Saturday, July 27, 2024
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अब पिछड़ी जातियों में भी बौद्ध धम्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है

भिक्खु नन्द रतन थेरो कुशीनगर में श्रीलंका बुद्ध विहार के संचालक और इस क्षेत्र के एक बेहद सम्मानित सामजिक व्यक्तित्व हैं जो आज अपनी मेहनत और कर्तव्यनिष्ठा के बल पर पूरे क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम बन चुके हैं। ऐसा अक्सर कहा जाता है कि पिछड़ी जातियों में सांस्कृतिक बदलाव नहीं आ पा रहा है […]

भिक्खु नन्द रतन थेरो कुशीनगर में श्रीलंका बुद्ध विहार के संचालक और इस क्षेत्र के एक बेहद सम्मानित सामजिक व्यक्तित्व हैं जो आज अपनी मेहनत और कर्तव्यनिष्ठा के बल पर पूरे क्षेत्र में बहुत बड़ा नाम बन चुके हैं। ऐसा अक्सर कहा जाता है कि पिछड़ी जातियों में सांस्कृतिक बदलाव नहीं आ पा रहा है क्योंकि उनपर ब्राह्मणवाद बहुत हावी है लेकिन कुशीनगर में अब पिछड़ी जातियों में भी बौद्ध धम्म का प्रसार हो रहा है और अब बड़ी संख्या में धर्मगुरु और भिक्खु इन समुदायों से भी आ रहे हैं।

भिक्खु नन्द रतन भंते का जन्म 10 जुलाई 1982 को नागल गाँव, जिला मैनपुरी में दिवारी लाल शाक्य और माया देवी शाक्य के घर हुआ। बौद्ध धम्म में उनको प्रारंभिक प्रवज्या 1993 में श्रीलंका में डाक्टर भदंत डी सोमरतन महाथेरो द्वारा श्रावस्ती में दी गई। बाद में 10 अक्टूबर 2000 को भदंत ज्ञानेश्वर महाथेरो ने कुशीनगर में उन्हें उपसम्पदा प्रदान की। 1995 में वह कुशीनगर आ गए और भदंत ज्ञानेश्वर के संपर्क में आये और फिर उन्ही से उच्च दीक्षा ग्रहण की। आज भी वह भदंत ज्ञानेश्वर के सबसे महत्वपूर्ण शिष्यों में माने जाते है। ये सर्वविदित है कि भदंत ज्ञानेश्वर इस दौर में सबसे बुजुर्ग और महत्वपूर्ण भिक्खुओ में हैं जो भदंत चंद्रमणि के शिष्य हैं जिन्होंने बाबा साहेब डाक्टर आंबेडकर को सर्वप्रथम दीक्षा दी थी। हालांकि वह बाल्यकाल से ही धम्म दीक्षा ले चुके थे फिर भी पढ़ाई के प्रति उनका रुझान कम नहीं हुआ और उन्होंने सभी कार्य करते हुए भी सम्पूर्ण शिक्षा की पूरी कोशिश की और 2019 में उन्हें संपूर्ण संस्कृत विश्वविद्यालय  वाराणसी से पाली भाषा में शोध के लिए पीएचडी प्राप्त की। उनके शोध का विषय था बौद्धधम्म की अभिवृद्धि में शाक्य भिक्षुओं का योगदान।  उन्होंने इसके अलावा भी म्यांमार के बुद्धिस्ट विश्विद्यालय से भी डिप्लोमा हासिल किया और बेसिक कंप्यूटर लर्निंग का भी डिप्लोमा प्राप्त किया।

भिक्खु नन्द रतन थेरो कई पत्र-पत्रिकाओं का संचालन कर रहे हैं जिनमें बुद्ध ज्योति और निब्बान ज्योति शामिल हैं। वह बहुत से सामजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक संगठनों से भी जुड़े हुए हैं। पालि सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के सचिव हैं। निर्वाण सेवा संस्थान के अध्यक्ष हैं और महामाया शाक्यमुनि शिक्षा समिति इंटर कालेज, मैनपुरी के भी अध्यक्ष हैं। 2009 में जून से दिसंबर में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त था। भिक्खु नन्द रतन थेरो कई शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े हुए हैं।

[bs-quote quote=”आज उतर प्रदेश, बिहार और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में सांस्कृतिक क्रांति की जरूरत है और बुद्ध को बिना पढ़े और समझे यह संभव नहीं है। हम सभी ने देख लिया है कि मात्र राजनैतिक परिवर्तनों से देश के बहुजन समाज को लाभ नहीं हो सकता इसलिए सामाजिक सांस्कृतिक प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करना होगा। पूरी बातचीत आप इस लिंक में सुन सकते हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

