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ग्राउंड रिपोर्ट

भारत में बुलडोजर की राजनीति इज़राइल से आई है

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए, दो सिंतबर, सोमवार को साफ-साफ शब्दों में कहा कि 'अगर कोई व्यक्ति आरोपी है तो प्रॉपर्टी गिराने की कार्रवाई कैसे की जा सकती है? जस्टिस विश्वनाथ और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि ‘अगर कोई व्यक्ति दोषी भी हो तब भी ऐसी कार्रवाई नहीं की जा सकती है।' जमीयत ने आरोप लगाया है कि ‘बीजेपी शासित राज्यों में मुसलमानों के ऊपर कार्रवाई की जा रही है।' जबसे उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और अब मोहन यादव ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला,  उनके भीतर जैसे कोई स्पर्द्धा चल रही है कि सबसे उग्र हिंदूत्ववादी कौन है?।

हाल ही में एक ट्वीट में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि अगर योगी आदित्यनाथ को बुलडोजर  का इतना ही शौक है तो एक नई पार्टी बनाएँ और उसका चुनाव चिन्ह बुलडोजर रख लें। समझ में आ जाएगा कि उनकी वास्तविक हैसियत क्या है?

सत्ता के नशे में योगी आदित्यनाथ ने सारी संवैधानिक मर्यादाओं को न केवल ताक पर रख दिया बल्कि धार्मिक और जाति-उन्माद में अपनी मानवीय संवेदनाओं को भी गोमती में बहा दिया। उनको बुलडोज़र से इतना प्यार है कि भाजपाई लोग उन्हें बुलडोज़र बाबा कहते हैं और वह गर्व करते हैं।

वर्ष 2022 के बाद दुबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर एक्शन तेजी से बढ़ा। आदित्यनाथ ने अपने 8 वर्ष के मुख्यमंत्रित्व काल में 186 एनकाउंटर किए।  अभी उनके दूसरे कार्यकाल के दो वर्ष बाकी हैं। इस एनकाउन्टर में मरने वालों में मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या अधिक है।

वैसे ही बुलडोजर से प्रॉपर्टी को ध्वस्त करने की अधिकांश घटनाओं में, कुछ  अपवाद छोड़ दिया जाए, सभी सपा से संबंधित हैं। इनमें सभी प्रॉपर्टी मुस्लिम समुदाय के लोगों की है।

भारत में बुलडोजर की राजनीति इज़राइल का अनुकरण है 

लगता है भारत में भाजपा ने अपने सत्तासीन प्रदेशों में बुलडोजर चलाकर प्रॉपर्टी ध्वस्त करने का अनुकरण इज़राइल को देखकर ही शुरू किया। इस शताब्दी की शुरुआत में बुलडोजर चलाकर इमारत ध्वस्त करने का काम इज़राइल में एरिएल शेरॉन ने गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक-19 तथा येरुशलम शहर में फिलिस्तीनी लोगों के साथ किया था।

अप्रैल 2002 में इज़राइल की तरफ से, वेस्ट बैंक-19 के जेनिन कैम्प पर लगातार 75 घंटे बुलडोजर चलाने का विश्व रिकॉर्ड मौजूद है। इज़राइली सरकार ने फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ वेस्ट बैंक-19 के जेनिन कैम्प को बर्बाद करने का काम एक अप्रैल से अठारह अप्रैल, 2002 तक किया। उसी वर्ष गुजरात के गोधरा में दंगे भी हुए थे।

हमारे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना भले ही हिटलर के स्टॉर्म स्टुपर्स और बेनिटो मुसोलिनी के बलाला बच्चों के संगठनों से प्रभावित होकर हुई हो लेकिन वर्तमान में संघ तथा भाजपा का रोल मॉडल इज़राइल है, क्योंकि पिछले 76 सालों से (16 मई 1948 ) फिलिस्तीन की जमीन पर उनकी मर्जी के खिलाफ युद्धरत है, जिसके कारण फिलिस्तीनियों की जिंदगी नर्क हो गई है।

उसकी ही तरह संघ तथा उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा ने भारत में रह रहे मुसलमानों को हमेशा निशाने पर रखा। भाजपाशासित राज्य में वर्ष 2002 के गुजरात दंगे से लेकर भाजपा शासित राज्यों में बुलडोजर चलाने तक कार्रवाई खुले आम करने में पीछे नहीं रहे हैं।

लेकिन 2 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने भाजपा तथा संघ के मुंहपर अपनी सुनवाई के दौरान फटकार लगाते हुए निर्णय दिया।

