंह ने बलिया और प्रदेश के प्रशासन समेत तमाम शुभचिंतकों का आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा, आंदोलन जारी रहेगा। पीड़ित जनता खुद अपने लिए संघर्ष कर रही है। उनके बहकावे में कोई सड़क पर नहीं उतर रहा है। संतोष सिंह के मुताबिक जैसे-जैसे प्रशासन आम जनता की मांग मानती जाएगी, वे खुद सामने आकर धन्यवाद देने में कोई संकोच नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि जिसके घर में रोटी नहीं है वे आंदोलन करते रहेंगे। आने वाले दिनों में भी आंदोलन होते रहेंगे। जनता के आंदोलन का श्रेय किसी नेता को नहीं दिया जा सकता। जिनके भीतर जज्बा है, जो लोग जागृत हैं वे अपनी वाजिब मांग और पीड़ा को दूर करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। जनता एकजुट होकर पीड़ितों के समर्थन में आवाज उठाती है और आंदोलन खड़ा हो जाता है। यही जनता की ताकत है। जो हुक्मरान कभी अपने दरवाजों से लौटा देते हैं, आंदोलन होने पर उनकी आवाज सुनी जाती है। आंदोलन करने वाले लोगों में युवा, किसान समेत समाज के हर वर्ग के लोग शामिल हैं।

संतोष ने बताया कि वे किसानों की समस्याओं के लिए आवाज उठाना जारी रखेंगे। कन्फ्यूजन अब दूर हो रहा है। प्रशासनिक चौकसी केवल इसलिए बढ़ रही है, क्योंकि वे आंदोलन से जुड़े हैं, लेकिन वे पीछे हटने वाले नहीं है। उनकी कोई भी गतिविधि असंवैधानिक नहीं है। उन्होंने दावा किया कि वे कानून के दायरे में रहकर आने वाले समय में भी जनता को जगाने और एकजुट करने का काम करते रहेंगे। बलिया के अलावा दूसरे राज्यों से समर्थन करने वाले लोगों का भी आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली सुविधाओं को दोबारा बहाल करने की मांग की। रेलवे में सीनियर सिटिजन को मिलने वाली रियायत फिर शुरू होनी चाहिए।

80 करोड़ लोगों को ‘मुफ्त राशन’ के सरकारी दावे पर सवाल खड़े करते हुए उन्होंने कहा कि लोगों के हक का राशन देना मुफ्त वितरण नहीं कहा जा सकता। संतोष सिंह ने कहा कि उत्पादन करने वाले लोगों को मुफ्तखोर कहना आपत्तिजनक है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और तमाम राजनेता जो अनाज उत्पादन और खेती-किसानी से सीधे तौर पर नहीं जुड़े हैं, उन्हें अपने गिरेबां में झांकना चाहिए। इन लोगों को समझना चाहिए कि असली मुफ्तखोर कौन है, क्योंकि सरकारें इस देश में भीख मांगने वाले लोगों से भी अलग-अलग तरीकों से टैक्स वसूलती है।

संतोष ने बताया कि प्रशासन की तरफ से उन्हें आश्वासन मिला है कि ट्रेनों के ठहराव से जुड़ी उनकी मांग जल्द पूरी होगी। दो-तीन ट्रेनों का स्टॉपेज फेफना में भी रखने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने दो टूक लहजे में पूछा है कि अगर उनकी जान पर वास्तविक खतरा है तो वे अपनी तरफ से भी सतर्क रहेंगे, लेकिन इस डर से वे अपना आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे। जब तक उनके अंदर ताकत बची है, वे खुद एक आम आदमी होने के नाते पीड़ितों के हक में आवाज बुलंद करते रहेंगे।

संतोष ने इससे पहले 13 मार्च को भी वीडियो पोस्ट किया था। उन्होंने कहा कि इंटेलिजेंस के लोगों ने भी उनकी कुशल पूछी। बलिया पुलिस उन्हें और उनके साथियों को लेकर बीते लगभग एक हफ्ते से सक्रिय है। उन्होंने कहा कि उनके साथियों जनार्दन सिंह, तेजनारायण जी, लक्ष्मण पांडे और बलवंत यादव पर पुलिस की दबिश बढ़ी है। अधिकारी हालचाल लेकर लौट जाते हैं। लेकिन पुलिस की सक्रियता सशंकित भी करती है। संतोष सिंह के मुताबिक अगर जिला प्रशासन उनके दिमाग में यह बात डालने का प्रयास कर रहा है कि उनकी या साथियों की जान को खतरा है, तो प्रशासन को इस संबंध में स्पष्ट बयान देना चाहिए।

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