इसमें शायद ही किसी को सचमुच हैरानी होगी कि ओलंपिक स्तर के खिलाड़ियों के, भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद, ब्रजभूषण शरण सिंह पर कई महिला खिलाड़ियों के साथ यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाने के महीनों बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ने इस समूचे प्रकरण में एक शब्द तक नहीं बोला है। बेशक, इस साल की शुरुआत में जब महिला पहलवानों तथा उनका साथ दे रहे कुछ पुरुष पहलवानों ने भी सार्वजनिक रूप से इन्हीं आरोपों को लेकर, भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए, जंतर-मंतर पर ही धरना दिया था। उस समय प्रधानमंत्री खुद भले ही कुछ न बोले हों, पर कम-से-कम खेल मंत्री के रूप में, उनकी सरकार ने प्रदर्शनकारी खिलाड़ियों की शिकायतों के संबंध में कुछ सक्रियता दिखाई थी। यह दूसरी बात है कि इस सक्रियता के फलस्वरूप, शिकायतों की जांच करने के लिए जो कमेटी बनायी गयी, जैसा कि शिकायतकर्ता पहलवानों समेत बहुतों की आशंका थी, मामले को ठंडा करने के लिए तात्कालिक रूप से टालने की कोशिश ही साबित हुई।
जिस कमेटी को एक महीने में अपने निष्कर्ष दे देने थे, तीन महीने बाद भी उसके नतीजों का इंतजार ही हो रहा था। इतना ही नहीं, खुद खेल मंत्री के वादे के विपरीत, शिकायतों की जांच के लिए बनायी गयी कमेटी में, न तो शिकायतकर्ताओं के किसी प्रतिनिधि को शामिल किया गया और न शिकायतकर्ताओं से समुचित रूप से जानकारी लेने तथा आरोपी से पूछताछ करने का अपेक्षित रास्ता अपनाया गया। उल्टे जैसा कि बाद में आरोपी सांसद द्वारा अपने बचाव में किए गए जवाबी हमलों से साफ हो गया, उसे शिकायतकर्ताओं के संबंध में जानकारी और दे दी गयी, जिससे उसके लिए अपनी सत्ता व शक्तियों का दुरुपयोग कर, शिकायतकर्ताओं को चुप कराना आसान हो जाए। आरोपी भाजपा सांसद को, उसके खिलाफ आरोपों की जांच होने तक कुश्ती संघ के अध्यक्ष के पद से हटाने की बात रही, तो यह तो मोदी राज में स्थापित कर दिया नया नॉर्मल ही है कि आरोप लगने पर, मोदी के किसी कृपा-पात्र को पद से नहीं हटाया जाएगा!
वास्तव में इस तरह के मामलों में नरेंद्र मोदी ने, अपने ही छप्पन-इंची छाती वाले नैतिक मानक स्थापित किए हैं। याद रहे कि नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार के पहले कार्यकाल की शुरुआत ही, बलात्कार के आरोपी मंत्री, निहाल चंद मेघवाल के बचाव से शुरू हुई थी। शीर्ष स्तर से आए संकेत पर, अरुण जेटली से लेकर, मीनाक्षी लेखी तक, मोदी राज की सभी बड़ी कानूनी तोपों को मेघवाल के बचाव में खासतौर पर उतारा गया था। बेशक, मेघवाल को नरेंद्र मोदी ने कार्यकाल पूरा होने से पहले अपनी सरकार से हटाया भी था, लेकिन उनके खिलाफ बलात्कार के आरोपों की अदालती सुनवाई के चलते रहने के दो साल से ज्यादा गुजर जाने के बाद। मेघवाल को वृहत्तर मंत्रिमंडलीय फेरबदल के हिस्से के तौर पर हटाया गया, जिससे कोई यह नहीं मान या कह सके कि आरोप लगने पर और फैसला होने तक पद से दूर रखे जाने की पुरानी जनतांत्रिक परंपरा या मांग के दबाव में, मोदीजी ने अपने मंत्री को हटाया था!
