संसद के शीतकालीन अधिवेशन में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा अंबेडकर पर की गई टिप्पणी के विरोध में प्रदर्शन के दौरान तथाकथित राहुल गांधी द्वारा दिए गए धक्के से घायल बालासोर के सांसद प्रताप चंद्र सारंगी का इतिहास पहले से ही धब्बेदार रहा है। वर्ष 1999 में फादर ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों को गाड़ी में जला देने का काम इनके विहिप के प्रदेश अध्यक्ष रहने के समय हुई थी। वैसे भी आरएसएस लगातार अल्पसंख्यकों पर हमले करने का काम आज का नहीं बल्कि 1925 के बाद से जारी है। गुजरात का गोधरा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वर्ष 2014 के बाद सत्ता में आने के बाद संविधान विरोधी कामों को बढ़ावा देने का काम कर हिन्दुत्ववादी संगठनों को मजबूत कर इसी तरह का काम करवाने की सुविधा मुहैया करा रही है।
अम्बेडकर जानते थे कि सामाजिक संरचनाओं और गहराई से जड़ जमाए पूर्वाग्रहों को खत्म करने के लिए कानूनी और राजनीतिक सुधार किया जाना जरूरी है। वे चाहते थे कि उत्पीड़ित समुदाय इस के विरोध में आवाज उठाए और सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए उनके साथ हुए अन्याय के खिलाफ आंदोलन करे। सफल आंदोलन के लिए शिक्षा और संगठन के महत्व पर भी जोर दिया। वे कहते थे कि शिक्षित और संगठित समुदाय अपनी शिकायतों को व्यक्त करने, अपने अधिकारों की मांग के लिए और यथास्थिति की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। आज उनके 68वें महापरिनिर्वाण दिवस पर उन्हें याद करते हुए..
भोपाल गैस त्रासदी में हजारों मरने वाले और लाखों पीड़ित लोगों के लिए सरकार कितनी चिंतित थी, यह इस बात से ही पता चलता है कि औद्योगिक आपदा के मुख्य खलनायक - यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के तत्कालीन अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन को तत्कालीन कांग्रेस सरकार के नेताओं ने भगाने में मुख्य भूमिका निभाई। अन्य आरोपियों को भी जमानत मिल गई और अब मुआवजा की राशि के लिए भारत सरकार ने खुद को कानूनी अधिकारी बनाकर पीड़ितों को इस अधिकार से वंचित कर दिया।
महात्मा जोतीबा फुले ने अपने वक्तव्य में कहा है कि ‘उच्च वर्गों की सरकारी शिक्षा प्रणाली की प्रवृत्ति इस बात से दिखाई देती है कि इन ब्राह्मणों ने वरिष्ठ सरकारी पदों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। यदि सरकार वास्तव में लोगों का भला करना चाहती है, तो इन अनेक दोषों को दूर करना सरकार का पहला कर्तव्य है। अन्य जातियों के कुछ लोगों को नियुक्त करके, ब्राह्मणों के प्रभुत्व को सीमित किया जाना चाहिए जो दिनोंदिन बढ़ रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि इस स्थिति में यह संभव नहीं है।
भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस देश की राजनीति की रणनीति तैयार करती है। उसकी रणनीति में पिछड़े-दलित का वोट लेना शामिल होता है लेकिन कल्याणकारी नीतियों में पूरी तरीके से उपेक्षित कर दिए जाते हैं। कहने का मतलब है कि भाजपा के समर्थकों में सवर्णों के साथ भले ही पिछड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा शामिल है लेकिन भाजपा की नीतियों में उनके लिए कोई स्थान नहीं है। जातिवाद की राजनीति करने में सबसे आगे हैं, चाहे वह नौकरी में आरक्षण का मामला हो या राजनैतिक मामला हो या शिक्षा का मामला हो, हर जगह उनके लिए आगे बढ़ने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं।
पितृसत्ता और लैंगिक भेदभाव के कारण महिला को हरदम कम ही आँका जाता है, बावजूद इसके समय आने पर और मौका मिलने पर बेहतर कर दिखाती हैं। कुली के रूप में उसलापुर में काम करने वाली सगुनाबाई की कहानी