वाराणसी। सर्व सेवा संघ राजघाट परिसर पर रेलवे द्वारा किए गए अपनी जमीन के दावे के विरोध में परिसर में सविनय अवज्ञा सत्याग्रह चल रहा है। 9 जुलाई को सत्याग्रह के पचास दिन हो गए। पचासवें दिन देश के सर्वोदय मंडलों ने अपनी-अपनी जगह सत्याग्रह किया। इसके पूर्व उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने इस प्रकरण में दखल देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद सर्व सेवा संघ के लोगों ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की। सर्व सेवा संघ की याचिका को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने संज्ञान में लिया। आदेश जारी किया कि प्रकरण मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में है। वाराणसी जिला प्रशासन यथास्थिति को बरकरार रखे। 10 जुलाई को हुई सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने सर्व सेवा संघ प्रकरण में 14 जुलाई की तारीख दी।
इसी दौरान सात जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय दौरे पर वाराणसी आए। सर्व सेवा संघ के लोगों ने पीएमओ से निवेदन किया कि उन्हें प्रधानमंत्री से मिलने का समय दिया जाए। पीएमओ द्वारा निवेदन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर सत्याग्रहियों ने प्रधानमंत्री को सम्बोधित ज्ञापन गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया। ये कहते हुए कि- प्रधानमंत्री खुद को गंगा पुत्र बताते हैं। हमने ज्ञापन उनकी मां गंगा को सौंप दिया है। अब वे ही हमारा ज्ञापन अपने पुत्र को सौंपेंगी।
गंगा में ज्ञापन प्रवाहित किये जाने के बाद से अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है। गंगा ने सर्व सेवा संघ का ज्ञापन अपने पुत्र नरेंद्र मोदी को सौंपा या नहीं सौंपा, इसकी जानकारी नहीं है।
गंगा में पानी बहता जा रहा है। बारिश के पानी के कारण गंगा अपना रंग भी बदल रही है। बादलों की आवाजाही, धूप-छांव की आंख-मिचौली के बीच गंगा के कई रंग देखने को मिल रहे हैं। राजघाट में वरुणा का संगम गंगा में होने के बाद रंग मटमैला भी हो जा रहा है। गंगा और वरुणा के संगम स्थल के ठीक पास स्थित सर्व सेवा संघ परिसर में चल रहे सविनय अवज्ञा सत्याग्रह में भी देश की विविधता और संस्कृति का संगम हो रहा है। विभिन्न क्षेत्रों और बोलियों की बतकही से परिसर गुलजार है। प्रतिरोध की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों को सुन परिसर में खड़े दरख्तों के पत्ते भी अपनी गर्दन मटका रहे हैं।
महात्मा गांधी कहते थे- ”भारत की आत्मा गांवों में बसती है।’ सर्व सेवा संघ परिसर में चल रहे सत्याग्रह में गांवों की आत्मीयता सबसे घुल-मिल रही है। सहज भाव से अपनी बात कह रही है। गांवों से प्रतिदिन महिलाएं और पुरुष सत्याग्रह में शामिल होने आ रहे हैं। हमने ग्रामीण पृष्ठभूमि के लोगों से बात की। ये जानने की कि गांधी, विनोबा, जयप्रकाश की विरासत को बचाने के बारे में वे क्या सोचते हैं?