हैरानी की बात नहीं है कि इससे संकेत लेकर, सत्ताधारी पार्टी की कतारों तथा सत्ताधारी पार्टी की सरकारों ने भी, अपने नेताओं तथा अधिकारियों पर महिलाओं के साथ बदसलूकी से लेकर बलात्कार तक के आरोपों में दीदादिलेरी से पेश आने को ही नियम बना लिया है। उत्तर प्रदेश के कुलदीप सिंह सेंगर व स्वामी चिन्मयानंद प्रकरणों में उत्तर प्रदेश की भाजपा की योगी सरकार की भूमिका, इसी नियम का सबूत देती थी। और ये तो एक ही डबल इंजन-शासित राज्य के दो चर्चित प्रकरण हैं। गूगल की मदद से कोई भी आसानी से सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के ऐसे मामलों की सूची बना सकता है और इतना पक्का है कि यह सूची खासी लंबी होगी। बहरहाल, मोदी राज के पहले तीन-साढ़े तीन साल में ही, बलात्कार जैसी नृशंसता के आरोपियों की हिमायत का दायरा और बढ़ाया जा चुका था।
2018 की जनवरी में हुई कठुआ में अबोध बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना में, भाजपा-आरएसएस के लोगों ने हाथ में तिरंगा झंडा लेकर जुलूस निकालकर, अपराधियों का बचाव किया, क्योंकि दरिंदगी की शिकार हुई बच्ची मुस्लिम बक्करवाल परिवार से थी, जबकि उसके साथ दरिंदगी करने वालों में एक मंदिर का पुजारी भी शामिल था। इसके करीब दो-ढाई साल बाद, हाथरस में दलित परिवार की एक किशोरी के साथ ऐसी ही वारदात में, उत्तर प्रदेश के शासन की पूरी ताकत, दोषियों को बचाव में लगा दी गयी, क्योंकि इस बार दरिंदगी की शिकार हुई लड़की दलित परिवार से थी और उसके साथ दरिंदगी करने वाले, मुख्यमंत्री के सजातीय राजपूत या ठाकुर परिवारों से। इस तरह, अपने संगी-साथियों को बचाने की कोशिश करने के सत्ताधारियों के सामान्य व्यवहार और स्त्रीविरोधी अपराधों को मामूली बनाकर देखने के आम मर्दवादी झुकाव में, मोदी के राज में एक इजाफा तो जरूर हुआ है कि पीड़िता अल्पसंख्यक या दलित हो तो, उसके साथ दरिंदगी का और खुल्लमखुल्ला बचाव किया जा सकता है। संयोग से ब्रजभूषण शरण सिंह भी की जाति वही है, जो हाथरस कांड के दरिंदों की थी।
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बहरहाल, पदक विजेता पहलवानों के यौन उत्पीड़न के आरोपों के मामले में प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर लौटें। मोदी के राज मेें प्रशासन से न्याय के लिए तीन महीने से ज्यादा इंतजार करने के बाद, जब निराश पहलवान न्याय की गुहार लगाने के लिए एक बार फिर राजधानी पहुंचे, तो मोदी राज करीब उसी भूमिका में सामने आ गया, जो हाथरस और कठुआ के मामलों में देखने को मिली थी। राजधानी के केंद्र में, कनॉट प्लेस थाने में, महिला पहलवानों ने जब कुश्ती संघ के अध्यक्ष व अन्य के खिलाफ शिकायत की, तो दिल्ली पुलिस ने, जिसका नियंत्रण सीधे अमित शाह के गृहमंत्रालय के अधीन है, एफआइआर दर्ज करने से ही इंकार कर दिया। इसके खिलाफ जब महिला पहलवान तथा उनका साथ दे रहे अन्य पहलवान तथा दूसरे खिलाड़ी, जब फिर से जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए, तो शासन अपने सारे हथियारों के साथ उनके खिलाफ खड़ा हो गया। पीड़ित महिला पहलवानों की न्याय की सारी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए, पिछले साल के आखिर में ही भारतीय आलंपिक संघ की अध्यक्ष बनायी गयीं और उससे पहले राज्यसभा के लिए मनोनीत की गयीं पीटी उषा ने, मोदी राज की कृपाओं का बोझ चुकाने के लिए, संघ की भाषा बोलते हुए विरोध जता रहे खिलाड़ियों को ही न सिर्फ ‘‘अनुशासनहीनता’’ का बल्कि ‘‘राष्ट्र की छवि खराब करने’’ का भी दोषी करार दे दिया। और मोदी सरकार के खेल मंत्री ने इसका हिसाब पेश कर दिया कि मोदी सरकार खिलाड़ियों पर कितना खर्चा कर रही है और ये खिलाड़ी उसके लिए कृतज्ञता की जगह, कृतघ्नता दिखा रहे हैं। जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी, जो इन्हीं खिलाड़ियों के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में पदक जीतने पर, उनके लिए अपने ‘‘प्रोत्साहन’’ के वीडियो पूरे देश और दुनिया भर को दिखाते नहीं थकते थे, एक बार फिर चुप्पी ही साधे रहे हैं। लेकिन, अपनी इस चुप्पी से वह किसे प्रोत्साहित करना चाहते हैं और किसे हतोत्साहित, यह कोई राज नहीं रहा है।
