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आदिवासी लड़कियों के जीवन में भी है जेन्डर असमानता

लड़का-लड़की के लालन-पालन से संताल समाज में होने वाले विभेद पर लड़कियों ने अपनी राय देते हुए बताया कि लड़के के पालन-पोषण में माँ को थकावट महसूस नहीं होती है। लड़की को जहां मनपसंद कपड़ा पहनने को नहीं मिलता है, वहीं लड़के को इच्छानुसार कपड़ा मिलता है। खेलने में भी भेदभाव बरता जाता है। लड़की घरेलू सामानों से ही खेलती है जबकि लड़कों को खेलने के लिए फुटबाॅल मिलता है।

दूर से देखने पर कोई भी समाज अपना बाहरी रूप ही दिखाता है, इसके अंतर्विरोधों को समझने के लिए जरूरी है कि उसे नजदीक से देखा जाये। उनसे ही उनके बारे में जाना जाये। झारखण्ड से बाहर गैर-आदिवासी बहुल प्रदेशों के लिए झारखण्ड के आदिवासी समाज को समझाना जरा कठिन है, और यह काम और भी मुश्किल हो जाता है जब लड़कियों की स्थिति जाननी हो। आदिवासी लड़कियों के जीवन चक्र को समझने के लिए जब संताल परगना के आदिवासी लड़कियों पर अध्ययन करना शुरू किया तो लड़कियों की स्थिति पर कार्य करते हुए लगा कि आदिवासी लड़कियों के जीवन के बारे में जानकारी के बिना यह काम अधूरा है। इसलिए संताल परगना की संताल आदिवासी लड़कियों के बारे में उनके बीच कई दिन रहकर उनसे उन्हीं के बारे में जानने की कोशिश की। इस बातचीत में भाषा की दीवार को गिराने का काम जनमत की कई आदिवासी महिला कार्यकर्ताओं ने किया। यह बातचीत ‘सहभागी शोध पद्धति’ के आधार पर हुई। यह बात दुमका, गोड्डा, पाकुड़ के कई गांवों में कई-कई छोटी-छोटी बैठकों में हुई। जिसमें कुल 70-80 लड़कियाँ शामिल हुईं। बातचीत का उद्देश्य था कि खुद अपने बारे में वे क्या सोेचती हैं, उनके साथ कौन से विभेद होते हैं आदि-आदि। प्रस्तुत विचार उन्हीं लड़कियों से हुई बातचीत के नतीजे हैं।

खाना बनाती लड़की और क्रिकेट खेलते लड़के

स्थिति को समझने की कोशिश में हमने फिल्ड वर्क से यह जाना कि संताल समाज में लड़कियों की स्थिति जानने के लिए जरूरी है कि पहले उनके पूरे जीवन चक्र को समझा जाये। संताल लड़कियों ने बताया कि लड़की जन्म लेती है तो परिवार में उदासी छा जाती है। यहां तक कि जन्म देने वाली माँ भी उदास रहती है। विशेषकर पिता ज्यादा उदास रहता है। हालांकि एक विचार यह आया कि बाप इसलिए उदास रहता है कि लड़की को उसकी संपत्ति वंचित होना पड़ेगा।

लडकियों ने बताया कि इसके उलटा लड़का होने पर परिवार में खुशी मनायी जाती है और लडके की मां को भारी काम नहीं करने दिया जाता है। मनपसंद खाना दिया जाता है। पिता सबसे ज्यादा खुश रहता है। क्योंकि उसकी सम्पति का अधिकारी पैदा हो गया है। पति-पत्नी के बीच प्यार भी बढ़ता है। लड़का परिवार के हर सदस्य का दुलारा रहता है। बीमार होने पर तुरंत दवाई की व्यवस्था की जाती है। लड़का पैदा होने पर भोज का आयोजन भी होता है।

लड़का-लड़की के लालन-पालन से संताल समाज में होने वाले विभेद पर लड़कियों ने अपनी राय देते हुए बताया कि लड़के के पालन-पोषण में माँ को थकावट महसूस नहीं होती है। लड़की को जहां मनपसंद कपड़ा पहनने को नहीं मिलता है, वहीं लड़के को इच्छानुसार कपड़ा मिलता है। खेलने में भी भेदभाव बरता जाता है। लड़की घरेलू सामानों से ही खेलती है जबकि लड़कों को खेलने के लिए फुटबाॅल मिलता है। लड़के को कहीं आने-जाने में रोक-टोक नहीं होती, जबकि लड़की 10 साल की हुई नहीं कि उस पर पाबंदियाँ बढ़ने लगती है।

 खान-पान में होने वाली विभेद के बारे में संताल लड़कियों ने बताया कि लड़के को अच्छा से अच्छा खाना दिया जाता है। माँस, मछली या विशेष सब्जी बनाने पर लड़के को विशेष रूप से खिलाया जाता है। अगर कुछ बचा तभी लड़कियों को मिलता है नहीं तो उसे केवल माड़-भात खाकर ही संतोष करना पड़ता है। पांँचवे क्लास में पढ़ रही एक लड़की ने बताया कि काॅलेज में पढ़ने वाला उसका बड़ा भाई जब भी घर आता है, तो माँ अण्डा बनाती है। और अक्सर ऐसा होता है कि उसे अण्डा नही मिलता है और उसे केवल माड़ -भात खाना पड़ता है। इस लड़की को यह विभेद देखकर काफी दुख होता है।

