‘रामदुलार गोंड ने पहले थाने पर जाकर गलती स्वीकारी और बीस हज़ार रुपये देकर मामले को रफ़ा-दफा करना चाहा।’ यह कहते हुये रामसेवक प्रजापति के चेहरे पर यातना और कठोरता का भाव साफ दिखता है। इस मामले में कोई बात करना उनके लिए आसान नहीं है। उनके हाथ मिट्टी से सने हैं और वे कुल्हड़ बना रहे हैं। मुझसे बात करने में भी वे कई दिनों तक असमंजस में रहे इसलिए मिलने के लिए तय दिन उन्होंने फोन ही नहीं उठाया, लेकिन अब जब मैं उनके घर पहुँच गया था, तब उन्होंने कोई ऐतराज नहीं किया।
चाक चलाते हुए ही वे बात करते रहे, ‘लेकिन मैं क्यों मामले को रफ़ा-दफा करता। उसने मेरी अबोध बहन की इज्ज़त और ज़िंदगी चौपट कर दी। आज उसके बारे में सोचकर ही कलेजा कांप उठता है। इस घर में जन्म लेना उसका अपराध हो गया और वह पूरे जीवन इसकी सज़ा भुगतेगी।’
इस उदास दोपहर में रामसेवक का पूरा घर ऐसे लग रहा है, जैसे यहाँ से कोई प्रियजन बाहर चला गया है और चारों ओर सन्नाटा छाया है। आँगन में रामसेवक के तीन बच्चे खेल रहे हैं। उनकी बीमार पत्नी किरण बैठी हुई हैं और माँ मुझे बैठने के लिए कुर्सी ले आ रही हैं। रामसेवक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति हैं। इसीलिए लालच, उत्पीड़न और धमकियों से कभी नहीं डरे और न्याय के लिए संघर्ष करते रहे।
वे बताते हैं, ‘मैं नौ साल तक लड़ता रहा। इन नौ सालों के संघर्ष में घर की जमा-पूंजी ही नहीं खर्च हो गई, बल्कि एक बीघा खेत भी बेचना पड़ा। मैं अपनी बहन के न्याय के लिए एक ऐसे दरिंदे से लड़ा जो अपने पैसे और सत्ता की ताकत से हमें खा जाना चाहता था, लेकिन जब घिर गया तो चालीस लाख देकर समझौता करना चाह रहा था। मैंने कहा कि क्या तुम मेरी बहन का बचपन दे सकते हो। जो कलंक उसके ऊपर लगा है, उसे धो सकते हो? नहीं झुका मैं।’
म्योरपुर बाज़ार से फोन लगाने पर जब रामसेवक ने नहीं उठाया तो उपाय यह निकला कि म्योरपुर साप्ताहिक हाट में चला जाय। वहीं वे मिल सकते हैं। इसलिए हवाई अड्डे के उत्तर दिशा में लगे हाट में गया। वहाँ कई लोगों ने घड़े-कुल्हड़-कसोरे आदि की दुकान लगाई थी। पूछने पर एक दुकानदार ने बताया कि बगल वाली दुकान रामसेवक के पिता की ही है, जो अभी कहीं गए हैं। उनका छोटा भाई यह बैठा है।
थोड़ी देर में रामसेवक के पिता आ गए और रामसेवक के बारे में बताया कि वे घर पर मिलेंगे। दोपहर तक अपनी पत्नी को दवा दिला कर लौट आए हैं। इसलिए आप घर चले जाइए। उन्होंने यह भी बताया कि रामदुलार गोंड के बेटे और भाई ने धमकियाँ दी हैं कि विधायकजी को जेल से निकलने दो। पूरे परिवार को तबाह कर देंगे।
रामसेवक ने भी इस धमकी के बारे में बताया और यह कहा कि मैंने यह बात कोर्ट में दर्ज़ करा दिया है और दो सिपाही हमारी सुरक्षा में लगाए गए थे, लेकिन मैंने वापस कर दिया। वे कहते हैं, ‘कब तक जान से डरूँगा। कब तक कोई हमारी रक्षा करेगा। खुद ही लड़ना होगा। डरने के लिए पहले कम खतरे नहीं थे। तब नहीं डरे तो अब क्या डरेंगे।’
