Thursday, April 25, 2024
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सर्व सेवा संघ परिसर पर किये गए अवैध कब्जे के खिलाफ शास्त्री घाट में हुई जनप्रतिरोध सभा

वाराणसी। शास्त्री घाट पहुंचे किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि ट्रैक्टर ने कोई तय करके नहीं रखा है कि दिल्ली ही जाएगा, ट्रैक्टर की...

यह तय करने की जरूरत है कि देश में गांधी का विचार रहेगा या गोडसे का- संदीप पाण्डेय

वाराणसी। सरकार द्वारा सर्व सेवा संघ के वाराणसी परिसर पर अवैध कब्जे के खिलाफ, भारत छोड़ो आंदोलन दिवस के अवसर पर सर्व सेवा संघ...

समाजसेवियों ने की गांधी विद्या संस्थान को मुक्त कर सर्व सेवा संघ को सौंपने की माँग

बोले समाजसेवी - गांधी विद्या संस्थान को दूसरी संस्था को सौंपना विधि विरुद्ध वाराणसी। बीते मंगलवार यानी 16 मई को कमिश्नर कौशलराज शर्मा के निर्देश...

महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है कस्तूरबा का संघर्ष

कस्तूरबा गांधी 'बा' की जयंती पर दख़ल के सदस्यों ने किया स्त्री विमर्श वाराणसी। कस्तूरबा गांधी 'बा' के जयंती पर गाँधी घाट (सुबह-ए बनारस-मंच अस्सी...

गांधियों… रास्ता छोड़ो!

आखिर ये गांधी सरनेम वाले, कब तक मोदीजी के रास्ते में आते रहेंगे। पहले नेहरू सरनेम की आड़ में बेचारों को कभी इसके, तो...

वायकम के मंदिर प्रवेश आंदोलन में पेरियार की भूमिका को भुला देने के निहितार्थ

यह वही त्रावणकोर राज्य था जहाँ दलित गुलामी की जिंदगी जीते थे और नाडार, शांनार, इझवा, पुलाया, पराया, जातियों की महिलाओं को ब्लाउज पहनने का अधिकार नहीं था क्योंकि ब्राह्मणवादी सत्ता ये चाहती थी कि अवर्ण समाज की महिलायें ब्राह्मणों और नायर महिलाओं की तरह नहीं दिखनी चाहिए। जातीय उत्पीड़न से तंग आकर जब इन वर्गों की महिलाओं ने क्रिश्चियानिटी को अपनाया तो कुछ बदलाव नज़र आने लगे। क्योंकि यूरोपियन सत्ता अब इसे नियंत्रण कर रही थी इसलिए महाराज 1829 में शानार महिलाओं (जो ईसाई बन गई थीं) को कूपायन यानि ऊपरी वस्त्र पहनने कि अनुमति दे दी।

भारतीय राजनीति के विपरीत ध्रुव हैं अम्बेडकर और सावरकर

इंडियन एक्सप्रेस (3 दिसंबर, 2022) में प्रकाशित अपने लेख नो योर हिस्ट्री में आरएसएस नेता राम माधव लिखते हैं कि राहुल गांधी, अम्बेडकर और...

कांग्रेस के अध्यक्ष का सवाल और अशोक गहलोत

देश एक बड़े राजनीतिक संकट से गुज़र रहा है, इस संकट की बुनियाद में पूँजीवादी लूट को सहज और सुगम बनाने की साजिश है...

जम्मू-कश्मीर के दलित-बहुजनों की फिक्र, डायरी (3 जून, 2022) 

निष्पक्षता मुमकिन नहीं है। अब तक यही मानता आया हूं। बहुत हुआ तो कोई आदमी बहुत हद तक निरपेक्ष बने रहने की कोशिशें कर...

आरएसएस का नया नॅरेटिव  (डायरी 27 अप्रैल, 2022)

सियासत कोई ऐसा पेशा नहीं है, जिसे ना किया जाय। यह बात इसके बावजूद कि सियासत से सत्ता में हिस्सेदारी मिलती है और बाजदफा...

फैज़ की रचनाओं से तानाशाह का डरना लाज़िम है (डायरी 24 अप्रैल, 2022)

बीती रात राजस्थान की राजधानी जयपुर आया। यहाँ की यह मेरी पहली यात्रा है। इस यात्रा में जाे कुछ हासिल हो रहा है, वह...

इब्न-ए-गांधी हुआ करे कोई, डायरी (22 अप्रैल, 2022)

बात वैसे तो बहुत मामूली है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भारत के दो दिवसीय दौरे पर हैं। हाल के वर्षों में एक नया ट्रेंड...

गांधी-आंबेडकर की जीत और आरएसएस की हार (डायरी 15 फरवरी, 2022)

भारतीय समाज का वह तबका कौन है जो हिंसा में सबसे अधिक विश्वास रखता है? यह सवाल बेवजह का सवाल नहीं है। इस सवाल...

झूठ का पुलिंदा है वाय आई किल्ड गांधी

हाल में रिलीज हुई फिल्म वाय आई किल्ड गांधी महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करने का प्रयास है। इस फिल्म की...

भारत में सामाजिक अन्याय को ऐसे भी समझिए (डायरी 8 फरवरी, 2022)

सामाजिक अन्याय का कोई एक रूप नहीं होता और इसे अंजाम देनेवालों का पैंतरा भी कमाल का होता है।सबसे दिलचस्प यह कि अपना वर्चस्व...

जूम करके देखिए गांधीवाद और गोडसेवाद (डायरी 30 जनवरी, 2022)

आज फिर 30 जनवरी है। यह मौका है भारत में भगवा आतंकियों के सबसे पहली कार्रवाई को याद करने का। वही आतंकी कार्रवाई, जिसमें...

नेहरू और सुभाष के बीच पत्र व्यवहार

पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा संपादित एक ग्रंथ है जिसमें उन्हें संबोधित अनेक पत्र प्रकाशित किए गए हैं। इन पत्रों का चयन स्वयं श्री जवाहरलाल...

क्या अब हिंदुत्व की हिमायती फासीवादी ताकतें अपना ध्यान सांप्रदायिकता से अछूते प्रदेशों पर केंद्रित करने वाली हैं?

धर्म संसद के नाम पर समाज में हिंसा का जहर घोलने की सुनियोजित कोशिशें धीरे-धीरे अपना असर दिखाने लगी हैं। हिंसा को स्वीकार्य बनाकर...

अलविदा 2021! (डायरी 31 दिसंबर, 2021)

वर्ष 2015 के बाद से यह पहला मौका है जब वर्ष के सबसे अंतिम और नये वर्ष के पहले दिन मैं अपने परिजनों के...

जिन्ना पर अखिलेश यादव की टिप्पणी : समकालीन राजनीति पर साम्प्रदायिकता की छाया

हमारे देश में जैसे-जैसे साम्प्रदायिकता का बोलबाला बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे राजनैतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सांप्रदायिक प्रतीकों और नायकों के...

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