Sunday, July 7, 2024
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वाराणसी : लोक जन चेतना यात्रा में मुखर हुई प्रतिरोध की आवाज, ‘सरकार के मंसूबे कामयाब नहीं होने देंगे’

 मानवीय मूल्यों की रक्षा और प्रगतिशील लोकतांत्रिक भारत निर्माण के लिए आवाज उठाने के मंसूबे के साथ कोलकाता से शुरू हुई जन चेतना यात्रा बुधवार 20 दिसंबर को वाराणसी पहुंची। यह यात्रा बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी 6 दिसंबर को कोलकाता से शुरू की गई थी। इस यात्रा का मुख्य मकसद फासीवादी औए नवउदारवादी ताकतों […]

 मानवीय मूल्यों की रक्षा और प्रगतिशील लोकतांत्रिक भारत निर्माण के लिए आवाज उठाने के मंसूबे के साथ कोलकाता से शुरू हुई जन चेतना यात्रा बुधवार 20 दिसंबर को वाराणसी पहुंची। यह यात्रा बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी 6 दिसंबर को कोलकाता से शुरू की गई थी। इस यात्रा का मुख्य मकसद फासीवादी औए नवउदारवादी ताकतों को उखाड़ फेंकना और मानवीय मूल्यों को स्थापित करना है। प्रगतिशील चेतना के 17 से अधिक संगठनों, ट्रेड यूनियनों, छात्र संगठनों, महिला समूहों, नागरिक अधिकारों और लोकतांत्रिक संगठनों से जुड़े लोग बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश तक जन चेतना यात्रा में शामिल रहे।

फासीवाद एवं नव उदारवादी ताकतों को उखाड़ फेंकने और मानवीय मूल्यों की स्थापना के उद्देश्य से निकाली गयी इस यात्रा में दलित, शोषित, पिछड़े, वंचित समाज ने मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। 6 से 20 दिसंबर तक कोलकाता के धनतला से शुरू हुई यह जन चेतना यात्रा पश्चिम बंगाल के विभिन्न जिलों तथा झारखंड और बिहार के कई जिलों से होते हुए वाराणसी पहुंची और यहाँ  बीएचयू के गेट पर आकर खत्म हुई। ।

कार्यक्रम के समापन की घोषणा करते हुए जन चेतना यात्रा के समन्वयक अमिताभ भट्टाचार्य ने कहा ‘हमारी यह लड़ाई यहीं पर खत्म नहीं होगी। यह लड़ाई आगे भी जारी रहेगी। हम आगे की रणनीति मिल बैठकर तय करेंगे कि वर्तमान सरकार जिस प्रकार से काले कानून लाकर दलितों, मजदूरों, वंचितों की आवाज को दबाने का काम कर रही है उससे हम किस प्रकार से और मजबूती के साथ लड़ें। हम सरकार को उसके मंसूबों में कामयाब नहीं होने देंगे।’

अमिताभ भट्टाचार्य ने आगे कहा कि ‘वर्तमान सरकार हर स्तर पर फेल नजर आ रही है। लोग मंहगाई से परेशान हैं। सभी सरकारी संस्थाओं का निजीकरण किया जा रहा है। मंदिर और मस्जिद के साथ ही लोगों को जाति और धर्म के नाम पर बांटने की सरकार साजिश कर रही है। इस फासीवाद और नव उदारवाद का मैं विरोध करता हूँ। अंबानी और अडानी के करण हमारे मजदूर भाइयों को कष्ट उठाना पड़ रहा है। हम चाहते हैं कि हमारे मजदूर भाइयों का वह कष्ट खत्म हो जाय। नौजवान नौकरी के लिए मर रहा है। सरकार को इसकी चिंता नहीं है। 15 दिनों की हमारी यात्रा अनेक राज्यों से होती हुई आज बनारस पहुंची है। उत्तर प्रदेश का यह बनारस एक तरफ जहां नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है वहीं दूसरी तरफ यह प्रदेश रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां का भी क्षेत्र है, जहां पर इन लोगों ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया। उन्होंने यह नहीं देखा की यह हिन्दू है, वह मुसलमान है। लेकिन आज की राजनीति में एक ऐसा जहर घोला जा रहा है जो हमारे भाई-चारे को ही खत्म कर रहा है। आरएसएस-बीजेपी की बढ़ती फासीवादी आक्रामकता के ख़िलाफ़ बड़ी संख्या में युवा,मजदूर, दलित, किसान और महिलाएं हमारे साथ पिछले 15 दिनों से संघर्ष कर रहे हैं। हम सब मिलकर एक नए भारत के निर्माण का संकल्प लेते हैं। साथ ही इस दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प भी लेते हैं।’