रामसेवक सोनभद्र जिले के म्योरपुर ब्लॉक की उस पीड़िता के बड़े भाई हैं, जो नाबालिग उम्र में दुद्धी के भाजपा विधायक रामदुलार सिंह गोंड के यौन उत्पीड़न और बलात्कार की शिकार होकर उसके बच्चे की माँ बन गई। उन दिनों रामदुलार गोंड ग्राम प्रधान था और पड़ोसी होने के नाते रामसेवक के घर भी आता था। तब किसको उम्मीद थी कि उसकी नज़र कहाँ पर है।
वह कहते हैं, ‘बहुत दुखद है उन दिनों की याद, लेकिन उसे अपने दिमाग से निकाल भी नहीं पा रहा हूँ।’
रामदुलार गोंड की विधायकी चली गई, लेकिन सड़क से विधायक का बोर्ड नहीं हटा
रामसेवक का गाँव रासपहरी है। यह रेणुकूट-म्योरपुर मार्ग पर म्योरपुर बाज़ार से दो किलोमीटर पहले सड़क के पूर्वी किनारे पर है। मुख्य सड़क से एक गिट्टी वाली सड़क गाँव को जाती है, जिस पर दुद्धी के विधायक रामदुलार गोंड के नाम के दो बोर्ड लगे हैं। रासपहरी गाँव में घुसने पर रामदुलार गोंड के दो मकान दिखते हैं। उसके बाद दस-पंद्रह घर कुम्हार जाति के लोगों के हैं। लगभग सभी के यहाँ मिट्टी के बर्तन बनाने का काम होता है। रामसेवक का घर मुख्य सड़क से पीछे है।
रामदुलार गोंड दुद्धी विधानसभा से विधायक था, लेकिन 15 दिसंबर को नाबालिग से रेप का दोषी सिद्ध होने पर एमपीएमएलए कोर्ट ने उसे पच्चीस वर्ष की सज़ा सुनाई और दस लाख रुपये का जुर्माना लगाया। सज़ा होने पर रामदुलार गोंड की विधायकी चली गई। इसके बावजूद उसके नाम का बोर्ड जस का तस है। उसके घर के सामने से गुजरने पर पूरब वाले घर में ताला लटका मिला और अंदर खड़ी गाड़ी पर भाजपा विधायक का स्टिकर लगा था। एक ग्रामवासी ने कहा कि एक गाड़ी से स्टिकर हटा दिया गया है, लेकिन दूसरी गाड़ी से अभी नहीं हटाया गया है।
दुद्धी बाज़ार से गुजरते हुए रामदुलार गोंड के दर्जनों होर्डिंग और पोस्टर दिखते हैं। हालाँकि ये सब पुराने कार्यक्रमों और आयोजनों के हैं, लेकिन गाँव रासपहरी में गोंड का परिवार अभी भी धौंस-धमकी के जरिये अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश में लगा है।
रामसेवक कहते हैं कि ‘रामदुलार के भाई और बेटे अभी भी लोगों से कहते फिर रहे हैं कि वह जल्दी ही जेल से छूटेगा। तब देखते हैं, ये लोग कैसे गाँव में रहते हैं। इसीलिए एक दिन वे हमारे परिवार को भी धमका रहे थे। लेकिन हमलोग उससे नहीं डरते।’
