नौजवान पत्रकार राघव त्रिवेदी का जीवन 12 मई को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की चुनावी रैली की कवरेज के दौरान जोख़िम में पड़ गया। उत्तर प्रदेश में संविधान का चौथा स्तम्भ जर्जर होता जा रहा है। आलोचनात्मक ख़बरें लिखने-दिखाने वाले पत्रकारों को अपराधियों की गोलियों या सरकारी उत्पीड़न का निशाना बनना पड़ रहा है।
पत्रकारों पर सरकारी काम-काज या नीतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण न करने का दबाव रहता है। सरकार की मंशा के खिलाफ़ ख़बर लिखने या दिखाने वाले पत्रकारों पर मुक़दमे लाद दिए जाते हैं। वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि सरकार आलोचनात्मक पत्रकारिता पर लगाम कस कर अपनी ‘सुशासन’ की छवि को धूमिल होने से बचाती है, जो उसने मुख्यधारा के मीडिया पर कब्ज़ा करके बनाई है। मीडियाकर्मियों के अनुसार तमाम उत्पीड़न के बावजूद मीडिया संगठन आज भी पत्रकारों के हितों के लिए सचेत नहीं हैं।
वैकल्पिक मीडिया ‘मॉलिटिक्स’ (यूट्यूब चैनल) में काम करने वाले राघव पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रैली के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से हमला कर दिया। हमले का कारण बताते हुए वह एक वीडियो को बताते हैं, जिसमें कुछ महिलाओं ने स्वीकार किया कि उनको पैसे देकर अमित शाह की रैली में बुलाया गया।
राघव के अनुसार भगवा पार्टी के कार्यकर्ता इस वीडियो से चिढ़ गये और उनको दाढ़ी की कारण मुसलमान समझ कर उनको भारी भीड़ के बीच पीट दिया गया। अगर राघव की मानें तो जब उनकी पिटाई हो रही थी, उस समय गृहमंत्री अमित शाह स्वयं भी मंच पर मौजूद थे। राघव कहते हैं कि इससे भी ज़्यादा दुखद यह है कि ‘जब वे लोग मुझे मुसलमान पत्रकार समझ कर मार रहे थे तो वहाँ रैली में मौजूद लोग उत्साहित होकर नारेबाजी कर रहे थे।’
अपने ऊपर हुए हमले के बारे में बताते हुए राघव कहते हैं कि किसी तरह जब वह बच के अस्पताल गए तो वह दर्द से तड़प रहे थे। उनके दर्द इतना अधिक था कि उनको पेन किलर के तीन इंजेक्शन लगाने पड़े और दो ‘ग्लूकोज़’ की बोतल चढ़ानी पड़ी थी। लेकिन इससे ज़्यादा राघव को इस बात का दर्द है कि उनको पीटा जा रहा था और पुलिस ख़ामोश खड़ी देख रही थी।
पत्रकारिता में आने से पहले कुमाऊं यूनिवर्सिटी, नैनीताल में ‘मीडिया स्टडीज’ पढ़ने वाले राघव कहते हैं कि पत्रकारों पर बढ़ते हुए हमले का कारण उनमें आपसी एकजुटता की कमी है। वह कहते हैं कि यह चिंता का विषय है कि पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं और पत्रकार संगठन ख़ामोश बैठे हैं। उनके अनुसार मौजूदा वक्त में पत्रकार जाति, धर्म, वामपंथी, दक्षिणपंथी और राज्य आदि के नाम पर अलग-अलग गुटों में बंट चुके हैं। यही कारण है कि पत्रकारों पर बढ़ रहे हमलों और उत्पीड़न के खिलाफ़ उनके पक्ष में कोई संयुक्त आवाज नहीं उठ रही है।
पत्रकारिता और अध्यापन कार्य के अलावा राघव उत्तर प्रदेश की पिछड़ा राजनीति और सोनेलाल पटेल के इतिहास पर एक पुस्तक ‘एक सार्थक जीवन’ के लेखक भी हैं। लेखक व पत्रकार राघव इस बात पर चिंता जताते हैं कि उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता पढ़ाने वाले संस्थानों की कमी है। वह आगे कहते हैं कि जिन संस्थानों में पत्रकारिता की पढ़ाई हो रही है, वहां से ग्राउंड रिपोर्टर कम और ग्राफ डिज़ाइनर ज्यादा निकल रहे हैं।
मौजूदा वक्त की पत्रकारिता पर बात करते हुए राघव कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ सालों से छोटे शहरों जैसे गोंडा, बस्ती, फ़िरोज़ाबाद और जालौन आदि की कवरेज बिल्कुल ख़त्म हो गई है। अब केवल लखनऊ, गोरखपुर, बनारस और अयोध्या ही मीडिया में छाए रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो अब खबरों की जगह सांप्रदायिकता परोसी जा रही है।
हालाँकि राघव के मामले में विपक्षी नेताओं ने सत्तारूढ़ बीजेपी की खूब आलोचना की और उनके साथ सहानुभूति दिखाई। राघव बताते हैं कि कांग्रेस आलाकमान से राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, भूपेश बघेल, आम आदमी पार्टी से संजय सिंह, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव आदि ने उनके पक्ष में आवाज़ उठाई है।
इसके अगले ही दिन 13 मई को जौनपुर में भरे बाजार में एक पत्रकार की हत्या कर दी गई। एक समाचार वेबसाइट के लिए काम करने वाले पत्रकार आशुतोष श्रीवास्तव को गोली मार दी गई। आशुतोष श्रीवास्तव जौनपुर के ही सबरहद गांव के रहने वाले थे और एक न्यूज पोर्टल में काम किया करते थे। वह ज्यादातर क्षेत्र में गौ तस्करों और माफियाओं के ख़िलाफ खबरें लिखते थे।
