TAG
Social justice
भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय : एक सिंहावलोकन
भारतीय समाज में अनेक असमानताएं व्याप्त हैं। कुछ ऐसी ताकतें हैं जो भारतीय संविधान का ही अंत कर देना चाहती हैं। वह इसलिए क्योंकि संविधान समानता की स्थापना के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण औज़ार है। इस समय जो लोग सामाजिक न्याय की अवधारणा के खिलाफ हैं वे खुलकर भारत के संविधान में बदलाव की मांग कर रहे हैं। लेकिन जरूरी है कि संविधान के सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले उसके प्रावधानों सहित, रक्षा की जाये और उसे मज़बूत बनाये जाये।
बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री ही नहीं सामाजिक न्याय के सूत्रधार भी थे भोला पासवान शास्त्री
आमतौर पर भोला पासवान शास्त्री का जिक्र आते ही एक व्यक्तिगत ईमानदार और आदर्शवादी राजनेता का चेहरा उभरता है जिसने तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बावजूद अपने लिए कुछ नहीं किया। अत्यंत संयम और किफायत के साथ अपना पूरा जीवन गुजार दिया। लेकिन केवल इतना ही काफी नहीं है बल्कि भोला पासवान शास्त्री ने सामाजिक न्याय की दिशा में बेमिसाल काम किया है जिसकी ओर प्रायः ध्यान नहीं दिया गया है। अपने कार्यकाल में मुंगेरी लाल आयोग का गठन करके उन्होंने भविष्य में मण्डल आयोग की जरूरत का सूत्रपात कर दिया था। हरवाहे-चरवाहे के रूप में जीवन शुरू करनेवाले भोला पासवान शास्त्री के रोचक और प्रेरक जीवन पर एच एल दुसाध का लेख।
संतों के नए अभियान का कैसे मुकाबला करेंगे सामाजिक न्यायवादी
आरएसएस हमेशा से भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता था। सत्ता में आने के बाद वर्ष 2014 से एक हो लक्ष्य साधने का काम कार रहा है। इधर महाकुंभ का आयोजन के बाद धर्म सेना के जरिए संतों का संगठन देश को युद्ध क्षेत्र में तब्दील करने की तैयारियों में जुट चुका है! आखिर जिस देश की सत्ता पर हिंदुत्ववादियों की बहुत ही मज़बूत पकड़ है, उस देश में साधु-संतों को धर्म-सेना की कोई जरूरत हो सकती है! बहरहाल यहाँ सबसे बड़ा सवाल पैदा होता है कि सामने न तो कोई चुनाव है और न ही तानाशाही हिंदुत्ववादी सत्ता को कोई खतरा, फिर साधु-संत गुलामी के प्रतीकों के खिलाफ अभूतपूर्व माहौल पैदा करने के साथ गाँव-गाँव हिन्दू राष्ट्र का संविधान पहुंचाने, हस्ताक्षर अभियान चलाने, धर्म-सेना खड़ा करने के साथ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लायक तरह-तरह की गतिविधियाँ चलाने में नए सिरे क्यों मुस्तैद हो गए हैं?
सवर्णवादी से बहुजनवादी पार्टी की शक्ल अख्तियार करती कांग्रेस
आजादी के के 77 वर्ष बाद कांग्रेस को दलित-पिछड़े और वंचित समुदाय के लिए सामाजिक न्याय की याद आई। यह समुदाय हमेशा से ही सामाजिक न्याय के लिए राजनैतिक दलों से उम्मीद करते रहे लेकिन उन्हें निराशा ही मिली। वैसे भी कांग्रेस में सवर्णों का ही वर्चस्व रहा है लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 की पृष्ठभूमि में हाशिये पर चली गई कांग्रेस ने 24 से 26 फरवरी तक आयोजित रायपुर अधिवेशन में पहली बार सामाजिक न्याय का मसला उठाया था और अपने घोषणा पत्र में शामिल किया। गांधी के शहादत दिवस पर दिल्ली में दलित इंफ्लूएंसरों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि हमने दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों का विश्वास बरकरार रखा होता तो आरएसएस कभी सत्ता में नहीं आ पाता। मतलब इस बात की सच्चाई को जानने के बाद कांग्रेस ने कुछ क्रांतिकारी परिवर्तन कर पार्टी को मजबूत करने की कवायद शुरू की है।
हरियाणा चुनाव : जमीनी तैयारी के अभाव में कांग्रेस की हार
अठारहवीं लोकसभा में कांग्रेस ने जिस तरह प्रदर्शन किया था, उसे देखकर लगा था कि हरियाणा चुनाव में भी कोई बदलाव होगा। यहाँ तक कि सारे एग्जिट पोल भी कांग्रेस को 60 सीट जीतने की बात कहते रहे, वहीँ भाजपा को 20 से 28 सीट तक ही सीमित कर दिया था। लेकिन चुनावी नतीजे आने के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल गया। ऐसा क्यों हुआ? इस पर पढ़िए मनीष शर्मा की विश्लेष्णात्मक रिपोर्ट