मैंने जितने लोगों से बात कि उनमें से ज़्यादातर लोगों ने रामदुलार गोंड की बदतमीजियों और उजड्ड व्यवहार की भर्त्सना की, लेकिन बातचीत करते हुये उन लोगों ने कहा कि मेरा नाम मत छापिएगा। म्योरपुर बाज़ार में मिले एक सज्जन कह रहे थे कि ‘रामदुलार बहुत बदमाश और बदतमीज रहा है। पता नहीं कैसे बीजेपी ने उसे इतना आगे बढ़ने दिया। वह कभी किसी को कुछ समझता ही नहीं था। लोगों से गाली देकर बात करता था।’ वहीं मौजूद दूसरे व्यक्ति ने बताया कि यह कोई पहला कांड नहीं है, जिसमें एक मासूम लड़की को उसने शिकार बनाया। बस यह फँसा इस बार है, लेकिन अपनी ही जाति की एक और लड़की के साथ भी उसने यही किया था। तब नाराज गोंडों ने उसे इतना पीटा कि मरा जानकर ही छोड़ा।’
दुद्धी और राबर्ट्सगंज में वकालत करने वाले एक स्थानीय अधिवक्ता कहते हैं कि ‘रामदुलार पर मुकदमा 2014 में दर्ज़ किया गया और वह विधायक 2022 में बना। बीजेपी का नेतृत्व यह बात जानता था, लेकिन फिर भी उसे टिकट दिया और जितवाने में पूरा ज़ोर लगा दिया। पीड़िता का परिवार बरसों न्याय के लिए भटकता रहा है, जबकि उनका अपराधी सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ता रहा।’
पहले फुसलाया और जब देखा कि नहीं मानेंगे तो धमकी पर उतर आया विधायक
रामसेवक ने 2014 में म्योरपुर थाने में रामदुलार गोंड के खिलाफ अपनी बहन के यौन उत्पीड़न और रेप की रिपोर्ट दर्ज़ कराने गए। उन दिनों रामदुलार की पत्नी सुरतन गोंड ग्राम प्रधान थी और रामदुलार प्रधानपति या प्रतिनिधि। प्रधान के पास स्थानीय सत्ता, पहुँच और पैसा था। उसके मुक़ाबले पीड़िता का परिवार कमजोर और निर्धन था। इसलिए थाने पर उनकी तुरंत सुनवाई नहीं हुई, लेकिन एक नाबालिग लड़की गर्भवती थी और उसने थाने में यह कहा कि रामदुलार पिछले एक साल से उसके साथ दुष्कर्म करता आ रहा है। तब कहीं जाकर मुकदमा दर्ज़ हुआ, लेकिन अपराधी को सज़ा दिलाने में नौ बरस लग गए।
‘पहले वो घर आ रहा था। जो हमारे घर के अगल-बगल के हैं। वह उनसे बुलवा रहा था कि जाके लड़की को बुला करके ले आओ काम है। हम लोग सोचे भाई गाँव का प्रधान है। जरूर कुछ बात होगा तभी न बुलाया है। लड़की कुछ बताती नहीं थी, लेकिन जब तीन महीना बीत गया तब बताई। हमारे लिए तो यह बज्रपात था। उसको डांटने लगा तब बताई कि वह धमकियाँ दे रहा था कि अगर बताओगी किसी को घर पर जाके तुम्हें और तुम्हारे परिवार को मार देंगे जान से। इसलिए वो डर के मारे बता नहीं रही थी। जब लास्ट घटना में वो खेत में गयी थी और किसी तरह छूट के आयी तो हम लोगों से वह बात बताई कि भइया ऐसी-ऐसी बात है और वह मुझे एक साल से परेशान कर रहा है।’
रामसेवक बताते हैं, ‘उसी दिन, जिस दिन बहन ने हमको यह बात बताई तो हम उसे लेकर गए और FIR कराया। लेकिन जैसे ही इसकी खबर रामदुलार को लगी, वह हमको मना करने लगा कि नहीं, FIR मत कराओ। पहले फुसलाया और जब देखा कि नहीं मानेंगे तो धमकी पर उतर आया। कहने लगा कि हमसे बुरा कोई नहीं होगा। हमको अभी जानते नहीं हो। इसके बाद गली-गलौज भी करने लगा और थोड़ी देर में 20-25 आदमियों को लेकर के आ गया हमारे घर मार करने। कहने लगा कि तुम देखे हो, तुम जानते हो कि यह मैंने किया है। लड़की झूठ बोलती है। मैंने कहा- लड़की बयान कर रही है, तो उसने कहा- लड़की पर कोई विश्वास नहीं कर रहा है।’
