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जोतीबा फुले : शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए नियुक्त प्रथम शिक्षा आयोग के अध्यक्ष  विलियम हंटर को सौंपा था प्रस्ताव 

महात्मा जोतीबा फुले  ने अपने वक्तव्य में कहा है कि ‘उच्च वर्गों की सरकारी शिक्षा प्रणाली की प्रवृत्ति इस बात से दिखाई देती है कि इन ब्राह्मणों ने वरिष्ठ सरकारी पदों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। यदि सरकार वास्तव में लोगों का भला करना चाहती है, तो इन अनेक दोषों को दूर करना सरकार का पहला कर्तव्य है। अन्य जातियों के कुछ लोगों को नियुक्त करके, ब्राह्मणों के प्रभुत्व को सीमित किया जाना चाहिए जो दिनोंदिन बढ़ रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि इस स्थिति में यह संभव नहीं है।

दलित छात्रों के आत्महत्याओं के दौर में फुले दम्पति की याद

वर्ष 1942 में कनाडा में भाषण देते हुए डॉ. बीआर आम्बेडकर ने भारत में दलितों की समस्या की चर्चा करते हुए दो मुख्य बातों का उल्लेख किया था। उन्होंने पहली बात यह कही थी कि जाति व्यवस्था, साम्राज्यवाद से ज्यादा खतरनाक है और भारत में जातिप्रथा समाप्त होने के बाद ही शांति और व्यवस्था कायम हो पाएगी। दूसरी बात उन्होंने यह कही थी कि भारत में यदि किसी वर्ग को स्वतंत्रता की असली दरकार है तो वे दलित हैं।

होली के पीछे की असली कहानी गुलामगीरी में कैसे कहते हैं ज्योतिबा फुले

हिन्दू त्योहारों की अवधारणा किसी न किसी देवता की या उसके सूबेदार की जीत तथा उसकी मुखालफत करनेवाले मूल निवासी राजा की हार पर आधारित है। भारत में शूद्रातिशूद्र आंदोलन के जनक महात्मा ज्योतिबा फुले इस अवधारणा को विखंडित करनेवाले पहले विचारक और चिंतक हैं। उनकी विश्वप्रसिद्ध किताब ‘गुलामगीरी’ हिन्दू मान्यताओं को विखंडित करने वाली सबसे महत्वपूर्ण किताब है। इस किताब में वह होली की मान्यता के पीछे की कहानी कहते हैं।

क्या आपने गुलामगीरी पढ़ा है?

गुलामगीरी  में फुले ने ब्रह्मा के चार मुख, आठ भुजाओं और विभिन्न मिथकों को सीधे-सादे तर्क से खारिज करते हुए उसे एक हास्यास्पद परिघटना में बदल दिया है। इसी प्रकार आगे चलकर शेषशायी विष्णु की नाभि से कमलनाल का उद्भव और उसमें ब्रह्मा का चारमुखी आकार और भी विचित्र और मनगढ़न्त कपोल कल्पना है। फुले ने ब्राह्मणवाद द्वारा फैलाए गए गहरे अंधकार को काटते हुए उस मूल धारा की नष्ट हो चुकी अस्मिता को प्रकाश में लाने के लिए ब्राह्मणवादी स्थापनाओं पर जमकर प्रहार किया है और अपनी तर्क-दृष्टि से उन्हीं मिथकों को उल्टा टाँग दिया है जिनके बल पर ब्राह्मण अपने वर्चस्व की स्थापना करता है।

बद्री नारायण की बदमाशी (डायरी, 10 जुलाई, 2022) 

अंतिम क़िस्त  हम अन्याय देखने के भी आदी हो चुके हैं। हालांकि पहले भी लोग ऐसे ही थे। जातिगत भेदभाव तो बेहद सामान्य बात है...

दास्तां कलमकसाइयों की (डायरी,3 अक्टूबर, 2021)  

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