बचपन से ही बोया जाता है असमानता का बीज

इसकी वजह के बारे में लड़कियों की राय थी कि मां-बाप को लगता है कि उनके बुढ़ापे में बेटा ही सहारा बनेगा। इसलिए उसके खान-पान पर विशेष ध्यान दिया जाता है। बीमारी में भी विभेद किया जाता है। संताली लडकियों के ही मुताबिक लड़कियों को बुखार में भी काम करना पड़ता है। जैसे बर्तन धोना झाडू करना आदि। लड़के के बीमार पड़ने पर उसे जल्दी से ओझा या डाॅक्टर के पास ले जाया जाता है। ऐसे तो पूरे संताल समाज में पढ़ाई-लिखाई की स्थिति अच्छी नहीं है लेकिन जहां तक कुछ लोग पढ़-लिख रहे हैं वहां भी उनके साथ भेदभाव बरता जा रहा है। लड़कियों को या तो पढ़ाया नहीं जाता या पढ़ाया भी गया तो कम। हालांकि विदिन होड़ संताली और ईसाई होड़ संताली में फर्क है। ईसाई संताली ज्यादा लड़कियों को पढ़ा रहे हैं। दूसरी ओर जो लोग अपने बच्चों को पढ़ा रहें हैं वे लड़कों की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं लड़कियों को पढ़ने के लिए कम समय दिया जाता है।

 जिंदगी के एक महत्वपूर्ण मामले शादी में भी लड़कियों की पसंद बहुत मानये नहीं रखती है। लड़कियों ने बताया कि लड़का मेले या हाट-बाजार से भी लड़की को पकड़कर शादी कर लेता है। भले ही लड़की की मर्जी हो या नहीं जबकि लड़कियों ऐसा नहीं कर सकती हैं। संताल समाज में लड़कियों की कम उम्र में शादी का प्रचलन बहुत ही कम है अधिकतर लड़कियों की शादी बड़ी होने पर ही की जाती है। पर ईसाई संताल अपनी लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र के बाद ही करते हैं। शादी के मामले मेें अगर किसी लड़की की शादी ज्यादा दिन तक नहीं होती है तो उसे बुरी नजर से देखा जाता है। छोटी बहन की पहले शादी होने पर भी बड़ी बहन की शादी में मुश्किल आती है। विधवा की शादी के बारे में लड़कियों ने जानकारी दी की अगर जवानी में ही कोई लड़की विधवा हो जाती है तो उसकी दूसरी शादी हो जाती है। अगर पति मर गया तो विधवा की स्थिति बदतर हो जाती है और अक्सर ‘डायन’ का आरोप लगाकर उसे समाज में सताया जाता है।

 संताली लड़कियों से बातचीत के दौरान जब यह जानने की कोशिश की गयी कि, लड़की होने के नाते घर में या समाज में उन्हें कौन-कौन से विभेद का सामना करना पड़ता है तो उन्होंने विभेदों की गिनती गिना दी। उनका कहना था कि यदि हम लड़के होते तो सहूलियत मिलती। परिवार और समाज की नजरों में हम भी महत्व रखते पर अफसोस कि हम लड़की हैं। इसलिए ढेर सारी बंदिशें हैं।

संताली लड़कियों द्वारा व्यक्त विचार उनके भीतर की ख्वाहिश को उजागर करते हैं और यह ख्वाहिश उनके साथ बरते जा रहे विभेद की उपज है। लड़की होना बुरी बात नहीं है। पर लड़की होने के कारण घर पर और समाज में बरते जा रहे विभेद उन्हें ऐसा सोेचने पर मजबूर कर रहे हैं कि काश वे भी लड़का होतीं। यह दर्द सिर्फ आदिवासी लड़कियों का ही नहीं बल्कि तथाकथित सभ्य समाज वाली गैर संताली लड़कियों का भी है। गौरतलब है बाहर से आदिवासी समाज काफी खुले विचारों वाला विभेद रहित समाज माना जाता है। लेकिन सच्चाई यह है कि अन्य गैर-आदिवासी समाज की तरह यहाँ भी लड़के-लड़कियों में काफी भेद-भाव देखा जाता है।

किस लड़की को गुणी कहा जायेगा और किस लड़की को अवगुणी इस बारे में भी संताली लड़कियों की राय आमधारणाओं से अलग नहीं है। गुणी लड़कियों के बारे में अपने समाज के धारणाओं पर बात करते हुए लड़कियों ने बताया कि जो घर में रहती हैं, मां-बाप की बात को ध्यान से मानती है, जोर से हंसती नहीं हैं, घर का सब काम करती हैं, कोई दस बात बोल भी दे तो जबाव न दे, काम कराने को बावजूद कोई डाँट दे तो सह जाएं।

