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बजट 2025 : मध्यम वर्ग को बचत का सपना देकर अपनी झोली भरने की जुगत

मोदी सरकार घरेलू अर्थव्यवस्था में मांग पैदा कर रोजगार का संकट दूर करने तथा अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकालने के प्रति गंभीर होती, तो केंद्र सरकार में लाखों खाली पड़े पदों को भरने की घोषणा करती, मनरेगा के बजट आबंटन में पर्याप्त वृद्धि के साथ मजदूरी और काम के दिनों की संख्या को बढ़ाती, शहरी गरीबों के लिए रोजगार गारंटी की घोषणा करती, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए सम्मानपूर्ण आजीविका के लायक न्यूनतम वेतन/मजदूरी की घोषणा करती, किसानों को सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने और कर्ज़माफी की घोषणा करती और मजदूरों को बंधुआ दासता में धकेलने वाली श्रम संहिताओं को वापस लेने आदि की घोषणा करती। लेकिन बजट 2025 में ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है।

बजट 2025 : दिशाहीनता का गट्ठर

हर वर्ष के मार्च महीने में देश का आम बजट प्रस्तुत किया जाता है। बड़े जोर शोर से तैयारी होती है लेकिन बजट प्रस्तुत होने के बाद आम जनता के लिए कुछ ख़ास नहीं होता लेकिन न समझने वाला भी बजट में जिक्र की गई बातों का ऐसे बख़ानता है कि बस उसे सब कुछ समझ आ गया है और इस बजट से उसे बहुत फायदा होने वाला है। पढ़िए, मनीष शर्मा का बजट 2025 पर एक विश्लेषणपरक आलेख।

बजट 2024 : बेरोजगारी और लघु उद्योगों की बरबादी के साये में चल रही मोदी की तीसरी सरकार के बजट में मेहनतकशों के हिस्से...

वर्ष 2024 का आम बजट पेश हो गया है। इस बजट में सरकार ने 11.11 लाख पूंजी निवेश का प्रावधान रखा है लेकिन इस निवेश से कितने रोजगार पैदा होंगे देखने वाली बात होगी क्योंकि कोरोना में हुए लॉकडाउन के बाद लगभग सभी उद्यमों पर बहुत खराब प्रभाव पड़ा था और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पैदा हुई थी। उसके बाद बेरोजगारी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि दिनों-दिन खराब ही होता रहा। कल पेश हुए बजट में इसका असर साफ दिखाई दिया।

प्रियंका गांधी ने भाजपा को घेरा, देश को कर्ज में डुबोने का लगाया आरोप

आजादी के बाद से वर्ष 2014 तक 67 सालों में देश पर कुल कर्ज 55 लाख करोड़ था। पिछले 10 वर्ष में अकेले मोदी जी ने इसे बढ़ाकर 205 लाख करोड़ पहुंचा दिया। इनकी सरकार ने बीते 10 साल में लगभग 150 लाख करोड़ कर्ज लिया है।

किसानों की आय दोगुना करने के दावे के बावजूद अंतरिम बजट से किसान ही गायब

सरकार द्वारा चुनाव से 2 महीने पहले प्रस्तुत अंतरिम बजट से यूं तो किसानों ने कोई बड़ी उम्मीद नहीं बांधी थी। लेकिन कृषि संकट...

क्या देश बेचने से कुछ कदम पीछे हटी है मोदी सरकार!

2024 को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार जब विनिवेश के मुद्दे पर रणनीतिक बदलाव ला सकती है, तब विपक्ष को भी इस पर अपनी नई रणनीति अख्तियार करने का मन बनाना चाहिए। इसके तहत विपक्ष को दो संदेश देना चाहिए। पहला, सत्ता में आने पर बेची गई सरकारी परिसंपत्तियों और कंपनियों की समीक्षा कराएंगे और यदि प्रायोजन पड़ा तो हम फिर से इनका राष्ट्रीयकरण करेंगे। दूसरा, यदि सरकारी संपत्तियों और कंपनियों को बेचने की जरूरत पड़ी तो हम हिंदू-जैनियों  के बजाय उन्हें पारसी, सिख, ईसाई, मुसलमान उद्यमियों को बेचेंगे। क्योंकि इनमें परोपकार की भावना ज्यादा है इसलिए ये दुर्दिन में अपनी कमाई दौलत का इस्तेमाल जनहित में करते हैं।

बजट 2022 – गांव और किसान की खटकने वाली अनदेखी

बजट में सरकार कहीं भी गरीब, कमजोर और जरूरतमंद के साथ खड़ी दिखाई नहीं देती। मनरेगा के लिए वित्तीय वर्ष 2022-23 में 73000 करोड़ का प्रावधान किया गया है जो मनरेगा के जानकारों की दृष्टि में निराशाजनक है। विगत वित्तीय वर्ष के संशोधित आकलन की तुलना में वर्तमान बजट में मनरेगा हेतु आबंटित राशि में 25.51 प्रतिशत की कटौती की गई है।

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत

हाल ही में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा में महिलाओं को 40% टिकट देने की बात कहकर एक नई बहस...

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