नयी दिल्ली(भाषा)। सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई को अपने बहुप्रतीक्षित फैसले में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद के पास है।
यह कानूनी लड़ाई लम्बे समय तक देश की सबसे बड़ी अदालत में चली। चीफ जस्टिस ने कहा कि ये कहना कि विवाह की संस्था स्थिर और अपरिवर्तनीय है, सही नहीं है। विवाह की व्यवस्था में कानून के द्वारा बदलाव किया गया है। चीफ जस्टिस ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद के पास है। कोर्ट को संसद के अधिकार क्षेत्र में दखल देने में सावधानी बरतनी चाहिए।
संविधान बेंच के सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल ने चीफ जस्टिस के फैसले पर अपनी सहमति जताई। जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने चीफ जस्टिस के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि समलैंगिक जोड़े को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। जस्टिस हीमा कोहली ने जस्टिस एस रविंद्र भट्ट के फैसले से सहमति जताई।
स्वतंत्रता, इच्छा और अधिकारों की रक्षा के लिए नागरिकों के साथ खड़े हैं-जयराम रमेश
कांग्रेस ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले को लेकर मंगलवार को कहा कि वह नागरिकों की स्वतंत्रता, इच्छा, स्वाधीनता और अधिकारों की रक्षा के लिए उनके साथ खड़ी है।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि शीर्ष अदालत के इस बंटे हुए फैसले का अध्ययन करने के बाद कांग्रेस इस विषय पर विस्तृत प्रतिक्रिया देगी।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का अनुरोध करने संबंधी 21 याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने सुनवाई की।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय कानून नहीं बना सकता, बल्कि उनकी केवल व्याख्या कर सकता है और विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है।
रमेश ने एक बयान में कहा,‘समलैंगिक विवाह और इससे संबंधित मुद्दों पर हम आज उच्चतम न्यायालय के अलग-अलग और बंटे हुए फ़ैसलों का अध्ययन कर रहे हैं। इस पर बाद में हम एक विस्तृत प्रतिक्रिया देंगे।’
उन्होंने कहा, ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस हमेशा से हमारे सभी नागरिकों की स्वतंत्रता, इच्छा, स्वाधीनता और अधिकारों की रक्षा के लिए उनके साथ खड़ी है। हम, एक समावेशी पार्टी के रूप में, बिना किसी भेदभाव की प्रतिक्रिया, न्यायिक, सामाजिक और राजनीतिक में दृढ़ता से विश्वास करते हैं।’
समलैंगिकता न्यायालय घटनाक्रम
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला देते हुए समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। इस फैसले से जुड़ा घटनाक्रम निम्नलिखित है-
छह सितंबर, 2018- संविधान पीठ ने सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने को अपराध बनाने वाले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के हिस्से को अपराध की श्रेणी से हटाया और कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
25 नवंबर, 2022- दो समलैंगिक जोड़ों ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
न्यायालय ने केंद्र को नोटिस भेजा।
छह जनवरी, 2023- न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का अनुरोध करने वाली विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित सभी याचिकाएं शीर्ष अदालत को भेजे जाने का निर्देश दिया। इस संबंध में 21 याचिकाएं दायर की गई हैं ।
12 मार्च- केंद्र ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने का उच्चतम न्यायालाय में विरोध किया।
13 मार्च- न्यायालय ने यह मामला संविधान पीठ के पास भेजा।
15 अप्रैल- न्यायालय ने पांच न्यायाधीशों की पीठ का गठन अधिसूचित किया।
18 अप्रैल- न्यायालय ने दलीलें सुननी शुरू कीं।
11 मई- न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा।
17 अक्टूबर- न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार किया।