महाकुंभ को लेकर सरकार का यह दावा अतिशयोक्तिपूर्ण है कि अब तक 35 करोड़ लोग पहुंचे हैं। लेकिन इतना तो सही है कि इस कुंभ का भी जिस प्रकार नफरत फैलाने और ध्रुवीकरण करने की राजनीति के लिए उपयोग किया गया है, यदि सरकारी दावे के आधा, 15 करोड़ भी इस कुंभ में पहुंचे हों, तो सरकारी खर्च प्रति व्यक्ति औसतन 500 रूपये बैठता है और किसी भी तीर्थ यात्री को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने के लिए यह राशि कम नहीं होती। कहीं ऐसा तो नहीं कि महाकुंभ में 50 करोड़ तीर्थयात्रियों के पहुंचने का दावा, जिसकी किसी भी तरह से पुष्टि नहीं होती, इस भारी भरकम आबंटन में सेंधमारी करने की सुनियोजित साजिश है?
एक सौ चौवालिस वर्ष बाद प्रयागराज में आयोजित होने वाला कुंभ 'हादसों का कुंभ' बना है, तो इस आयोजन के प्रबंधन की विफलता में शामिल सभी अधिकारियों और राजनेताओं को ढूंढकर उन्हें सजा दिए जाने की जरूरत है, क्योंकि उकसावेपूर्ण तरीके से लाए जा रहे तीर्थ यात्रियों के साथ इंसानों की तरह नहीं, जानवरों की तरह सलूक किया जा रहा है। कुंभ की यात्रा को संवेदनहीन रूप से मोक्ष और मौत की गारंटी बना दिया गया है। सत्ता में रहने का इससे घृणित तरीका और क्या हो सकता है? यदि यही हिन्दू राष्ट्र है, यदि यही विकसित भारत की ओर बढ़ने का रास्ता है, तो संघी गिरोह की इस परियोजना को अभी से 'गुडबाय-टाटा' कहने की जरूरत है।
समाजवादी छात्र सभा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मासिक बैठक की समीक्षा की गई। बैठक में छात्र सभा के इकाई कार्यकारिणी के पदाधिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। बैठक में छात्र सभा को मजबूत करने तथा छात्रसंघ बहाली की मांग के आंदोलन को तेज करने की बात की गई।
देश के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसरों के पदों पर साक्षात्कार के आधार पर चयन किया जाता है। विश्वविद्यालयों की साक्षात्कार समितियों में अधिकतम एक्सपर्ट सवर्ण प्रोफेसर होते हैं। इसलिए वे बड़ी आसानी से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के कोटे की सीट को None Found Suitable कर देते हैं। ताजा मामला उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, प्रयागराज का है।
मूलभूत अधिकारों में समानता का अधिकार,शोषण के विरुद्ध अधिकार,धार्मिक स्वतंत्रता, संस्कृति और शिक्षा, संपत्ति और संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है। इनमें से धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था से जुड़ी स्वतंत्रता के हनन की घटनायें आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। ताजा मामला संविधान निर्माता और भारत रत्न से सम्मानित बाबा भीमराव अम्बेडकर की बार- बार तोड़ी जाती प्रतिमा और उनके विचारों से प्रभावित लोगों लोगों का है।
4 जून को अख़बारों में विज्ञापन छपता है कि 9 जून से संचालित होने वाले एमआरआई जांच के लिए तुरंत बुकिंग कराने वाले मरीजों को 50% छूट दिया जाएगा। 9 जून को उस नामी प्राइवेट अस्पताल में एमआरआई यूनिट का उद्घाटन होता है और ठीक एक दिन पहले यानि 8 जून को बेली अस्पताल के एमआरआई मशीन में खराबी आ जाती है। क्या ये महज इत्तेफाक़ है?