बोले समाजसेवी – गांधी विद्या संस्थान को दूसरी संस्था को सौंपना विधि विरुद्ध
वाराणसी। बीते मंगलवार यानी 16 मई को कमिश्नर कौशलराज शर्मा के निर्देश पर एसडीएम (चतुर्थ) आकांक्षा सिंह ताला तोड़ने वाले चार लोगों, कुछ पुलिस वालों और 4-5 अन्य कर्मचारियों व मातहतों को लेकर दोपहर लगभग 11 बजे गांधी विद्या संस्थान के परिसर में जबरन घुस गईं। उन्होंने न सिर्फ कर्मचारियों को डराया बल्कि उन्हें वहां से भगा भी दिया। इसके बाद संस्थान के 16 कमरों के ताले एक-एक कर तोड़ डाले, लाइब्रेरी और हॉल, गेस्ट हाउस, निदेशक आवास में घुस गईं। संस्थान के लोगों ने जब उनसे इस कार्यवाही का कारण पूछा तो उनका जवाब था कि आप जाकर कमिश्नर से बात कीजिए। शाम तक अमला संस्थान में तोड़-फोड़ करता रहा। इसके बाद पुलिस ने सभी कमरों में अपने ताले लगाकर प्राइवेट गार्ड रखकर चली गई। इस कार्यवाही में आदमपुर थाने की पुलिस भी शामिल थी।
जेपी विरासत बचाओ संघर्ष समिति के रामधीरज और विजय नारायण सहित सर्व सेवा संघ (राजघाट) की जागृति राही ने एक विज्ञप्ति के अनुसार संयुक्त रूप से कहा कि हम सभी प्रशासन के इस कार्यवाही का कड़ा प्रतिवाद करते हैं। साथ ही कमिश्नर कौशलराज शर्मा एवं एसडीएम चतुर्थ आकांक्षा सिंह के खिलाफ उचित धाराओं मेंआपराधिक मामला दर्ज करने की मांग करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मांग की कि हमारा एफआईआर तत्काल दर्ज करने के साथ गांधी विद्या संस्थान को अवैध कब्जे से मुक्त कर सर्व सेवा संघ को जल्द से जल्द सौंप दिया जाए।
[bs-quote quote=”संस्थान को लेकर 2007 में अपर जिला जज दशम (वाराणसी) के निर्देश के अनुसार कमिश्नर की अध्यक्षता में एक संचालन कमेटी बनायी गयी थी। इस कमेटी को संस्थान का संचालन करना था, लेकिन कमेटी द्वारा आज तक न तो कोई बैठक बुलाई गयी और न ही इस संदर्भ में सर्व सेवा संघ को कोई सूचना दी गयी। आज अचानक ही कमिश्नर ने इंदिरा गांधी कला केन्द्र को पुस्तकालय सौंपने के लिए आदेश निर्गत कर दिया, जो अन्यायपूर्ण एवं विधि विरुद्ध है। यह भूमि, भवन व पुस्तकें सर्व सर्व संघ की हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]
जागृति राही ने कहा कि 1998 से गांधी विद्या संस्थान पर कब्जे की लड़ाई चल रही है। आरएसएस वालों को गांधी के हर केंद्र पर कब्जा चाहिए। हम लोगों ने गांधी विद्या संस्थान, राजघाट परिसर से इन्हें चार बार भगाया है। पहले प्रो. कुसुमलता केडिया और कपिल मिश्रा के पिता रामेश्वर मिश्र पंकज घुसाए गए। वाजेपयी सरकार में सारा विवाद उन्होंने ही खड़ा किया। बोर्ड द्वारा नौकरी से निकालने के बावजूद उनको समर्थन देकर सरकार ने उन्हें बनाये रखा था। उन्होंने यह परिसर उच्च शिक्षा विभाग को दिया पर वो दो दिन में ही भाग गए। इसके बाद कब्जा कर रहे संस्कृत भारती से भी कैम्पस से कब्जामुक्त कराया गया। फिर यह परिसर एम्बिशन इंस्टिट्यूट को किराए पर दे दिया, उनको भी हटवाया गया। पीएसी से भी परिसर को कब्जामुक्त कराया गया। आखिर में जिलाधिकारी विजय किरण आनंद और यूपी सरकार एक के उच्च शिक्षा मंत्री की मदद से कब्जा कर रहीं प्रो. कुसुमलता केडिया से भी परिसर को मुक्त कराया गया था। इन मामलों को लेकर आज भी कोर्ट में विवाद विचाराधीन है। बावजूद इसके 10 साल बाद वर्तमान कमिश्नर कौशलराज शर्मा ने जबरन कब्जा कर लिया। इस सारे मामले में राष्ट्रिय इंदिरा गांधी कला केंद्र के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम बहादुर राय काफी रुचि रखते हैं। उनकी मदद से गांधी विचार के केंद्रों पर संघ का हमला है जिसमें कमिश्नर कौशल राज अपने लालच के कारण गैरकानूनी रूप से मदद कर रहे है।
