नफरत भरे भाषण लगभग हमेशा एक समुदाय की तरफ लक्षित होते हैं, जिससे उनकी मनोदशा पर प्रभाव पड़ता है, इससे उनमें भय पैदा होता है। घृणाास्पद भाषण लक्षित समुदाय के खिलाफ हमलों का शुरुआती बिंदु है, जो भेदभाव से लेकन निर्वासन और यहां तक कि नरसंहार हो सकते हैं। यह तरीका किसी विशेष धर्म या समुदाय तक ही सीमित नहीं है।

त्वरित न्याय का बुलडोजर फार्मूला कामयाब नहीं रहा है। यह खास तबके के लोगों को आक्रोश से भर देता है। इसकी अभिव्यक्ति वे दूसरे रूप में करते ही हैं। लेकिन हालिया घटनाएं यह भी बताती हैं कि दमन के इस तरीके से लोगों का आंदोलन तो नहीं थमा, लेकिन वे अधिक संगठित और मजबूत हुए। बानगी के तौर पर हम चाहें तो किसानों के आंदोलन को कोशिश करने की सरकारी कोशिशों को देख सकते हैं।

नवल किशोर कुमार फ़ॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं।
[…] तानाशाही और इंसाफ (डायरी 17 जून, 2022) […]
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