चिरईगांव ब्लॉक के कमौली गांव की निवासी वंदना सिंह से ये पूछने पर कि ऐसी कौन सी प्रेरणा है, जिसके कारण आप इस सत्याग्रह में लगातार शामिल हो रही हैं? उन्होंने बताया कि ये हमारी विरासत और धरोहर है। हम चाहते हैं कि इस पर कोई भी सरकार कब्जा न करे और न ही दावा करे। गांधीजी का एक सपना गांव और ग्रामीणों को लेकर भी था। वे चाहते थे कि भारत के गांव आदर्श बनें। गांधीजी के सत्याग्रह और विनोबाजी के सपने को हम एक धरोहर के रूप में देख रहे हैं। उसे बचाना चाह रहे हैं। उस धरोहर को बचाने के लिए हम इस सत्याग्रह में शामिल होते हैं। हमारे गांव की और भी महिलाएं आती हैं और कहती हैं कि इस धरोहर को बचाने के लिए हम आपके साथ हैं। इस धरोहर को हम लोग किसी को भी तोड़ने नहीं देंगे। बिखरने नहीं देंगे। इस धरोहर में हमें अपना गांव भी दिख रहा है, जिस पर बाजार की बुरी नजर लग गई है। इस धरोहर में हमें गांधीजी, विनोबाजी, अम्बेडकरजी का सपना दिखता है। इस सपने पर भी बाजार की गिद्ध दृष्टि पड़ गई है। हम इन महापुरुषों के विचारों को जिंदा रखना चाह रहे हैं। विचार जिंदा रहेंगे तभी हमारी विरासत बची रहेगी।
ये पूछने पर कि अगर सुप्रीम कोर्ट भी हाईकोर्ट की तरह फैसला दे दे और प्रशासन इस परिसर को ध्वस्त करने के लिए बुलडोजर लेकर आ जाता है तब आप क्या करेंगी? इसके जवाब में वंदना कहती हैं कि हमारा सत्याग्रह इसी तरह जारी रहेगा। प्रशासन चाहे बुलडोजर लेकर आए, चाहे बंदूक, हम नहीं डरेंगे। अभी हमारे गांव से जितने लोग आ रहे हैं, उससे तीन-चार गुना अधिक लोग बुलडोजर के आगे लेटने के लिए आ जाएंगे। इस विरासत को बचाने का प्रयास हम लोग मरते दम तक नहीं छोड़ेंगे।
चिरईगांव ब्लॉक के जाल्हूपुर से आईं चारू जायसवाल कहती हैं कि इस धरोहर को बचाने के लिए चल रहे सत्याग्रह में हम लगातार आ रहे हैं। हमारे साथ गांव की अन्य महिलाएं, पुरुष और युवा भी आते हैं। इस परिसर को लेकर सरकार जिस तरह मनमानी कर रही है, उसे लेकर हम लोगों में आक्रोश है। गांधीजी, विनोबाजी, जयप्रकाशजी की इस विरासत को सरकार ध्वस्त करना चाहती है। यहां आकर गांधी विचारों के बारे में जानने और सीखने को मिलता है। अगर कल यह धरोहर नहीं रही, तो लोग गांधी विचार को कैसे जानेंगे? इस विरासत को बचाना बहुत जरूरी है। गांधीजी ने जिस भारत की कल्पना की थी, उस भारत के बारे में जानने के लिए गांधी विचारों के प्रचार-प्रसार में लगी इस संस्था को बचाना जरूरी है। यह सरकार गांधी के भारत की जगह देश को बाजार का भारत बनाना चाहती है। आज सरकार जिस तरह इस परिसर के साथ मनमानी कर रही है, हो सकता है कल वो हमारे गांव के साथ भी इसी तरह की मनमानी करे। इस सत्याग्रह के माध्यम से हम चाहते हैं कि सरकार अपनी मनमानी बंद करे। जनता की आवाज को सुने और समझे। सरकार इसमें जितनी रूचि ले रही है, उतनी ही रूचि महंगाई, बेरोजगारी में नहीं ले रही हैं। युवा भाई-बहन पढ़-लिख कर भटक रहे हैं। बेबस होकर ठेले लगा रहे हैं। सरकार इस पर ध्यान क्यों नहीं दे रही है?
