Thursday, October 16, 2025
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Ganga River

Bhadohi : बरसों के आंदोलन के बावजूद कोई सुनवाई नहीं, गाँव के डूब जाने का खतरा बढ़ा

भदोही जिले के भुर्रा गांव के लोग इस बात से चिंतित हैं कि गंगा नदी धीरे-धीरे जमीन का कटान कर रही है। पास का गांव हरिहरपुर डूब चुका है। उन्हें अपने गांव के अस्तित्व की भी चिंता है। शासन-प्रशासन ने वहां ठोकर बना दिया था, जिससे गांव वालों का कहना है कि कटान और भी तेजी से हो रहा है।

Varanasi : वरुणा नदी में कई नालों का पानी गिरने से अब पानी खेती के लायक नहीं रहा

बनारस में वरुणा नदी के बहुत अधिक प्रदूषण के कारण किसान खेत की सिंचाई भी इस पानी नहीं कर पाते. यदि इसी तरह वरुणा प्रदूषित होती रही तो जल्द ही नाले में तब्दील हो जाएगी.

जीवनदायिनी गंगा लील रही किसानों की ज़मीन, बरसों बीत गए मुआवजे की आस में

चंदौली। 'कटान में हमार सोरह बिस्सा जमीन चल गइल... एन बहुत रोवलन... परधानजी के साथे आउर लोगन, घरे क लोगन समझउलन तब जाके एन...

वाराणसी में नाविकों के लिए फिर आफत बनी बाढ़, गंगा का जलस्तर बढ़ने से लोग परेशान

वाराणसी। यहाँ नाविकों के लिए एक बार फिर बाढ़ आफत बनकर आई है। साथ ही घाट किनारे रहने वाले लोगों में भी दशहत बढ़...

जर्जर पुलिया और बाढ़ के डर से थरथरा रहा है गाँव, जाने कब बनेगा बांध

गाजीपुर। जब नदी का पानी उफान पर रहता है तब यह रोड पूरी तरह से डूब जाती है और नदी का पानी बढ़ने से...

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बारे में चिंतन और चर्चा के साथ नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा की पहल

यह रिपोर्ट जब मैं लिख रहा था तो उस समय रामजी भैया बगल में बैठकर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण का वीडियो...

लोग भी चाहते हैं कि वरुणा फिर से लहलहाती हुई बहती रहे

24 जुलाई रविवार को गांव के लोग सोशल एंड एजुकेशनल ट्रस्ट द्वारा नदी एवं पर्यावरण संचेतना यात्रा का सातवां आयोजन हुआ। इस आयोजन के प्रथम चरण में गांव के लोग टीम द्वारा करोमा से रामेश्वर घाट तक की पैदल नदी यात्रा निर्धारित की गई थी। दूसरे चरण में करोमा गाँव के निवासियों के साथ एक संगोष्ठी हुई जिसमें नदी के महत्व और उसकी सफाई को लेकर दोनों किनारे के लोगों की भागीदारी पर चर्चा हुई। यात्रा के एक सहभागी दीपक शर्मा की रिपोर्ट।

वरुणा नदी यात्रा : पर्वत की चिट्ठी तू ले जाना सागर की ओर!

जबकि सदियों से हमारे देश में मनुष्य और प्रकृति के द्वारा जल का संचय होता आया है। लेकिन आज यह स्थिति बदल गई है। इसमें सरकारी तंत्र पर समाज के आश्रित हो जाने ने अहम भूमिका निभाई है। इसका परिणाम जल प्रबंधन में सामुदायिक हिस्सेदारी के पतन के रूप में सामने आया। नदी के किनारे बस रहे लोगों को पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा।

अब जहाँ देखो ये अजूबे इंसान, पानी को ही घेरकर मारने में लगे हैं!

पक्के रास्ते धीरे-धीरे कच्चे और उबड़-खाबड़ होते जा रहे थे। कुछ ही समय में हम उस बाँस के पुल के पास पहुँच गए जिसे पहली यात्रा में नदी के उस पार से देखा था। पिछली बार की तरह ही लोग यहाँ नहान कर रहे थे। एक आदमी अपनी बड़ी-सी नाव पर अलकतरा लगा रहा था। वहाँ पहुँचे एक ग्रामीण ने उसकी फिरकी लेते हुए कहा- 'घबरा मत, तू अब जेल जईबा।' यहाँ नदी में नाव चलाने के लिए लाइसेंस बनवाना पड़ता है, शायद इसीलिए यह मजाक किया गया था।

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