‘वह एफआईआर वापस लेने का दबाव बनाने लगा।’ वह कहते हैं, ‘लेकिन हम तब पर भी हम नहीं माने और FIR वापस नहीं लिए।’
‘आप ही बताइए। एक छोटी लड़की क्यों झूठ कहेगी? वह भी उस आदमी के बारे में जिसकी पत्नी प्रधान थी और जो दबंग था।’ रामसेवक की पत्नी किरण ने कहा।
रामसेवक कहते हैं, ‘जब देखा कि उसकी धमकी से डरकर हम एफआईआर वापस लेने वाले नहीं हैं, तो उसने उल्टा दांव चलना शुरू किया। कहता तुमको छोड़ेंगे नही अब। और फिर उल्टे मुझ पर और मेरा साथ देने वाले लोगों पर मुकदमा करवाया कि दबाव में आकर एफआईआर वापस ले लें। उसको लगा कि अगर ऐसा करेंगे तो ये लोग सुलह करेंगे।’
रामसेवक के खिलाफ एक रामदुलार के आदमियों ने एक मामला इलाहाबाद से दर्ज़ कराया। उस मामले में उन्होंने इलाहाबाद तक काफी दौड़भाग की और उस पर स्टे लग गया। एक दूसरा मामला राबर्ट्सगंज से दर्ज़ हुआ, जो अभी भी चल रहा है। इसके अलावा रामसेवक की मदद करने वालों पर भी मुकदमा कराया। काफी समय थाना-पुलिस-कचहरी का चक्कर चलता रहा। अभी भी उन लोगों का केस चल रहा है।
वह कहते हैं, ‘बहुत परेशान हुए हम लोग। बहुत दबाव दिया। किसी तरह से तो लड़ पाए। कुल डेढ़ बीघा थी, उसमें से 1 बीघा जमीन भी बेच दिए। दो वकीलों ने हमारी बहुत मदद की। एक तो विकास शाक्य और दूसरे रामजियावन यादव ने।’
‘जब रामदुलार गोंड किसी तरह सफल नहीं हुआ तो समझौते पर उतर आया। शुरू में जब हम धमकी और गाली-गलौज से नहीं माने तब थाने में एक दिन गया था और हाथ-पैर जोड़ के आया कि भैया गलती हो गई है। आज के बाद ऐसा नही होगा। 20 हजार में सुलह करवा रहा था। थाने से एक आदमी आया और वहीं रुपये रख कर चला गया और बोला ले लो जो मिल रहा है। नहीं तो यह भी चला जाएगा।’ उन्होंने दीवार में बने ताखे की ओर इशारा किया।
‘फिर मैंने अपने वकीलों को फोन किया। वकील ने एसपी के यहाँ दरख्वास्त दिलवाई। जब एसपी ने दारोगा को दबाव देकर सुलह कराने के लिए डांटा तो एक सिपाही आकर रुपए उठाकर ले गया।’
‘जब उस पर पाक्सो के तहत केस दर्ज़ हो गया और कानून का शिकंजा कसने लगा तो उसकी बेचैनी बढ़ गई। वह हर तरह से कोशिश कर रहा था कि उसकी फाइल हाइ कोर्ट चली जाए। वहाँ बचने की संभावना थी, लेकिन हमारे वकील ने भरोसा दिलाया कि ऐसा कुछ नहीं होगा। उन्होंने बताया कि बिना यहाँ से जजमेंट हुए मामला हाइकोर्ट नहीं जा सकता। लड़ाई लंबी चली। तीन जज बदलने के बाद फैसला हुआ था हमारा। तब भी वह कोशिश कर रहा था कि समझौता हो जाय। 40 लाख रुपये देने को तैयार था। हम नहीं लिए। हम कहे इज्जत से बढ़ कर हमारे लिए रुपया नहीं है। आज आएगा कल चला जाएगा।’