 बुलडोजर की राजनीति भाजपा शासित राज्यों में

कुछ समय पहले हुए दंगों के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाने का सिलसिला शुरू किया। इतिहास में हुई बर्बरता से आदमी सबक सीखने की बजाए उसे दोहराता है। इतिहास में दर्ज औरंगजेब, चंगेज खान, गोरी या बाबर के साथ-साथ बीसवीं शताब्दी के सभी फासिस्टों ने जो भी कुछ किया,  उस सही-गलत की बहसों में नहीं पड़ना चाहता हूँ।

अगर इतिहास में किसी जालिम ने किसी भी कौम के ऊपर अत्याचार किया होगा तो इसका मतलब यह नहीं कि आज इतने बरस बाद भी उसके कौम के साथ वही बर्बरता की जाय। ऐसा कहने वाले सावरकर हो या गोलवलकर या वर्तमान समय में उनके कोई अनुयायी, बदले की ऐसी भावना विकृत मानसिकता की परिचायक है। फासिस्ट हिटलर ने जो किया, वह पिछली शताब्दी की विकृति का जीता-जागता नमूना है।

अगर मनुष्य जाति इतिहास में गलत थी तो जेनिन, भागलपुर, गुजरात, मुजफ्फरनगर और हाल ही में खरगोन, दिल्ली खांबात, हिम्मतनगर, मुजफ्फरपुर, इलाहाबाद की मस्जिदों पर हिंदूपुत्र के नाम से किए गए कारनामे भी इन्सानियत के नाम पर धब्बा हैं।

अब लगता है कि केंद्र सरकार ने बुलडोजर मॉडल इज़राइल से सीखा है क्योंकि भारत की सुरक्षा में इज़राइली सरकार और मुख्यतः मोसाद के मार्गदर्शन से काफी कुछ चल रहा है।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि अमेरिका फिलीस्तीन की समस्या का समाधान इराक की तर्ज पर करना चाहता है, यानी सत्ता परिवर्तन के साथ वहां अमेरिका तथा इस्राइल की इराक तथा फिलीस्तीन नीति में 9/11 के बाद काफी साम्यता दिखाई देती है।

जिस प्रकार इराक में अमेरिका ने लगातार बमबारी कर, बड़े प्रतिबंधों का सहारा लिया। उसके बाद संपूर्ण इराक खंडहर में तब्दील हो गया। 15 लाख से अधिक लोग मारे गए, जिनमें पंद्रह साल तक के पांच लाख  बच्चे केवल दूषित पानी, दवा और अन्न के अभाव में मरने के लिए मजबूर हुए।

इसी प्रकार इज़राइल ने फिलिस्तीन की आर्थिक जिंदगी को तबाह करने का काम किया तथा लोगों को भूखों मरने के लिए छोड़ दिया। दोनों ही स्थितियों में जानमाल की काफी नुकसान पहुँचा।

दुनिया के राष्टवादी देशों में तबाही के मंजर ज्यादा

2 फरवरी, 2002 को न्यूयार्क टाइम्स ने यरूशलम से प्राप्त हुई एक विज्ञप्ति प्रकाशित की, जिस पर इज़राइल के एक सौ से अधिक रिजर्व सैनिकों के हस्ताक्षर थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘वे वेस्ट बैंक और गाज़ापट्टी में अब अपनी सैनिक सेवाएं नहीं देंगे क्योंकि इज़राइल की नीतियों में इस बात को शामिल किया गया है कि ‘पूरी कौम पर अपना दबदबा कायम करो, उन्हें निष्कासित करो, भूखे मरने के लिए मजबूर करो तथा उन्हें अपमानित करो।’ अमेरिका की तरह ही इज़राइल ने नागरिक तथा सैनिक ठिकानों में फर्क करना छोड़ दिया।

तर्क यह था कि यह कार्रवाई या तो हमें पेश आने वाले खतरे के पेशेनजर पेशगी तौर पर बचाव की सूरत में की गई कार्रवाई है या फिर उनके आतंक का जवाब है। इसका निष्कर्ष यह निकला कि पूरी इराकी तथा फिलिस्तीनी आवाम को सामूहिक रूप से सजा देने का सिलसिला जारी रखा गया।  बिना किसी क्रूरता की चिंता किए।

जबसे इस्राइल ने फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर अपना कब्जा कायम किया है, जेनिन की घटना इस्राइली आतंक के लिए क्रूरता का नमूना बन गई है। अमेरिका की तरह इस्राइल का भी मानना है कि दुश्मन को भारी हमलों की सूरत में जवाब देना मुनासिब है, भले ही जिन पर हमला किया जा रहा हो वे निहत्थे ही क्यों न हो।

इज़राइल के हमले में इज़राइली सेनाओं के दर्जनों टैंकों, बख्तरबंद गाड़ियों तथा अमरीकी एपाची हेलीकाप्टरों द्वारा दागी जाने वाली मिसाइलों के जरिए एक वर्ग किलोमीटर में फैले जेनिन शरणार्थी शिविरों पर एक हफ्ते तक हमला किया गया, जिनमें 15000 बच्चे और कुछ नौजवान रहते थे, जिनके पास न तो कोई टैंक था, न मिसाइलें थीं। क्या इसे किसी आतंकवादी खतरे की वजह से की जाने वाली कार्रवाई कहा जाए? या इन निहत्थे लोगों से इज़राइल के वजूद को कोई खतरा था?

