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कैंपस आधारित बॉलीवुड सिनेमा : छात्रों की समस्याओं और मुद्दों से कोई मतलब नहीं

भारतीय सिनेमा में समाज से उठाए गए विषयों पर अनेक बेहतरीन फिल्में बनी हैं, जो आज भी यादगार हैं। लेकिन रुपहले परदे पर शिक्षा संस्थानों को लेकर कुछ फिल्में निराशा पैदा करती हैं। फिल्म बनाने वाले समाज की वास्तविकता को दरकिनार कर फिल्म हिट करवाने के उद्देश्य से ही सिनेमा बनाते हैं, जिसमें फूहड़ हंसी-मजाक, प्रेम और उथली राजनीति दिखाते है। आज भले ही शिक्षा के स्तर में बदलाव हो चुका है लेकिन इसके बाद भी समाज में साहित्य और सिनेमा की प्रस्तुति ऐसे हो, जिसका सकारात्मक प्रभाव पड़े। सिनेमा में दिखाए गए शिक्षण संस्थानों के बहाने आज की शिक्षा व्यवस्था पर उठाए गए सवाल पर पढ़िए डॉ राकेश कबीर का यह लेख ।

बनारस के मनोज मौर्य की बनाई जर्मन फिल्म ‘बर्लिन लीफटाफ’ फिल्म समारोह की बेस्ट फीचर फिल्म बनी

मनोज मौर्य एक युवा फ़िल्मकार हैं। गाजीपुर में जन्मे और बनारस में पले-बढ़े मनोज अपने को बनारसी कहने में फख्र महसूस करते हैं। लंबे समय से मुंबई में रह रहे मनोज की इस वर्ष दो फीचर फिल्में , हिन्दी में 'आइसकेक' और जर्मन में 'द कंसर्ट मास्टर' रिलीज हो रही हैं। 'द कंसर्ट मास्टर' बर्लिन सहित अनेक फिल्म समारोहों में दिखाई गई और तगड़ी प्रतियोगिता करते हुये बेस्ट फीचर फिल्म नामित हुई।

देशभक्ति की चाशनी में रची बॉलीवुड सिनेमा की महिला जासूस और राज़ी

धार्मिक आधार पर उपजे द्विराष्ट्र सिद्धांत के सनकीपन ने खूबसूरत मुल्क भारत के बाशिंदों को चंद सियासतदानों की इच्छापूर्ति के लिए दो हिस्सों मे...

आवाज की सीमाओं के बावजूद अहसास के बेमिसाल गायक थे मुकेश

27 अगस्त 1976 को डेट्रायट (अमेरिका) में हजारों की संख्या में लोग मुकेश और लता मंगेशकर के शो में उन्हें सुनने के लिए एकत्र...

भारत-पाकिस्तान संबंध और बॉलीवुड की फिल्में

भारत में दो चीजें क्रिकेट और बॉलीवुड बहुत लोकप्रिय है और बात जब भारत पाकिस्तान के बीच आ जाये तो क्लाइमेक्स नये आयाम स्थापित...

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