दिलचस्प है कि केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने 20 मार्च को ही इस यूनिट के गठन की अधिसूचना जारी की थी और अगले ही दिन यानी 21 मार्च को कोर्ट ने इसे रोक दिया। सरकार ने पिछले साल आईटी नियमों में संशोधन किया था, जिसे लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं ने इस संशोधन को असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिका रद्द कर दी। फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और सुप्रीम कोर्ट ने नये नियमों को अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ पाया।
क्या है पूरा मामला ?
केंद्र सरकार ने जनवरी, 2023 में एक संशोधन प्रस्ताव पेश किया, जिसमें कहा गया कि सरकारी संस्था प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) के पास किसी भी खबर को ‘फेक न्यूज’ घोषित करके उसे हटवाने की शक्ति होगी। इस मसौदे में कहा गया कि प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो या सरकार के किसी विभाग को अगर मीडिया में प्रकाशित कोई खबर फर्जी या भ्रामक लगती है तो ब्यूरो के पास उस खबर पर प्रतिबंध लगाने और उसे सभी प्लेटफॉर्म से हटवाने की शक्ति होगी।
इसमें यह भी कहा गया था कि ब्यूरो जिस खबर का संज्ञान लेगा उसके बारे में संबंधित मीडिया संस्थान को यह सुनिश्चित करना होगा कि खबर हटने के बाद उसे फिर से प्रसारित न किया जा सके। इस नियम के लागू होने के बाद सरकार किसी खबर को ‘फर्जी’ घोषित कर, उसे सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म से हटाने का आदेश दे सकेगी। इससे सरकार को यह अधिकार होगा कि गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियां अगर सरकार के आदेश पर कोई सूचना नहीं हटाएंगी तो उनपर कार्रवाई की जाएगी।
प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो आधिकारिक रूप से सरकार का प्रचार विभाग है जो ट्विटर पर एक कथित फैक्ट चेक अकाउंट चलाता है। हालांकि, यह सिर्फ उन खबरों का सच बताता है जो सरकार को न पसंद आए और इसके लिए वही सच है जो सरकार को सच लगता है।
मीडिया की आजादी छीनने वाले प्रावधान
यह प्रस्ताव आने के बाद सवाल उठे कि ऐसे नियम लागू होने के बाद जो भी खबरें या लेख सरकार को पसंद नहीं आएंगे, उनको सरकार की आरे से जबरन हटवा दिया जाएगा और यह कानून की ताकत से होगा।
उस समय एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने इसका विरोध करते कहा था कि कोई खबर फर्जी है यह बताने का काम सिर्फ सरकार के हाथ में नहीं हो सकता। यह तो एक तरह की सेंसरशिप होगी। इस तरह के नियमों को प्रेस की स्वतंत्रता खत्म करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। इन नियमों का इस्तेमाल सरकारी एजेंसियां और विभाग उन सभी खबरों को हटवाने के लिए करेंगे जो सरकार को परेशानी में डालती हैं।
ये नियम सरकार की वैध आलोचना का गला घोंट देंगे और प्रेस किसी भी मसले में सरकार को जिम्मेदार ठहराने की शक्ति खो देगा।
क्या छपेगा यह सरकार कैसे तय करेगी?
सरकार ने मीडिया, विपक्ष, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस काउंसिल, पत्रकारों और विशेषज्ञों की आपत्तियों और चिंताओं को दरकिनार करते हुए अप्रैल, 2023 में फैक्ट चेक यूनिट का गठन करने के लिए नियमों में संशोधन की अधिसूचना जारी कर दी।
अधिसूचना जारी होने के बाद भी इस पर सवाल उठे और मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर चिंताएं जाहिर की गई थीं। यह कोई सरकार कैसे तय कर सकती है कि मीडिया में क्या छपेगा? जो छपा है वह सच है या झूठ? यह एक ऐसी व्यवस्था होगी जिसमें मीडिया वही छाप सकता है जो सरकार को पसंद आए।
कुल मिलाकर यह एक ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश थी जिसमें सरकार की मर्जी ही अभिव्यक्ति की आजादी का पर्याय हो। अंग्रेजी राज में प्रेस को सेंसर करने के लिए कई कड़े नियम लागू होते रहे हैं। लेकिन आजाद भारत में ऐसा कभी नहीं हुआ जब कोई सरकार यह तय करने की कोशिश करे कि मीडिया क्या छापेगा, क्या नहीं।
मीडिया की आजादी पर लगाम लगाने की कोशिश
लोकतंत्र और आजादी का सिद्धांत यह कहता है कि सरकार की आलोचना करना मीडिया का अधिकार है और धर्म भी। लेकिन आज देश का कथित मुख्यधारा का मीडिया खुलकर सरकार की तरफदारी करता है। कहीं छिटपुट पत्रकार और कुछ वैकल्पिक संस्थान ही बचे हैं जो सरकार की आलोचना की हिम्मत कर पा रहे हैं। उन्हें भी सरकार की ओर से मुकदमे, छापे और पत्रकारों को जेल भेजने जैसी कुत्सित हरकतों का सामना करना पड़ रहा है। मीडिया की स्वतंत्रता को लगातार रौंदने की कोशिशें की जा रही हैं।
दरअसल, मौजूदा सरकार ने कॉरपोरेट मीडिया को अपने चंगुल में जकड़ रखा है लेकिन वैकल्पिक मीडिया और स्वतंत्र पत्रकार अब भी अपने काम से सरकार को असहज करते रहते हैं। कितने मामलो में ऐसा हुआ है कि मीडिया खबर का बॉयकाट कर देता है लेकिन सोशल मीडिया उस मुद्दे को उजागर कर देता है।
हाल ही में सामने आया इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाला इसका सबसे ताजा उदाहरण है जिसका मीडिया ने बहिष्कार किया, लेकिन वैकल्पिक और सोशल मीडिया ने उसे जनता तक पहुंचाया। यह फैक्ट चेक यूनिट और इसके नियम फर्जी खबरों की आड़ में एक किस्म की मीडिया सेंसरशिप थी, जिसे रद्द करके फिलहाल कोर्ट ने भारतीय लोकतंत्र को शर्मसार होने से बचा लिया है।