उल्लेखनीय है कि, सर्व सेवा संघ परिसर के एक हिस्से में गांधी विद्या संस्थान है, जो विवाद की वजह से बंद है। विवाद के निपटारे के लिए उच्च न्यायालय (इलाहाबाद) में मामला विचाराधीन है। जब से काशी स्टेशन को मल्टीमॉडल स्टेशन और खिड़किया घाट को नमो घाट में तब्दील किया गया है तभी से सर्व सेवा संघ के पूरे परिसर पर प्रशासन की पैनी नज़र है। दिसंबर 2020 में प्रशासन ने परिसर के एक हिस्से पर जबरन अपना कब्जा जमा लिया और काशी कॉरिडोर के वर्कशॉप के लिए ठेकेदारों को आबंटित कर दिया। यह कब्जा अभी भी बना हुआ है। पिछले कई महीनों से प्रशासन के विभिन्न महकमे के लोग इस परिसर के इर्द-गिर्द सर्वे करते रहे हैं। वे किसी न किसी नुक्स का सहारा लेकर इस कैम्पस में घुसना चाह रहे थे, पर ऐसा कोई अवसर नहीं मिला। तब वाराणसी मंडल के कमिश्नर कौशलराज शर्मा ने राष्ट्रीय इंदिरा गांधी कला केंद्र के क्षेत्रीय कार्यालय हेतु गांधी विद्या संस्थान के भवन को उपलब्ध कराना चाहा। कमिश्नर गांधी विद्या संस्थान की संचालन समिति के अध्यक्ष हैं। इस संबंध में कमिश्नर ने एक बैठक भी बुलाई थी, जिसमें सर्व सेवा संघ के प्रतिनिधि रामधीरज ने उपस्थित होकर लिखित रूप से अपना प्रतिवाद दर्ज कराया। इस पत्र में गांधी विद्या संस्थान का मसला हाईकोर्ट में विचाराधीन होने की जानकारी दी गई। यह भी बताया गया कि करार के अनुसार लीज अवधि नवंबर 2023 में समाप्त हो रही है। इस करारनामा में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि ‘गांधी विद्या संस्थान के बंद होने या अन्यत्र चले जाने पर जमीन सर्व सेवा संघ की हो जाएगी। सर्व सेवा संघ इस जमीन पर स्थित भवनों, जिनका निर्माण उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि द्वारा किया गया है, का उपयोग स्मारक निधि की सहमति से कर सकेगा।’
बीते 15 मई, 2023 को अपराह्न 3.45 बजे राजघाट, सर्व सेवा संघ परिसर स्थिति गांधी विद्या संस्थान की लाइब्रेरी का चार्ज कमिश्नर ने मजिस्ट्रेट और काफी संख्या में पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में राष्ट्रीय इंदिरा गांधी कला केंद्र को दे दिया। गौरतलब है कि गांधी विद्या संस्थान का मामला माननीय उच्च न्यायालय (इलाहाबाद) में लंबित है। इसलिए कमिश्नर का गांधी विद्या संस्थान को किसी दूसरी संस्था को सौंपना विधि विरुद्ध है। संस्थान के बाइलॉज के अनुसार सभी चल-अचल संपत्तियां सर्व सेवा संघ को पुन: वापस होनी हैं। इस संबंध में सर्व सेवा संघ उच्च न्यायालय (इलाहाबाद) में वाद दायर किया है, जो विचाराधीन है।
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जागृति राही के अनुसार, संस्थान को लेकर 2007 में अपर जिला जज दशम (वाराणसी) के निर्देश के अनुसार कमिश्नर की अध्यक्षता में एक संचालन कमेटी बनायी गयी थी। इस कमेटी को संस्थान का संचालन करना था, लेकिन कमेटी द्वारा आज तक न तो कोई बैठक बुलाई गयी और न ही इस संदर्भ में सर्व सेवा संघ को कोई सूचना दी गयी। आज अचानक ही कमिश्नर ने इंदिरा गांधी कला केन्द्र को पुस्तकालय सौंपने के लिए आदेश निर्गत कर दिया, जो अन्यायपूर्ण एवं विधि विरुद्ध है। यह भूमि, भवन व पुस्तकें सर्व सर्व संघ की हैं। 1962 में यह संस्थान लोकनायक जयप्रकाश नारायण के मार्गदर्शन में स्थापित किया गया था। इस संस्थान का उद्देश्य गांधी विचार के आधार पर चल रहे कार्यक्रमों का अध्ययन करना और समाज विज्ञान से जोड़ना था। लेकिन कमिश्नर द्वारा अचानक इस संस्थान को कब्जा कर एक सरकारी संस्थान को देना अनुचित, अन्यायपूर्ण और अवैधानिक है।
विज्ञप्ति के माध्यम से सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि हम सभी प्रशासन की इस कार्यवाही का प्रतिवाद करते हैं और गांधी विद्या संस्थान को मुक्त कर सर्व सेवा संघ को सौंपने की माँग करते हैं।
इस माँग के पूरे होने तक शांतिपूर्ण धरना करने वालों में रामधीरज, जागृति राही, विजय नारायण, धनन्जय त्रिपाठी, वल्लभाचार्य पांडे, विद्याधर, संजीव सिंह, इंदु पांडे, अनूप श्रमिक, जितेंद्र, कहकशा, सतीश सिंह, रामजनम, सौरभ सिंह, राजीव, पुतुल (उ.प्र.), आनंद कुमार (गोवा), सुनीलम, रणधीर गौतम, रेणुका (मध्यप्रदेश), सुरेश खैरनार, तरंग आशा हवीब, ज्ञानेन्द्र कुमार, सतीश गोगुलवार, वीरेन्द्र कुमार (महाराष्ट्र), मंथन, रामकवीन्द्र, अम्बिका यादव, भाषाण मानमी, कुमार दिलीप, सुदर्शन भूमिज, अशोक विश्वराय, प्रवीर पीटर, घनश्याम, मिथिलेश दांगी (झारखंड), रामशरण, बागेश्वर बागी, प्रियदर्शी, योगेन्द्र, कुमकुम भारद्वाज, सुशील कुमार, शाहिद कमाल (बिहार), मणिमाला (दिल्ली), महेन्द्र तारनेकर (नागपुर), अरविंद अंजुम (जमशेदपुर) आदि समाजसेवी शामिल हैं।
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