बेशक, इसी बीच जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे पहलवानों की आवाज, सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंची है और सुप्रीम कोर्ट के नोटिस जारी कर दिल्ली पुलिस से एफआइआर दर्ज न करने का कारण बताने के लिए कहने के बाद, पुलिस को महिला पहलवानों की शिकायतों के आधार पर, कुश्ती संघ के अध्यक्ष व अन्य के खिलाफ दो एफआइआर दर्ज भी करनी पड़ी हैं। लेकिन, इसके बावजूद कि एक एफआइआर, अवयस्क के साथ यौन प्रताड़ना के लिए, पोक्सो (POCSO) कानून के अंतर्गत दर्ज की गयी है, जिसके तहत तत्काल गिरफ्तारी ही नियम है, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शाह नियंत्रित पुलिस ने गिरफ्तारी तो दूर, आरोपी भाजपा सांसद से पूछताछ करने या पूछताछ के लिए बुलाने तक की कोई कार्रवाई नहीं की है। दूसरी ओर, पहलवानों के धरने पर शिकंजा कसते हुए, पुलिस ने धरने पर बैठे पहलवानों की बिजली-पानी की आपूर्ति रोक दी और वहां गद्दे आदि लाए जाने की मनाही करते हुए, अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को नंगी सड़क पर ही सोने के लिए मजबूर कर दिया। यह दूसरी बात है कि इसके बावजूद, प्रदर्शनकारियों के हौसले बुलंद हैं और उन्होंने तब तक धरना जारी रखने का एलान किया है, जब तक दोषी भाजपा सांसद के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है।
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जाहिर है कि धरने पर बैठे पहलवानों को लगातार बढ़ते पैमाने पर देश के दूसरे अनेक प्रतिष्ठित खिलाड़ियों का ही समर्थन नहीं मिल रहा है, खाप पंचायतों व संयुक्त किसान मोर्चा समेत विभिन्न सामाजिक संगठनों व छात्र, युवा, महिला आदि विभिन्न तबकों के संगठनों के अलावा, अनेक राजनीतिक पार्टियों का भी समर्थन मिला है। गौरतलब है कि जिन पहलवानों ने, तीन महीने पहले जंतर-मंतर पर ही अपने धरने को समर्थन देने पहुंचे, राजनीतिक नेताओं के समर्थन को यह कहकर अस्वीकार कर दिया था कि हमारी लड़ाई को राजनीतिक नहीं बनाएं, अब तक के अनुभव से सीखकर इस बार सभी राजनीतिक पार्टियों के समर्थन का स्वागत कर रहे हैं।
दूसरी ओर, महिला पहलवानों के साथ न्याय की मांग के लिए, विपक्षी पार्टियों के समर्थन समेत इस बढ़ते समर्थन से बौखलाकर और जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी के मौन में छुपे अनुमोदन को भांपकर, न सिर्फ भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरणसिंह ने अपने बचाव के लिए हमला बोल दिया है, बल्कि उत्तर प्रदेश में शासन-प्रशासन व सत्ताधारी पार्टी ने उनके साथ हमला बोल दिया है। इसके साथ ही और बड़े पैमाने पर संघ-भाजपा के विभिन्न अंगों-उपांगों ने और खासतौर पर सोशल मीडिया की उनकी ट्रोल सेना ने, प्रदर्शनकारी पहलवानों के खिलाफ हमला बोल दिया है और संघ-भाजपा के खास विभाजनकारी दांव के अनुरूप उन्होंने इसे उत्तर प्रदेश के राजपूतों के खिलाफ, हरियाणा के जाटों का हमला बनाने का प्रचार अभियान छेड़ दिया है।
जाहिर है कि यह प्रचार अभियान खुद ही, यह उजागर कर देता है कि मोदी राज को देश की अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ियों को, खुल्लमखुल्ला अन्याय के जरिए हतोत्साहित करने की कीमत चुकाना तो मंजूर है, पर ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ, उसे कुश्ती संघ के अध्यक्ष पद से हटाने तक की कार्रवाई करना मंजूर नहीं है। सभी जानते हैं बाहुबली-माफिया हिस्ट्रीशीटर के अपने प्रभाव के बल पर, पिछले कई कार्यकाल से संसद पहुंच रहे ब्रजभूषण शरण सिंह पर केसों की सूची ही बहुत लंबी नहीं है, पूर्वी-उत्तर प्रदेश के कई संसदीय क्षेत्रों में जातिगत संतुलन को भाजपा के पक्ष में झुकाने के लिए उसकी विशेष उपयोगिता भी है। जिस वजह से सारे शोर-शराबे के बावजूद, पांच किसानों को अपनी थार जीप के नीचे कुचलकर मार देने के दोषी, अपने बेटे आशीष मिश्रा को झूठ बोलकर बचाने की कोशिश करने वाले, अजय मिश्र टेनी को अपने मंत्रिमंडल से हटाना तक नरेंद्र मोदी को मंजूर नहीं हुआ, क्योंकि उससे पूर्वी-उत्तर प्रदेश में मोदी के चुनावी समीकरणों पर असर पड़ सकता है, उसी वजह से मोदी ब्रजभूषण शरण सिंह को कुश्ती संघ के अध्यक्ष के पद से नहीं हटाएंगे और अपनी चुप्पी से, अपनी समर्थक सेनाओं को उसके पाले में लड़ने के लिए भेजते भी रहेंगे। याद रहे कि बिलकीस बानो के बलात्कारियों और उनके परिवार के हत्यारों को माफी दिलाने का फैसला भी, प्रधानमंत्री की ऐसी ही कानफोडू चुप्पी ने सुनाया था।