समाजवादी विचारक अफलातून

कार्यक्रम में शामिल समाजवादी विचारक अफलातून ने कहा ‘इस यात्रा से न सिर्फ लोगों के अंदर चेतना का भाव पैदा होगा बल्कि देश की आम जनता नवउदारवादी हमलों के षड्यंत्र को समझकर  उसके खिलाफ अपनी आवाज मजबूत करेगी। धर्म और जाति के नाम पर नफरत और हिंसा फैलाने वालों से लोग  सजग होंगे। जनता पर होने वाले हर प्रकार के शोषण, उत्पीड़न और दमन के ख़िलाफ़ लोगों में आक्रोश की भावना पैदा होगी। लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता और प्रगति के लिए यह यात्रा बहुत जरूरी है।’

झेलम

कार्यक्रम में बोलती हुई पश्चिम बंगाल के हुगली की झेलम कहती हैं की ‘आज देश में महिलाओं के साथ हत्या और बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रही हैं। मोदी सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दे रही है। देश के प्रधानमंत्री अक्सर कहते रहते हैं कि उनकी सरकार में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। समाज में महिलाओं का सम्मान बढ़ा है। लेकिन सच्चाई इससे उलट है। आज देश में लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ हो रही हैं और सत्ता के दबाव में रिपोर्ट तक नहीं दर्ज हो रही है।’

शिल्पक

पश्चिम बंगाल से ही आए युवा छात्र शिल्पक सवाल पूछने वाले अंदाज में कहते हैं ‘आज का युवा इतनी पढ़ाई- लिखाई क्या केवल चाय बेचने के लिए कर रहा है? चाय बेचने का काम तो बिना पढ़ाई–लिखाई के भी किया जा सकता है। फिर हम इतनी पढ़ाई लिखाई क्यों कर रहे हैं ? आज जब युवा लोग रोजगार की मांग कर रहे हैं तो उन्हें लाठियों से पीटा जा रहा है। आज युवा निराश और हताश है। मैं उन्हीं युवाओं से कहने आया हूँ कि बदल दो ऐसी सरकार को जो तुम्हें रोजगार नहीं दे सकती, जो तुमसे पकौड़े तलने की बात करती है। आज युवाओं को नौकरी की जरूरत है। आज पेट्रोल  का दाम आसमान छू रहा है। गैस के दाम में आग लगी हुई है। ऐसे में एक गरीब आदमी क्या खाएगा, कैसे  जिएगा सरकार को इसकी चिंता नहीं है।

यात्रा के उद्घाटन के लिए कोलकाता में कॉर्पोरेशन बिल्डिंग एस्प्लेनेड में एक सामूहिक सम्मेलन का आयोजन भी किया गया था। 7 से 10 दिसंबर तक यह  यात्रा पश्चिम बंगाल के हुगली, पूर्वी बर्धमान, बांकुरा और पश्चिम बर्धमान से होते हुए अपने अगले पड़ाव 11 और 12 दिसंबर को झारखंड के धनबाद, निरसा और बोकारो से होते हुए यह बिहार तक यह यात्रा चलती रही। 13 दिसंबर को बिहार के पटना में एक सामूहिक सम्मेलन आयोजित किया गया। 14-18 दिसंबर तक बिहार के विभिन्न क्षेत्रों गया, औरंगाबाद, रोहतास और कैमूर जिलों से होकर यह यात्रा गुजरी। गया, कोच, दाउदनगर, नासिरगंज, सासाराम, भभुआ समेत अन्य क्षेत्रों में यात्रा के साथ ही सम्मेलनों का आयोजन भी हुआ। यात्रा के आयोजन में अखिल हिंद फॉरवर्ड ब्लॉक (क्रांतिकारी), आज़ाद गण मोर्चा, बीएएफआरबी, बिहार निर्माण एवं असंगठित श्रमिक संघ, सीबीएसएस (चाय बागान संग्राम समिति), सीसीआई, सीपीआई-एमएल, सीपीआई-एमएल (एनडी), सीपीआई-एमएल (आरआई), एफआईआर, जनवादी लोक मंच, मार्क्सवादी समन्वय समिति, एमकेपी, नागरिक अधिकार रक्षा मंच, पीसीसी – सीपीआईएमएल, पीडीएसएफ, एसएनएम और अन्य लोकतान्त्रिक मूल्यों के पक्षधर लोग उपस्थित रहे।

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