Thursday, November 21, 2024
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Varanasi : तीन किलोमीटर की रेंज के खिलाफ़ टोटो चालकों का सत्याग्रह

वाराणसी में ई-रिक्शा चालकों ने तीन किलोमीटर की रेंज के खिलाफ़ सत्याग्रह शुरू किया है। चालकों का कहना है कि इस नियम से उनकी आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा है और वे रोजगार की संभावनाओं को सीमित कर रहा है। अनशन पर बैठे चालकों ने प्रशासन से मांग की है कि इस नियम को वापस लिया जाए और उनकी समस्याओं का समाधान किया जाए। 

सरकार द्वारा बनाए गए शौचालय फेल: सामुदायिक शौचालय में 4 साल से लटका है ताला, खुले में जा रहे लोग

वाराणसी के सजोई गांव में सरकारी योजनाओं के तहत बनाए गए शौचालयों की स्थिति अत्यंत निराशाजनक है। चार साल पहले बनाए गए शौचालयों का काम अब तक पूरा नहीं हुआ है. गांव में एक सामुदायिक शौचालय भी बनाया गया था, लेकिन उसमें चार साल से ताला लटका हुआ है। यह ताला बंद होने के कारण गांव वालों के पास उस शौचालय का उपयोग करने का कोई विकल्प नहीं है। घर में शौचालय की अनुपस्थिति के कारण महिलाओं को अंधेरे में खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। यह स्थिति न केवल उनके स्वास्थ्य के लिए जोखिमपूर्ण है, बल्कि उनकी सुरक्षा को भी खतरे में डालती है।

Varanasi : प्रशासन के डर से नट समुदाय के लोग नहीं कर पा रहे अपना पारंपरिक काम

बनारस की नट बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए आज़ादी का अमृत महोत्सव महज एक दिखावा बनकर रह गया है। वर्षों से उपेक्षित इस समुदाय के लोग, जो पारंपरिक कला और नृत्य के माध्यम से जीवन यापन करते हैं, आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।

Varanasi : 15 साल पहले बनाकर छोड़ दिया सामुदायिक केंद्र, डॉ कहीं और से करते हैं इलाज

वाराणसी के कोटवां बस्ती में 15 साल पहले एक सामुदायिक केंद्र का निर्माण किया गया था, लेकिन यहाँ डॉक्टर नहीं आते और इलाज कहीं और से किया जाता है। स्थानीय निवासियों को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अन्य स्थानों पर निर्भर रहना पड़ता है

Varanasi : NTPC के हरित कोयला प्लांट में कचरे से बन रहे कोयला के प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर

वाराणसी में NTPC के हरित कोयला प्लांट में कचरे से तैयार किए जा रहे कोयले से प्रदूषण बढ़ रहा है, जिसका स्थानीय स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इस प्लांट का उद्देश्य कचरे के पुनः उपयोग के जरिए कोयला उत्पादन को पर्यावरण-संवेदनशील बनाना था, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स ने चिंता पैदा कर दी है।

नाम के साथ शूद्र जोड़ने का तात्पर्य सामाजिक एकता को मजबूत करना है

सामाजिक परिवर्तन के प्रखर सिपाही लाल प्रताप यादव ओबीसी जातियों की धार्मिक और आध्यात्मिक मुक्ति के लिए सतत संघर्षरत हैं । प्रस्तुत बातचीत में...

अब पिछड़ी जातियों में भी बौद्ध धम्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है

भिक्खु नन्द रतन थेरो कुशीनगर में श्रीलंका बुद्ध विहार के संचालक और इस क्षेत्र के एक बेहद सम्मानित सामजिक व्यक्तित्व हैं जो आज अपनी...

उत्तराखंड के आदिवासियों की ज़मीनें हड़प ली गईं, उनको न्याय चाहिए

बोक्सा जनजाति अधिकतर तराई और भावर के इलाके में रहती है और यहाँ पर यह अब अपनी ही जमीन से बेदखल और बंधुआ हो गई है। तराई भावर में वे देहरादून के डोईवाला क्षेत्र से लेकर पौड़ी जनपद के दुगड्डा ब्लाक तक इनकी काफी संख्या थी। कोटद्वार के तराई भावर के इलाकों जैसे लाल ढंग में भी इनकी संख्या बहुत है।  कोटवार-उधम सिंह नगर के मध्य रामनगर में भी इनकी आबादी निवास करती है।