फैसला होने के कुछ महीने पहले तक रामदुलार ने हर तरह का दबाव बनाया। रामसेवक कहते हैं, ‘वह लड़की की ससुराल का पता लगाकर वहाँ के प्रधान से फ़ोन से संपर्क किया था और प्रधान पर दबाव दे रहा था कि जाकर उससे कहो कि सुलह कर लो। 2- 3 लाख रुपये देने के लिए बोल रहा था। इसके बाद बहन मुझसे बोली की ऐसी-ऐसी बात है भइया। वे लोग मुझ पर दबाव डाल रहे हैं। हम उससे प्रधान का नंबर मांगे और उनसे बात किए कि ऐसा है, अभी उसका केस चल रहा है। लड़की से कुछ मत बात करिएगा।’
मैंने रामसेवक से पूछा कि गाँव में आपका किन लोगों ने साथ दिया तो उन्होंने बताया कि यहाँ 20-25 घर प्रजापति हैं लेकिन किसी ने हमारा साथ नही दिया है। साथ देने वाले केवल वही रामदयाल अगोरा हैं, जो यहाँ के प्रधान हैं, लेकिन रामदुलार ने उनको भी फर्जी मुकदमे में फँसा दिया था।’
कई बड़े प्रश्न अभी भी मुंह बाए खड़े हैं
रामसेवक और उनके परिवार ने हार न मानी और अंततः अपराधी को सज़ा हुई। यह बेशक उनकी हिम्मत और धैर्य की जीत है। इसके बावजूद कई बड़े सवाल अब भी मुंह बाए खड़े हैं।
उन्होंने बहन की शादी सोनभद्र से काफी दूर कर दी है। नाबालिग अवस्था में ही उसने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची फिलहाल नौ साल की है। जिस व्यक्ति से उसकी शादी हुई, वह उससे दो गुने से भी ज्यादा उम्र का है और उसकी पहली पत्नी से उसका एक बेटा है। उसने उस बच्ची को भी स्वीकार कर लिया है और उसे पढ़ा-लिखा रहा है।
रामसेवक की पत्नी इस प्रसंग को कहते हुए अपने आँसुओं को नहीं रोक पातीं, ‘इस बारे में क्या कहूँ। कलेजा फटता है। दुगुने से भी ज्यादा उमर के आदमी के साथ शादी करनी पड़ी। लगता है जैसे पति नहीं बाप है, लेकिन क्या करूँ। उसकी बेटी दो-तीन साल की हो गई थी तो गाँव-घर के लोग भी ताना मारने लगे कि बिना बाप की बेटी पैदा कर दी है।’
रामसेवक स्वयं भी इस प्रसंग से बहुत विचलित लगते हैं। उन्होंने कहा, ‘मज़बूरी में 45-50 साल उम्र के आदमी से शादी कर दिया है। दोनों साथ चलते हैं तो लगता है कि बाप-बेटी हैं। उसकी जिंदगी बर्बाद हो गई है, यहाँ घर में भी तो भद्दा लग रहा था। एक बच्ची भी साथ में थी। अब वह बच्ची बड़ी हो रही है। उस आदमी का बड़प्पन है कि उसे अपना लिया, लेकिन कल जब वह बड़ी होगी और शादी-ब्याह का सवाल आएगा तो क्या होगा?’
रामसेवक का बड़ा बेटा अभी तेरह-चौदह साल का ही है, लेकिन वह पढ़ाई के साथ चाक चलाकर बर्तन बनाता है। उनकी दो बेटियाँ अभी छोटी हैं। एक छोटा भाई है, जो पढ़ाई के साथ ही पिता के साथ हाट-बाज़ार में मदद करता है।
न्याय पाने की उम्मीद में खेती की ज़मीन बिक गई और आगे बहुत कठिन जीवन है। आर्थिक दिक्कतों का कोई अंत नहीं है। रामसेवक कहते हैं, ‘इनसे भी लड़ूँगा। हार तो नहीं मानूँगा। एक कुकर्मी से लड़ता रहा न बिना डरे। अब जीवन की कठिनाइयों से लड़ूँगा।’
वह मुस्कराते हैं, लेकिन अपनी पीड़ा को पूरी तरह छिपा नहीं पाते।