मान लीजिये प्रशासन बुलडोजर लेकर आ जाता है, तब आप क्या करेंगी? इसके जवाब में चारू कहती हैं कि हम और अधिक संख्या में इकट्ठे होंगे। पूंजीपतियों के तेल से चल रहा बुलडोजर हमारे ऊपर से गुजरने के बाद ही परिसर के अंदर पहुंचेगा।
सत्याग्रह में लगातार शामिल हो रहे सलमान हैदर उर्फ सलमा किन्नर ने कहा कि आजादी के समय इस देश में ट्रांसजेंडर भी थे, किन्नर समाज भी था और हर समुदाय की आजादी की बात थी। हर व्यक्ति, हर नागरिक के स्वतंत्रता की बात थी। आजादी की लड़ाई में सभी समुदायों, धर्मों और किन्नर समाज के लोग शामिल थे। हम महात्मा गांधी, भगत सिंह, बाबा भीमराव अम्बेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के प्रति आभारी हैं कि आज हम हिन्दुस्तान की धरती पर आजाद हैं। हम अपनी पूरी आजादी के साथ यहाँ जीते हैं। आज देश के अंदर यही सरकार गांधी विचारों का मानमर्दन कर रही हैं। गांधी की बनाई इमारतों पर हमला कर रही है। पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए निजीकरण कर रही है। सर्व सेवा संघ परिसर के पास दस्तावेज हैं, फिर भी इसे झूठा साबित किया जा रहा है। इन सबके पीछे यही साजिश है कि हमारी आने वाली पीढ़ियां गांधी को भूल जाएं। ये लोग गांधी को नहीं मिटा सकते, गांधी के विचार को नहीं मिटा सकते। गांधी के विचारों को बचाने के लिए, सर्व सेवा संघ को बचाने के लिए, देश की जनता को बचाने के लिए हम सब सर्व सेवा संघ के साथ हैं। गांधी, विनोबा के साथ हैं। हम न कभी उनसे अलग थे, न हैं और ना अलग रहेंगे। उन्होंने हमारे लिए लड़ाई लड़ी है, जब तक हमारी सांस चलेगी हम लोग गांधी, विनोबा, जयप्रकाश के लिए लड़ेंगे। इस धरोहर को हम मिटने नहीं देंगे।
ये पूछे जाने पर कि ऐसी बातें लगातार कही जा रही हैं कि सरकार इस पर कब्जा कर पूंजीपति मित्रों को दे देगी? सलमान हैदर कहते हैं- देश के प्रधानमंत्री 2014 के पहले कहते थे कि देश बिक गया। यह प्रधानमंत्री का झूठ है। देश तब नहीं बिका था। देश अब बिकने जा रहा है।
चिरईगांव ब्लॉक के छितौना गांव के निवासी व जल सेना से सेवानिवृत्त सुभाष यादव भी सत्याग्रह में लगातार शामिल हो रहे हैं। सुभाष कहते हैं कि महात्मा गांधी कहते थे कि देश की आत्मा गांवों में है। यह सरकार उसी आत्मा को समाप्त करने पर उतारू है। अतिक्रमण के नाम पर गरीबों का ध्वंस किया जा रहा है। शहरों में आप देखेंगे कि चौक आदि संकरी जगहों पर बुलडोजर नहीं चल रहा है, लेकिन जहां गरीब दिख रहे हैं, वहां बुलडोजर चला दिया जा रहा है।
सर्व सेवा संघ पर कब्जे के माध्यम से गांधी की हत्या के बाद उनकी विचारधारा की हत्या की कोशिश हो रही है। ये लोग बाहर जायेंगे तो कहेंगे कि हम बुद्ध के देश से आये हैं, गांधी के देश से आये हैं, जवाहर लाल नेहरू के देश से आये हैं। यहां देश में इनका ‘एक ही नारा एक ही नाम- जय श्री राम, जय श्री राम…’ चलता है।
ये लोग नाजीवादी हैं। इनका जो कुछ भी है सब जर्मनी (हिटलर) से लिया हुआ है। इनकी टोपी देखिये। इनके वस्त्र देखिये। कुछ भी भारतीय है इनका? इनके बीच से कोई एक नाम बताइये जो आजादी की लड़ाई में रहा हो। देश के इतिहास में इनका कोई योगदान नहीं है, इसलिए ये इतिहास ही मिटा देना चाहते हैं। जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे, शास्त्रीजी आदि लोग मिलकर सर्व सेवा संघ के लिए जमीन खरीदे थे। ये लोग कह रहे हैं कि जमीन कूट दस्तावेजों के सहारे ली गयी थी। जबकि जमीन का पूरा पेपर है। जमीन खरीद के लिए हुए पैसे के लेन-देन का भी ब्योरा है। ये चोरों की तरह रात को आते हैं और जमीन पर कब्जा कर लेते हैं। ये जानते हैं कि कोर्ट दो दिन बंद रहेगी तो कब्जा कर लेते हैं। रात को पुलिस छावनी बनाकर हैलोजन जलाकर कब्जा कर लिए। अगर ये बुलडोजर लेकर आते हैं तो हम भागेंगे नहीं। बुलडोजर के आगे लेट जायेंगे।