उनका उद्देश्य श्रीलंका बुद्ध विहार को एक ऐसे केंद्र के रूप में विकसित करने का है जहाँ पर दुनिया भर के बुद्ध दर्शन के प्रेमी आएँ और शांति और मानवता के बुद्ध के विचारों को पढें और बुद्धिस्ट साहित्य और इतिहास के कार्य को बढाएँ। भंते नन्द रतन न केवल कुशीनगर अपितु पूर्वांचल के अन्य हिस्सों में भी बुद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार में लगे हुए है। उनके श्रीलंका बुद्ध विहार में अशोक स्तम्भ भी बना हुआ है और हर वर्ष अशोक महान का जन्म दिन और उनकी बुद्धिस्ट विरासत को बचाने का संकल्प लिया जा रहा है।

यह बातचीत डॉ भिक्खु नन्द रतन थेरो के कुशीनगर स्थित श्रीलंका बौद्ध विहार में हुई जिसे वह बहुत तन्मयता से बना रहे हैं।  उनका एक सपना है कि बेहतर लाइब्रेरी बने और बुद्धिस्ट और वहाँ पीस स्टडीज के कोर्स से चलें। सबसे अच्छी बात यह है कि उनके जनसंपर्कों के चलते अब पिछड़ी जातियों में भी बौद्ध धम्म के प्रति आकर्षण बढ़ा है।

श्रीलंका बौद्ध विहार एक ऐतिहासिक बौद्ध विहार है जो बेहद जर्जर हालत में था क्योंकि जो भिक्खु श्रीलंका से यहाँ आये थे उन्हें इन्हीं परिस्थितियों में भारत छोड़कर जाना पड़ा था और फिर इस स्थान पर अनेको अराजक लोगों की नज़र पडी रही। डाक्टर भिक्खु नन्द रतन थेरो ने इस बुद्ध विहार को पुनर्निर्माण करने का निर्णय लिया और आज ये बेहतर स्थिति में है और कुछ वर्षों में पूरी तरह से तैयार हो जाएगा।

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वह यह मानते हैं कि बाबा साहेब के क्रांतिकारी कदमों से दलितों ने भारी संख्या में बुद्ध धम्म को अपनाया और आगे बढ़े लेकिन पिछड़े वर्ग में ऐसी मुहिम नहीं चली जो उनको सामाजिक सांस्कृतिक क्रांति की ओर  लाती लेकिन ख़ुशी की बात है कि अब पिछड़ी जातियों में भी बौद्ध धम्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है और वे उसे अपना भी रही हैं। वह कहते हैं कि अब लोग धम्म के महत्त्व को समझ रहे हैं और यहीं से बदलाव भी आयेगा क्योंकि बुद्ध ने तो सभी से स्नेह करना सिखाया और बराबरी की बात कही।

श्रीलंका बुद्ध विहार के लिए डॉ. नन्द रतन थेरो जी की बहुत से योजनाएँ हैं। वे चाहते हैं कि दलित पिछड़ी जातियों के विचारशील लोग उनके विहार में आये और समाज के लिए चिंतन करें। आज उनके प्रयासों से क्षेत्र में पिछड़ी जातियों में एक नया उत्साह है। कुछ समय पूर्व ही उन्होंने देवरिया जनपद के मलवाबर गाँव में लोगों द्वारा निर्मित अशोक स्तम्भ और एक बुद्ध विहार का शिलान्यास किया। यह बौद्ध विहार गाँव के पिछड़े वर्ग के लोगों द्वारा निर्मित किया गया था। इस सांस्कृतिक परिवर्तन के जरिये भी समाज में एक नयी एकता और मैत्री भावना बन सकती है।

डॉ. भिक्खु नन्दरतन थेरो से यह बातचीत कुशीनगर में उनके श्रीलंका बौद्ध विहार में 6 अप्रेल 2021 को रिकॉर्ड की गयी थी। इस महत्वपूर्ण बातचीत में वह कई ऐसे प्रश्नों पर बेबाकी से अपनी राय रख रहे हैं  जिन्हें हम इग्नोर कर देते हैं। आज उतर प्रदेश, बिहार और उत्तर भारत के अन्य राज्यों में सांस्कृतिक क्रांति की जरूरत है और बुद्ध को बिना पढ़े और समझे यह संभव नहीं है। हम सभी ने देख लिया है कि मात्र राजनैतिक परिवर्तनों से देश के बहुजन समाज को लाभ नहीं हो सकता इसलिए सामाजिक सांस्कृतिक प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करना होगा। पूरी बातचीत आप इस लिंक में सुन सकते हैं।

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1 COMMENT

  1. यह सत्य है सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के बिना हम अपनी विकास नहीं कर सकते हैं

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