इतने बड़े पैमाने पर सैनिक बल का प्रयोग तो वही कर सकता है, जिसे न अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का लिहाज हो,  न सजा दिए जाने का खतरा न किसी के सामने जवाबदेही का भय। इज़राइल को इतना निर्भीक बनाने में निस्संदेह अमेरिका के अलावा और किसका हाथ हो सकता है?

ऐसे युग में, जबकि अमेरिका हमेशा यही राग अलापता रहा है, ‘किसी देश की संप्रभुता तभी तक कायम रह सकती है, जब तक कि वह मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन नहीं करता।’ लेकिन इज़राइल इस मामले में अपवाद रहा। उसने बड़ी सफलतापूर्वक जेनिन कार्रवाई के संबंध में जांच की मांग को टालने का काम किया।

चूंकि संयुक्त राष्ट्र की ओर से जांच की कोई कार्रवाई नहीं की गई इसलिए वास्तविक स्थिति के बारे में जानना निहायत कठिन काम होगा लेकिन हमें कुछ व्यक्तिगत जानकारियों के आधार पर किसी नतीजे पर पहुंचने का मौका मिल सकता है।

विध्वंस कर लोगों को सड़क पर लाने का भी बनता है रिकॉर्ड

विशेष रूप से मोशोनिसम की कहानी की तरह, जिसे इज़राइली सैनिक रेडियो पर कुर्दी भालू के नाम से संबोधित किया जा रहा था। कुर्दी से तात्पर्य यह था कि वह कुर्द संप्रदाय का व्यक्ति था और भालू से अर्थ उसके पास 60 टन वजनी डी-9 बुलडोजर था, जिससे उसने बड़े पैमाने पर घरों को ध्वस्त करने का काम किया था।

बुलडोजर चलाने के लिए उसे केवल कुछ घंटों का प्रशिक्षण दिया गया था। एक इज़राइली अखबार में उसके असाधारण कार्यों का ब्यौरा इन शब्दों में प्रकाशित हुआ- ‘वह 75 घंटे तक लगातार भीमकाय बुलडोजर पर बैठकर अपना काम करता रहा। उसके रास्ते में जो भी मकान आया उसे ध्वस्त कर दिया। जेनिन में कोई ऐसा सैनिक नहीं था, जो उसके नाम से वाकिफ नहीं था। कुर्दी भालू बड़ा समर्पित, बहादुर तथा विध्वंसक बुलडोजर चालक था।’ आखिर कोई आदमी बिना दम लिए इतने लंबे समय तक कैसे काम कर सकता है? इसका जवाब उसने स्वयं इन शब्दों में दिया-

‘आपको मालूम है कि लगातार 75 घंटों तक मैंने कैसे काम किया? मैं बुलडोजर से उतरा ही नहीं, मुझे थकान महसूस नहीं हुई क्योंकि मैं लगातार व्हिस्की पीता रहा। तीन दिनों तक मैंने विध्वंस किया, सिर्फ विध्वंस। पूरे क्षेत्र को जमींदोज कर दिया। जिस घर से भी गोली चली, वह मेरा निशाना बना।  हां, मुझे दुख केवल इतना है कि मैं पूरे शिविर को तहस-नहस नहीं कर सका।’

भारत में हाल ही में संपन्न रामनवमी और हनुमान जयंती के दौरान हुए दंगों में मध्य प्रदेश, दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश की  सरकारों ने दंगे करने वालों की प्रॉपर्टी पर बुलडोजर चलाकर ध्वस्त करने आदेश देते हुए, अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ कार्रवाई की।

अंत में सर्वोच्च न्यायालय को जमीयत की याचिका पर सुनवाई करते हुए बुलडोजर चलवाने वाले मुख्यमंत्रियों से सोमवार, 2 सितंबर को कहा कि भले ही आरोपी या अपराधियों ने कोई गैरकानूनी काम किया होगा लेकिन उसके परिवार के अन्य सदस्यों को बुलडोजर चलवाकर रास्ते पर ले आने की सजा देने का तरीका गैरकानूनी है।

आजकल देशभक्ति का पेटेंट भले सत्तारूढ़ दल ने अपने नाम पर करने का प्रयास किया है, लेकिन वर्तमान समय में भारत के कुछ हिस्सों में बुलडोजर की जो राजनीति चल रही है, वह बहुत ही चिंता का विषय है।

डॉ. सुरेश खैरनार
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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