यह वही त्रावणकोर राज्य था जहाँ दलित गुलामी की जिंदगी जीते थे और नाडार, शांनार, इझवा, पुलाया, पराया, जातियों की महिलाओं को ब्लाउज पहनने का अधिकार नहीं था क्योंकि ब्राह्मणवादी सत्ता ये चाहती थी कि अवर्ण समाज की महिलायें ब्राह्मणों और नायर महिलाओं की तरह नहीं दिखनी चाहिए। जातीय उत्पीड़न से तंग आकर जब इन वर्गों की महिलाओं ने क्रिश्चियानिटी को अपनाया तो कुछ बदलाव नज़र आने लगे। क्योंकि यूरोपियन सत्ता अब इसे नियंत्रण कर रही थी इसलिए महाराज 1829 में शानार महिलाओं (जो ईसाई बन गई थीं) को कूपायन यानि ऊपरी वस्त्र पहनने कि अनुमति दे दी।