आखिर क्यों नहीं बन पा रही है दलित-पिछड़ों में राजनीतिक एकता
भारतीय समाज का ताना-बाना ही ऐसा बना हुआ है कि जातिवाद से मुक्ति दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। हाँ, राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में वोट की राजनीति के लिए राजनैतिक दल और नेता भले ही इसे हटाने की बात करें लेकिन जमीनी स्तर पर इसमें कोई भी बदलाव नहीं हुआ है। दो पक्षीय व्यवहार खुलकर किया जाता रहा है और यही वजह है कि ओबीसी, एससी और एसटी का शोषित हो लगातार प्रताड़ित हो रहे हैं।
आजमगढ़ : सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ने वाले पेरियार के जीवन संघर्षों को देखते हुए उन्हें समझा जा सकता है
ईवी रामास्वामी नायकर पेरियार ने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चला समाज सुधार का बीड़ा उठाया। पेरियार ने समाज में फैली ब्राह्मणवादी व्यवस्था का ही सख्त विरोध नहीं किया बल्कि राजनीति में भी कांग्रेस पार्टी में ब्राह्मणों के वर्चस्व को देखते हुए वहाँ से त्यागपत्र देते हुए नई पार्टी बनाई। आजमगढ़ में सामाजिक न्याय आन्दोलन की श्रृंखला में ग्राम कोठरा, पंचायत भवन, हाफिजपुर में ‘पेरियार की वैज्ञानिक दृष्टि और हमारा समय’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन करते हुए उन्हें याद किया गया।
मथुरा : भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन से देवकी नंदन शर्मा की मौत का ज़िम्मेदार है सरकारी तंत्र
मथुरा जिले की मांट तहसील निवासी देवकी नंदन शर्मा विगत पंद्रह वर्षों से ग्राम सभा से लेकर तहसील और जिला प्रशासन तक भ्रष्टाचार के खिलाफ़ सक्रिय थे। उन्होंने गले तक सरकारी लूट में लिप्त छोटे और बड़े अधिकारियों कर्मचारियों के अलावा ग्राम प्रधान, सचिव और दबंगों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा दो महीने पहले अनशन पर बैठने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मौत की जिम्मेदारी लेने की जगह जिला और तहसील प्रशासन उस पर लीपापोती करने का प्रयास कर रहा है।
स्वार्थ की राजनीति ने हमेशा जाति जनगणना को रोककर आरक्षण मुद्दे पर पेंच फंसा सामाजिक न्याय की धज्जियां उड़ाईं
इधर कुछ वर्षों से लगातार जाति जनगणना की बात उठाई जा रही है। हमारे देश में इसका कराया जाना जरूरी है क्योंकि आरक्षण का प्रावधान बहुत वर्ष पहले लागू किया गया था। अब जबकि देश की जनसंख्या में वृद्धि हुई है, ऐसे समय में इस कराते हुए जातियों के नए प्रतिशत के हिसाब से आरक्षण दिया जाना होगा। जिससे सामाजिक और आर्थिक स्थिति में समानता आए और सभी सममानपूर्वक जीवन के हकदार हों सकें।
सामाजिक न्याय और कबीर के विचारों से प्रेरित अध्यापक कुमर किशोर का प्रयाण
अपर्णा -
मधेपुरा में जन्मे और वहीं अध्यापक रहे कुमर किशोर न केवल एक अच्छे अध्यापक रहे बल्कि एक आदर्शवादी पिता भी थे। उन्होंने बहुत कठिन स्थितियों का सामना करते हुये भी अपने मूल्यों और मान्यताओं से समझौता नहीं किया। वे सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर और भौतिकवादी नज़रिये से दुनिया को देखने वाले इंसान थे। कुमर किशोर हमेशा मानते रहे कि विचार केवल सजावटी अवधारणा नहीं हैं बल्कि व्यवहार में लागू किए जानेवाले सूत्र हैं। विगत दिनों बनारस में 76 वर्ष की आयु में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। उनके बेटे प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो डॉ ओमशंकर द्वारा उनके बारे में साझा किए गए विचारों पर आधारित अपर्णा का यह स्मृतिलेख।
सामाजिक न्याय की केंद्रीयता ही कांग्रेस की ताकत बढ़ा सकती है
लोकसभा चुनाव 2024 में 400 के पार का नारा देने वाली भाजपा बहुमत भी नहीं ला सकी। इसके विपरीत कांग्रेस ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा कर जनता से सीधे जुड़ते हुए सामाजिक न्याय व समान भागीदारी पर सवाल खड़ा किया। कांग्रेस के घोषणा पत्र में वे सभी बिन्दु शामिल किए गए, जो पिछ्ले दस वर्षों में जनता की जरूरत थे। सवाल यह उठता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस किस तरह अपना वर्चस्व हासिल कर पाएगी।
लैंगिक असमानता और आर्थिक व सामाजिक विषमता से पार पाने का एक अभिनव विचार!