पिछले साल 20 फरवरी को विधानसभा सत्र के दौरान पत्रकारों और छायाकारों को वहां तैनात मार्शलों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था। पत्रकारों के अनुसार इस घटना का कारण योगी सरकार के खिलाफ समाजवादी पार्टी के विरोध प्रदर्शन की उनकी कवरेज थी। वह कहते हैं योगी आदित्यनाथ सरकार नहीं चाहती थी कि विपक्ष की ख़बरों और असहमति की आवाज़ो को प्रेस में जगह मिले।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के लॉन में यह अभूतपूर्व घटना घटी थी, जहां मार्शलों के द्वारा कथित तौर पर एक फोटो पत्रकार के चेहरे पर मुक्का मारने का मामला भी सामने आया था। इस घटना में कई पत्रकार घायल भी हो गए और कई मीडियाकर्मियों के कैमरे और अन्य उपकरण क्षतिग्रस्त हो गये।
प्रदेश के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद द्वारा 16 अगस्त 2023 को राज्य के सभी जिलाधिकारियों और मण्डलायुक्तों को एक आदेश जारी किया गया। उनका आदेश ‘कथित’ समाचारपत्रों द्वारा मीडिया सम्बंधी दिशानिर्देशों का ‘सम्यक अनुपालन’ नहीं किए जाने के संबंध में था। इसमें कहा गया था कि मीडिया में छापी गई ‘नकारात्मक’ ख़बरों से शासन की छवि धूमिल होती है इसलिए ऐसे समाचारों के तथ्यों की त्वरित जांच किया जाना आवश्यक है।
प्रदेश के समस्त जिलाधिकारियों व मंडलायुक्तों को पत्र के माध्यम से आदेश दिया गया कि यदि ऐसा संज्ञान में आता है कि किसी दैनिक समाचारपत्र अथवा मीडिया द्वारा घटना को तोड़-मोड़कर या गलत तथ्यों का उल्लेख कर ‘नकारात्मक’ समाचार प्रकाशित कर योगी सरकार या जिला प्रशासन की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया है तो संबंधित जिलाधिकारी द्वारा समाचारपत्र के प्रबंधन को स्थिति स्पष्ट करने के लिए पत्र भेजा जाएगा।
जबकि ग्राउंड से पत्रकारिता करने वाले पत्रकार एकतरफ़ा खबरें प्रकाशित होने का एक मुख्य कारण यह मानते हैं कि मौजूदा योगी सरकार में संबंधित अधिकारी पत्रकारों से न तो मिलते हैं और न ही फ़ोन पर उनके सवालों के जवाब देते हैं। ऐसे में बिना अधिकृत बयान के खबरें छापने के अलावा और विकल्प क्या रह जाता है?
ऐसा भी देखा गया है कि अगर पत्रकार सीधे नेता से ही सवाल कर दे, तो उसकी स्थिति और ख़राब हो जाती है। इसका एक उदाहरण पिछले साल पत्रकार संजय राणा का मामला है। योगी सरकार के एक मंत्री से विकास के मुद्दे पर सवाल पूछना राणा को भारी पड़ गया था। मंत्री से सवाल पूछने वाले पत्रकार को भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया था ।
पत्रकार संजय राणा का अपराध केवल इतना था कि उन्होंने मंत्री गुलाब देवी से स्थानीय समस्याओं मसलन सरकारी शौचालय और बारात घर आदि पर सवाल कर दिया था। यह मामला ज़िला संभल में 11 मार्च 2023 का था। मंत्री को उनके द्वारा किए गए चुनावी वादों की याद दिलाने की सजा राणा को यह मिली कि उनको लम्बे समय तक अदालत के चक्कर लगाने पड़ गए।
राज्य में योगी सरकार बनने के बाद से अब तक कई वरिष्ठ पत्रकारों पर क़ानूनी कार्रवाई भी की जा चुकी है। इनमें द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन, स्क्रोल की सुप्रिया शर्मा, वाशिंग्टन पोस्ट में लिखने वाली राना अय्यूब, स्वतंत्र पत्रकार सबा नक़वी, फैक्ट चेकर मोहम्मद ज़ुबैर और केरल के सिद्दीक कप्पन आदि के नाम प्रमुख हैं।
ऐसी अनेकों घटनाओं के समाचार आते रहते हैं, जिनको स्वयं मीडिया ही महत्व नहीं देता है। ये हमले और उत्पीड़न के मामले अधिकतर गाँवों, क़स्बों और दूरदराज़ के छोटे ज़िलों के पत्रकारों पर होते हैं। इनमें निजी रंजिश से लेकर दबंगों, बाहुबलियों, नेताओं पुलिस-प्रशासन, माफ़िया और ठेकेदारों पर ख़बर छापने या दिखाने के मामलों की पत्रकारों को भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है।
‘कमेटी अगेंस्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट्स; की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 से फरवरी 2022 तक यानी योगी के पहले कार्यकाल में शपथ लेने के बाद से राज्य में पत्रकारों पर उत्पीड़न के कुल 138 मामले दर्ज किए गए।
यही कारण है कि प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के मानक पर 180 देशों में भारत 159वें स्थान पर है।