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तेज गर्मी के बीच इस साल मानसून में होगी सामान्य से ज्यादा बारिश, मौसम विभाग ने जारी किया पूर्वानुमान

आईएमडी प्रमुख ने कहा कि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड में सामान्य से कम बारिश होने की संभावना दिख रही है। उनके मुताबिक इसी तरह से पूर्वोत्तर के राज्यों--असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नगालैंड और अरूणाचल प्रदेश के आसपास के इलाकों में भी सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है।

भारत मौसम विभाग (आईएमडी) ने अपने पूर्वानुमान में सोमवार को बताया कि इस साल मानसून के दौरान पूरे देश में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की संभावना है। लेकिन विभाग ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में सामान्य से कम वर्षा होने के आसार हैं।

आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने यहां पत्रकार वार्ता में कहा कि पूरे देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून के तहत एक जून से 30 सितंबर के बीच मानसून ऋतुनिष्ठ वर्षा दीर्घावधि औसत (एलपीए) का 106 फीसदी होने की संभावना है।

महापात्र ने कहा कि आईएमडी अपने पूर्वानुमान में अल नीनो, ला नीनो, हिंद महासागर द्विध्रुव स्थितियां और उत्तरी गोलार्ध में बर्फीले आवरण संबंधी स्थिति के प्रभाव पर विचार करता है और यह सभी स्थितियां इस बार भारत में अच्छे मानसून के अनुकूल हैं।

उन्होंने बताया कि उत्तर पश्चिम, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर देश के ज्यादातर हिस्सों में सामान्य से ज्यादा वर्षा होने की प्रबल संभावना है।

लेकिन आईएमडी प्रमुख ने कहा कि जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड में सामान्य से कम बारिश होने की संभावना दिख रही है। उनके मुताबिक इसी तरह से पूर्वोत्तरी राज्यों–असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नगालैंड और अरूणाचल प्रदेश के आसपास के इलाकों में भी सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है।

उन्होंने बताया कि पूर्वी राज्यों- ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड के कुछ हिस्सों व पश्चिम बंगाल में गंगा के मैदानी इलाकों में भी सामान्य से कम वर्षा होने का अनुमान है।

महापात्र ने कहा कि 1971 से 2020 तक के बारिश के आंकड़ों के आधार पर हाल के वर्षों में नया दीर्घावधि औसत पेश किया गया है जिसके तहत एक जून से 30 सितंबर के बीच पूरे देश में औसतन 87 सेंटीमीटर बारिश होती है।

उन्होंने कहा कि अगर ऋतुनिष्ठ वर्षा दीर्घावधि औसत की 96 फीसदी से 104 प्रतिशत के बीच होती है तो वह सामान्य मानी जाती है।

आईएमडी प्रमुख ने कहा कि दीर्घावधि औसत की 106 फीसदी बारिश सामान्य से अधिक की श्रेणी में आती है और अगर वर्षा दीर्घावधि औसत की 105 फीसदी से 110 फीसदी के बीच होती है तो इसे सामान्य से अधिक माना जाता है।

‍‍‍‍‍‍विभाग के मुताबिक, अगर बारिश एलपीए का 90-96 प्रतिशत के बीच होती है तो उसे सामान्य से कम माना जाता है।

आईएमडी प्रमुख के मुताबिक, वर्तमान में भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र पर अल नीनो की मध्यम स्थिति बनी हुई है तथा मानसून ऋतु के शुरुआती दौर में अल नीनो की स्थिति और कमजोर होकर तटस्थ अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) स्थितियों में परिवर्तित होने की संभावना है और इसके बाद अगस्त-सितंबर में ला नीना स्थितियां विकसित होने की संभावना है।

उन्होंने कहा कि जब अल नीनो की स्थिति होती हैं जो ज्यादातर वर्षों में बारिश पर इसका नकारात्मक असर होता है।

आगे उन्होंने कहा कि 1951 से 2023 के दौरान 22 साल ऐसे रहे जब ला नीनो की स्थितियां रहीं और इन वर्षों में ज्यादातर साल में दक्षिण पश्चिम मानसून के तहत सामान्य या सामान्य से ज्यादा बारिश हुई।

महापात्र के मुताबिक, 1951 से 2023 के बीच नौ साल ऐसे रहे जब अल नीनो जा रहा था और ला नीनो आ रहा था, जैसा इस साल है। उन्होंने कहा कि इन नौ साल में से दो वर्ष के दौरान मानसून की वर्षा सामान्य से ज्यादा रही और पांच साल अत्याधिक बारिश हुई तथा दो अन्य वर्षों के दौरान बारिश करीब करीब सामान्य रही।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में हिंद महासागर पर तटस्थ हिंद महासागर द्विध्रुव (आईओडी) स्थितियां मौजूद हैं और सकारात्मक आईओडी स्थितियां दक्षिण-पश्चिम मानसून ऋतु के उत्तरार्ध के दौरान विकसित होने की संभावना है जो मानसून के लिए अच्छा है।

महापात्र ने एक सवाल के जवाब में कहा कि इन स्थितियों की वजह से मानसून की शुरुआत की तुलना में अगस्त-सितंबर में ज्यादा बारिश होने की संभावना है।

आईएमडी प्रमुख ने कहा कि पिछले तीन महीनों (जनवरी से मार्च 2024) के दौरान उत्तरी गोलार्ध, खासकर यूरोप और एशिया में कम बर्फबारी हुई। उन्होंने कहा कि उत्तरी गोलार्ध और यूरेशिया में बर्फ आवरण क्षेत्र सामान्य से कम था और सामान्य से कम हिमपात होना भारत में जून से सितंबर के दौरान बारिश के लिए अनुकूल है।

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