अवगुणी लड़कियों के बारे में लड़कियों ने बताया कि, जो ज्यादा घूमे, लड़कों से बात करें, अच्छा कपड़ा पहने, अच्छा साबुन लगाकर नहाये जो रात को घूमने निकल जाये, दुमका अकेली चली जाये, जो लड़की कहीं अकेले डेरा लेकर रहती है गुस्सा आना। जोर से हंसना, किसी से जल्दी घुल जाना आदि। कुछ वर्ष पहले तक चप्पल पहनने, साइकिल चलाने, फुटबाॅल खेलने आदि पर लड़कियों को समाज में बुरी नजर से देखा था। परन्तु अब धीरे-धीरे हालात बदल रहे हैं।

बिदिन होड़ और ईसाई होड़ लड़कियों के बारे में जानने की कोशिश की गई तो लड़कियों के प्रति नजरिये के मामले में संताल विदिन होड़ और संताली ईसाईयों में इसाई होड़ के बीच अंतर है। हालांकि यह अंतर उसी समाजिक व्यवस्था में रहते हुए है। यह एक रेखांकित करने वाली बात है। दो तीन मोटा-मोटी फर्क जो लड़कियों ने बताये वो यह है कि विदिन होड़ लड़कियों की शादी की उम्र सीमा निश्चित नहीं है, लड़कियों की पढ़ाई पर कम ध्यान दिया जाता है। शादी के लिए लड़कियों की राय आम तौर पर नहीं ली जाती है। ईसाई होड़ के बारे में पता चला कि उसमें लडकियों की शादी 18 वर्ष से पहले नहीं होती है। लड़कियों की भी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। शादी के लिए लड़का-लड़की की राय पूछी जाती है।

जब गांव घर समाज में लड़कियों के साथ घटने वाली दुर्घटना को लेकर बात की गई तो, संताल समाज में अपराध का स्तर काफी कम पाया गया हालांकि घर के अंदर और घर के बाहर महिलाओं के साथ दुर्घटनाएं होती रहती हैं। संताली लड़कियों ने बताया कि कब-कब सबसे ज्यादा दुर्घटना की आशंका रहती है।

शादी-ब्याह के मंडप से बाहर जाने पर लड़के छेड़खानी करते हैं। अकेली लड़की के आने-जाने से दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। दुराचार की अधिकतर घटना गर्मी के मौसम में होती हैं। ताड़ी पीकर लड़कों का झुंड किसी भी महिला या लड़की को अकेले पाकर उसके साथ अपना मुंह काला करता है। स्कूल से लौटते समय अकेली लड़की के रहने पर भी उसके साथ दुराचार की आशंका बनी रहती है। साप्ताहिक हाट या बाजार में भी छेड़खानी होती है। साथ ही बाजार जहां वे काम करने जाती हैं वहां भी इनके शरीर के साथ खिलवाड़ किया जाता है।

जब लड़कियों की शाम की जीवनचर्या और उसके अंतर को लेकर बात चली तो लड़कियों ने बताया कि, उनकी शाम घरेलू काम करते हुए बीतती है। आठ नौ साल की उम्र के बाद अधिकांश लड़कियों के खेलने पर रोक है। जबकि लड़के फुटबाॅल खेलते हैं या दल बनाकर घूमने निकल जाते हैं। हलांकि पिछले कुछ वर्षों से लड़कियों ने हिम्मत दिखाकर फुटबाॅल खेलना शुरू किया है। यह एक बेहतर शुरुआत है।

और अंत में जब लड़कियों से पूछा गया कि इन उपरोक्त विभेदों का उनकी नजर में क्या कारण है? तो वे स्पष्ट जवाब नहीं दे पायीं, क्योंकि इस पर उन्होंने बहुत विचार किया ही नहीं। हालांकि उन्होंने बताया कि इस विभेद का कारण हमारी परंपरायें हैं।

विभेद समाप्त करने के तरीके के बारे में उनकी राय थी कि कुछ लोग सिर्फ महिलाओं के बीच ही काम करते हैं और समझते हैं विभेद दूर हो जाएगा। सिर्फ महिलाएं या लड़कियों के बीच काम करने से समाज के पुरुषों या लड़कों में उल्टी प्रतिक्रिया भी हो सकती है, जिसका परिणाम लड़कियों पर पाबंदी के रूप में सामने आ सकता है। इसलिए संताली लड़कियों ने सुझाव दिया कि पुरुषों और लड़कों से भी उनके मुद्दे पर सीधे बात की जानी चाहिए और फिर लड़के-लड़कियों का आमने-सामने बिठाकर बात करनी चाहिए। इससे समाज के सभी लोगों को लड़कियों की समस्या को समझने का मौका मिलेगा। बहुत संभव है कि तब कुछ नया रास्ता भी निकलेगा और ऊपर से काफी खुला उदार और विभेद रहित देखने वाला यह समाज समय के साथ अपने आपमें और अपने पिली पड़ती जा रही पुरानी पराम्पराओं में आयी विकृतियों को पहचान कर उसमें आवश्यक बदलाव लाने की दिशा में पहल करेगा।

यह जनमत शोध संस्थान द्वारा जारी अध्ययन रिपोर्ट है।

 

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