सर्व सेवा संघ से अपने विद्यार्थी जीवन से ही जुड़े बड़ागांव निवासी उत्तर प्रदेश सिंचाई आयोग के पूर्व चेयरमैन विजय शंकर पांडेय भी सत्याग्रह में लगातार शामिल हो रहे हैं। सर्व सेवा संघ से अपने जुड़ाव के बारे में वे बताते हैं कि हम लोग विद्यार्थी नेता थे, तो हम लोगों के मन में एक इच्छा थी कि गांधी दर्शन को, गांधी की विचारधारा के बारे में जानकारी की जाए। गांधी विचारधारा के बारे में पुस्तकें उपलब्ध नहीं थीं। इस संस्थान में जब संगोष्ठियां होती थीं, तब हम लोग यहां आते थे। अच्युत पटवर्धन जैसे तमाम लोग, तमाम विचारक अपने विचार रखते थे। तो हम लोगों का यहां आना-जाना शुरू हो गया और लगाव बढ़ता गया। यहीं से छोटी-छोटी किताबें खरीदते। हम लोगों ने चंपारण सत्याग्रह, गांधी और सुभाष जैसी कई किताबें पढ़ीं। पंडित कमलापति त्रिपाठी की लिखी दो-तीन किताबें भी उपलब्ध थीं। हम लोगों ने गांधी विद्या संस्थान के कई शिविरों में भाग लिया। भारत की जो सरकार है, इस धरोहर पर बलात, बलपूर्वक, निर्ममतापूर्वक कब्ज़ा करना चाहती है। सरकार यह कह रही है कि इस भूमि पर लोग अवैध रूप से कब्ज़ा किए हैं। इस संस्थान की स्थापना संत विनोबा भावे ने की, जिन्होंने भूदान में लाखों एकड़ जमीन लोगों से प्राप्त करके गरीबों और स्वयंसेवी संस्थाओं को दान में दे दी। अब सर्वोदयी नेता विनोबा भावेजी, जय प्रकाश नारायणजी और तमाम उच्च कोटि के गांधी विद्या और दर्शन के विद्वानों को ठग कहते हुए कहा जा रहा है कि यह रेलवे की संपत्ति है। कई रेलमंत्री हुए। बनारस के लालबहादुर शास्त्री और पंडित कमलापति त्रिपाठी रेल मंत्री थे। राम सेवक सिंह, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान रेलमंत्री थे। आज़ादी के बाद किसी भी रेल मंत्री ने यह कभी नहीं कहा कि यह जमीन रेलवे की है। लेकिन मोदी सरकार और उसके रेलवे मंत्री कह रहे हैं कि यह जमीन रेलवे की है। इसको खाली कर दो। इसके भवनों पर बुलडोजर चलाएंगे। इसको गिरा देंगे। इस पर कब्ज़ा करेंगे और इस जमीन पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र स्थापित करेंगे। कुछ लोगों ने गोली मार कर गांधी की हत्या की, लेकिन गांधी के विचारों की हत्या नहीं हुई। अब गांधी के विचारों और उनकी विरासत को मिटाने के लिए यह कार्य कर रहे हैं। इसके विरोध में हम सब लोग यहां आये हैं और इसे आगे बढ़ाएंगे। लोगों से मिल-जुलकर जनमानस को तैयार कर एक बड़ा आंदोलन करेंगे। रेलवे की आड़ में यह परिसर किसी पूंजीपति को नहीं लेने देंगे।
सर्व सेवा संघ का प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अभी भविष्य के पलड़े में है। परिसर में स्वछंद विचरण कर रही नीलगाय को इस परिसर का भविष्य नहीं पता है। भविष्य अगर सरकार के पक्ष में जाता है तो ऊपर दर्ज हुई बातचीत के आधार पर अत्यधिक संभावना है कि हरे-भरे परिसर की जगह कंक्रीट का जंगल खड़ा हो जाए। नीलगाय सहित परिसर में आदम जाति के पास बैठने, साथ-साथ टहलने वाले पशु-पक्षियों के लिए कंक्रीट के जंगल में कोई जगह नहीं होगी।
सत्याग्रह के दौरान जितने भी लोगों से बात हुई (कुछ लिखित, कुछ मौखिक) उन सबकी राय में सरकार की मंशा इस परिसर को पूंजीपतियों को सौंपने की है। सरकार और बाजार के गठजोड़ की मंशा ऊपर लगे वीडियो की कुछ पंक्तियों से समझी जा सकती है-
हर चीज बिक रही है, बिकता है दाना दाना
आया है बाबू लोगों, बाजार का जमाना
कैसा जमाना आया पानी भी बिक रहा है
दुनिया में आदमी का ईमान बिक रहा है
बच्चे भी भूल बैठे हंसना या मुस्कुराना
आया है बाबू लोगों, बाजार का जमाना…