संविधान में समानता के चाहे जितने कानून बने हो लेकिन व्याहारिक जीवन में जेंडर गैप दिखाई देता है। भारत में आर्थिक और सामाजिक असमानता का सर्वाधिक शिकार महिलाएँ हैं और महिलाओं में भी सर्वाधिक शिकार क्रमशः दलित और आदिवासी महिलाएँ हैं। जहां सवर्ण समुदाय की महिलाओं को आर्थिक समानता अर्जित करने में 300 साल लग सकते हैं, वहीं दलित महिलाओं को 350 वर्ष लग सकते हैं।
गाँव में जब मुझे खटोला में बिठाकर स्कूल ले जाया गया..
'मेरा गाँव' कॉलम में उन लोगों की कहानी होती है, जिन्होंने गाँव को जिया ही नहीं बल्कि भरपूर जिया है। इस में आज तेजपाल सिंह 'तेज' अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए यह बता रहे हैं कि उनका गाँव, अलाबास बातरी, बुलंदशहर (उप्र) बचपन में कैसा था? अपने गाँव को याद करते हुए कैसे लगता है और उन्हें गाँव ने कैसे तैयार किया?
राजस्थान : बाल्टी छूने पर दलित छात्र को बेरहमी से पीटा, लगातार बढ़ रहे दलित उत्पीड़न के मामले
अलका राय -
राजस्थान के रामगढ़ थाना क्षेत्र के मंगलेशपुर गांव में एक चौथी कक्षा में पढ़ने वाले 8 वर्षीय बालक को बेरहमी से सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि उसने हैंडपंप पर रखी बाल्टी को छू लिया था।
विमर्श : सामाजिक न्याय के विरोधी आनंद शर्मा जैसे नेता कांग्रेस की समस्या बन चुके हैं
इंडिया गठबंधन एकजुट होकर चाहे तो बीजेपी को पस्त कर सकता है लेकिन वह असली मुद्दों से भटका हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी की पोल खोलने के लिए उसके पास बहुत सारे मुद्दे पड़े हुए है।कांग्रेस नेतृत्व को आनंद शर्मा का आभारी होना चाहिए कि उन्होंने पार्टी नेतृत्व को पत्र लिखकर संगठन पर हावी प्रभुवर्ग के नेताओं के मंसूबों से आगाह कर दिया। आनंद शर्मा के पत्र के बाद राहुल गांधी को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि कांग्रेस में छाए आनंद शर्मा जाति जनगणना और पाँच न्याय से खौफ़जदा होकर, इसे फेल करने में जुट गए हैं।
जनतांत्रिक आंदोलनों के कुचले जाने और ‘राजनीतिक अंधश्रद्धा’ के दौर में लोहिया की याद
लोहिया की पार्टी के सदस्य राम सेवक यादव, कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया, मधु लिमये, महाराज सिंह भारती की बहस ने संसदीय परंपरा को जनकेंद्रित बनाने में सहयोग किया।
मान्यवर कांशीराम : सामाजिक न्याय के सवालों के जवाब तलाशते माचा से शुरू हुई पदयात्रा
कार्यक्रम के उद्देश्यों के बारे में बात करते हुए संयोजकों ने कहा कि बताते चले कि देश में जाति जनगणना की मांग लंबे समय से की जा रही है। मंडल आयोग की सिफारिशों में भी जाति जनगणना कराने की बात कही गई। पिछले दिनों बिहार में जाति जनगणना के आंकड़ों के आने के बाद हम उत्तर प्रदेश सरकार से जाति जनगणना कराने की मांग करते हैं।
लालू जी ने बिहार में सामाजिक न्याय को एक वास्तविकता बना दिया – तेजस्वी यादव
भाषा -
पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित एक ‘विशाल’ रैली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, अखिल भारत कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी जैसे प्रमुख विपक्षी नेता मौजूद थे। जहां से सभी ने विशाल जनसभा को संबोधित किया।
हत्या के 28 साल बाद ‘इंसाफ’ में मृतक के परिजन सहित 40 लोगों को जेल
उत्तर प्रदेश के इतिहास में शायद यह पहली बार होगा जब अट्ठाईस साल पुराने मामले में एक साथ 40 लोगों को सजा सुनाई गई...
आज की राजनीति का मुकाबला राज शक्ति, धन शक्ति और जन शक्ति से है
https://www.youtube.com/watch?v=29BHLpHa-8I

