Monday, May 13, 2024
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Bhadohi के सरकारी स्कूलों के शिक्षक कैसे बना रहे हैं छात्रों का भविष्य

भदोही के सरकारी स्कूलों में आधुनिक एवं डिजिटल शिक्षा देने की मुहिम में अग्रसर प्राथमिक विद्यालय चितईपुर और बेजवाँ में देखने को मिली. इस...

दिल्ली : ‘सीनियर्स’ की पिटाई के बाद छात्र की मौत, बनाना चाहता था फाइटर पायलट

नई दिल्ली। दिल्ली के एक स्कूल में अपने वरिष्ठों द्वारा कथित तौर पर पीटे जाने के कुछ दिनों बाद अस्पताल में जान गंवाने वाले...

राममंदिर प्राण-प्रतिष्ठा को भुनाने में लगी भाजपा को आम लोगों की कठिनाइयों से कोई सरोकार नहीं

वाराणसी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनने वाले राममंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम को बीजेपी अपने राजनैतिक एजेंडे के तहत भुनाने का प्रयास कर रही...

पितृसत्ता की बेड़ियों में जकड़ी हुई हैं किशोरियां

मेगड़ी स्टेट (उत्तराखंड)। कभी कभी हमारे देश में देखकर लगता है कि देश तो आजाद हो गया है, जहां सभी के लिए अपनी पसंद...

विद्यार्थियों की मौत का कारण बन रहे शिक्षकों पर कौन लगाए लगाम?

प्रयागराज में टीचर ने छात्रा को इतना डांटा कि उसने कर लिया सुसाइड, परिजन लगा रहे थाने के चक्कर  जौनपुर में बुखार से पीड़ित दलित...

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ा रहे निजी स्कूल, शिक्षा के नाम पर हो रही है मनमानी

पुंछ (जम्मू)। हाल के समय में समाज में एक धारणा तेज़ी से प्रचलित हुई है कि सरकारी स्कूलों के बजाय निजी स्कूलों में शिक्षा...

स्कूल होकर भी शिक्षा की कमी

उदयपुर (राजस्थान)। शिक्षा हमारे देश की प्रगति का एक मज़बूत स्तंभ है। यही कारण है कि आज़ादी के बाद से ही सभी सरकारों ने...

लोहे को जीवन का आकार देती गड़िया लोहार महिलाएं

कड़ी मेहनत के बावजूद, इन महिलाओं के पास दैनिक आय नहीं है। हालांकि ये लोहार अब एक जगह बस गए हैं, लेकिन इनका जीवन और कठिन हो गया है। बड़े पैमाने पर मशीनीकरण ने उन्हें पहले की तुलना में लाभ से वंचित कर दिया है। पहले सब कुछ हाथ से किया जाता था। अब मशीन से बने आधुनिक उत्पाद मौजूद हैं जो बहुत सस्ते दामों पर उपलब्ध हो जाते हैं।

नया सत्र आरम्भ होते ही स्कूलों में शुरू हो गया कमीशन का खेल

एनसीईआरटी की 256 पन्नों की एक किताब 65 रुपये की है जबकि निजी प्रकाशक की 167 पन्नों की किताब 305 रुपये में मिल रही है। ऐसी कौन की किताबें स्कूल पढ़ा रहा है जो 500 से 600 रुपये में मिल रहीं हैं। इतनी महंगी तो बीए-एमए की किताबें भी नहीं आतीं। पहले बड़े बच्चे की किताबों से उनका छोटा बच्चा पढ़ लेता था क्योंकि किताबें वही रहती थी। अब बड़े बच्चों की किताबें छोटा बच्चा प्रयोग नहीं कर पाता क्योंकि हर साल जान-बूझकर किताबों में कोई न कोई बदलाव कर दिए जाते हैं। 

स्कूलों में कुर्सी-टेबुल उपलब्ध कराया गया

सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट द्वारा एक देश समान शिक्षा अभियान के तहत सरकारी स्कूलों में संसाधन विकास कार्यक्रम का संचालन किया जा रहा है।...

सरकारी स्कूल में बच्चों के लिए आशा ट्रस्ट की ने टेबुल-बेंच की व्यवस्था

स्कूलों की प्रगति के लिए समाज को आगे आना होगा: वल्लभाचार्य  वाराणसी। सामाजिक संस्था आशा ट्रस्ट द्वारा एक देश समान शिक्षा अभियान के तहत सरकारी...

कक्षा के भीतर के व्यवहारों और पूर्वाग्रहों पर सवाल उठाती किताब

बच्चे मशीन नहीं होते मात्र एक किताब नहीं बल्कि एक शोधार्थी, एक स्कूल अध्यापक, एक मेंटर टीचर और एक सहायक प्रोफेसर की जीवन यात्रा...

कहाँ है ऐसा गाँव जहाँ न स्कूल है न पीने को पानी

अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मानें तो अगले हफ्ते आने वाले आज़ादी के अमृत महोत्सव तक भारत के हर आदमी को पक्का घर, घर...

स्कूली पाठ्यक्रम में सांप्रदायिक एजेंडा

युक्तियुक्तकरण के नाम पर सीबीएसई के पाठ्यक्रम से अप्रैल 2022 में कई हिस्से हटा दिए गए। जिन टॉपिक्स को दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम से...

बालों के रंग से चाचाजी बनाम दादाजी

इधर कुछ वर्षों से मैंने हर साल दीपावली के बाद छुट्टी लेकर गाँव जाने का क्रम सा बना लिया क्योंकि इस समय गुलाबी ठंड...

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