जाति जनगणना इस दौर का सबसे ज्वलंत मुद्दा है। सामाजिक भागीदारी का कोई भी उद्देश्य जाति जनगणना के सवाल को हल किए बिना पूरा नहीं हो सकता। लेकिन भारत में जाति जनगणना के सवाल को बार-बार नकारने की कोशिशें चल रही हैं। इसके खिलाफ एक कुपाठ वातावरण में फैला दिया गया है कि इससे जातिवाद बढ़ेगा। असल बात यह है कि जो पहले से अपने जाति वर्चस्व के कारण विशेषाधिकारों और अवसरों का लाभ उठा रहे हैं वे ही ऐसा कुपाठ रच रहे हैं। क्योंकि जाति जनगणना से उनके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी। अधिवक्ता प्रेम प्रकाश सिंह यादव विगत कई वर्षों से इस सवाल को लेकर जनचेतना फैला रहे हैं। उन्होंने जाति जनगणना को लेकर भारत सरकार के टालमटोल नीति का ऐतिहासिक खाका खींचा है। साथ ही वे अविलंब इसे कराये जाने की आवश्यकता के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कारणों की पड़ताल भी की है। देखिये उनसे अपर्णा की बातचीत और चैनल को सब्सक्राइब भी करिए।
हर वर्ग के प्रतिनिधित्व का स्पष्टीकरण है जाति जनगणना
जाति जनगणना इस दौर का सबसे ज्वलंत मुद्दा है। सामाजिक भागीदारी का कोई भी उद्देश्य जाति जनगणना के सवाल को हल किए बिना पूरा नहीं हो सकता। लेकिन भारत में जाति जनगणना के सवाल को बार-बार नकारने की कोशिशें चल रही हैं। इसके खिलाफ एक कुपाठ वातावरण में फैला दिया गया है कि इससे जातिवाद […]