आज से शुरू हो रही माचा से कठारा तक 70 किलोमीटर की सामाजिक न्याय पदयात्रा, क्यों है ऐसे आयोजनों की जरूरत?
देश में बदलती सियासी फिजा के बीच कांग्रेस और कई भाजपा विरोधी दल जाति आधारित जनगणना कराने की घोषणाएं कर रहे हैं। सामाजिक न्याय और हाशिए पर धकेले जा रहे वंचित तबके को इंसाफ की राजनीति करने का दावा करने वाली पार्टी बसपा कांशीराम को अपना आदर्श मानती है।
कांशीराम का जिक्र इसलिए क्योंकि इनकी स्मृति में पदयात्रा का आयोजन किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के कानपुर में माचा से कठारा तक पदयात्रा का आयोजन किया जाएगा। आयोजकों ने बताया कि 13 से 15 मार्च तक होने वाला यह आयोजन सामाजिक आंदोलन का सूत्रपात करेगा।
आज के वर्तमान परिपेक्षय में समाज में शांति सद्भाव की स्थापना के साथ ही मजबूत लोकतंत्र की मांग और सामाजिक न्याय का माहौल स्थापित करने के लिए 3 दिवसीय पदयात्रा का आयोजन आज से कानपुर देहात के माचा से किया जा रहा है। 70 किलोमीटर की लंबी पदयात्रा माचा से कठारा तक की जा रही है।
आयोजकों का कहना है कि वर्तमान में लोगों को धर्म के नाम पर बांटा जा रहा है। कई सारे आंदोलन किए जा रहे हैं, लेकिन वे सभी आंदोलन अपने मुकाम तक पहुंचने में लक्ष्य से भटकते हुए भी दिखाई पड़े हैं। वर्तमान राजनीतिक संकट दौर में सामाजिक न्याय आंदोलन की जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे में 70 किलोमीटर के इस लंबे पदयात्रा के माध्यम से लोगों तक अपनो विचारधारा को पहुंचाने का काम किया जाएगा।
देश में बढ़ रही जातिगत विषमता, धार्मिक भेदभाव, राजनीतिक वैमनस्यता और वैचारिक शून्यता लगातार देखने को मिल रही है। ऐसे में सिद्धांतों, सामाजिक सरोकारों और न्याय के लिए एक वैचारिक राजनीतिक विकल्प प्रस्तुत करने के उद्देश्य से सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) और सहयोगी संगठनों द्वारा समाजवादी राजनीतिज्ञ रामस्वरूप वर्मा और ललई सिंह पेरियार की स्मृति में सामाजिक न्याय पदयात्रा का आयोजित है।
यह पदयात्रा 13 मार्च यानी आज से माचा से शुरू होगी। वहीं 15 मार्च को मान्यवर कांशीराम की जयंती पर कठारा पहुंचकर समाप्त होगी। इस यात्रा के माध्यम से समाजवादी रामस्वरुप वर्मा, ललई सिंह पेरियार और मान्यवर कांशीराम के विचारों, सिद्धांतों एवं उनके ऐतिहासिक कार्यों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाएगा। इसके साथ ही आम जनमानस को इस वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ एक सामाजिक आन्दोलन खड़ा करने के लिए प्रेरित किया जाएगा।
जाति जनगणना के बगैर सामाजिक न्याय मिलना असंभव
कार्यक्रम के उद्देश्यों के बारे में बात करते हुए संयोजकों ने कहा कि बताते चले कि देश में जाति जनगणना की मांग लंबे समय से की जा रही है। मंडल आयोग की सिफारिशों में भी जाति जनगणना कराने की बात कही गई। पिछले दिनों बिहार में जाति जनगणना के आंकड़ों के आने के बाद हम उत्तर प्रदेश सरकार से जाति जनगणना कराने की मांग करते हैं।
केंद्र सरकार ने भी अन्य पिछड़ा वर्ग गणना कराने को कहा लेकिन, फिर वादे से मुकर गए। 2011 में जाति जनगणना के जो आंकड़े आए उनको सार्वजनिक न करने से देश की पिछड़ी जातियों को उनका अधिकार नहीं हासिल हो पा रहा।
आयोजकों का कहना है कि देश में जनगणना होती है, उसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना होती है, लेकिन पिछड़ी जातियों की गणना या जाति जनगणना नहीं की जाती है। ऐसे में उनकी मांग हैं कि आने वाले दिनों में सरकार जब जनगणना कराए तो उसके साथ ही जाति जनगणना भी कराए।
बराबरी और सत्ता-संसाधनों पर न्याय संगत बंटवारे के लिए जाति जनगणना बहुत जरूरी है। जातिवार जनगणना साफ करेगी कि देश के सत्ता संसाधनों पर किसका कितना कब्जा है, किसका हक अधिकार आजाद भारत में नहीं मिला? कौन गुलामी करने को मजबूर हैं?
हक अधिकार न देकर धर्म के नाम पर जनता को विभाजित किया जा रहा है और हिन्दुत्ववादी राजनीति मुसलमानों का डर दिखा कर चाहती है कि लोग जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को भुला कर हिंदू के नाम पर एक हो जाएं। राजनीतिक दल जाति जनगणना कराने के मुद्दे पर सहमत हैं तो वह चुनावी घोषणा पत्र में समयबद्ध जाति जनगणना कराने की मांग को शामिल करें।
सभी श्रेणियों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग
आयोजकों ने कार्यक्रमा का उद्देश्य बताते हुए यह भी कहा कि जातिवार जनगणना के साथ आरक्षण की सभी श्रेणियों व सामान्य श्रेणी में भी 50 प्रतिशत महिला की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। मंडल आयोग की सम्पूर्ण सिफारिशों को लागू किया जाए, कोलेजियम सिस्टम जैसे न्यायिक नासूर को खत्म किया जाए।
इसके साथ ही नियुक्तियों में आरक्षण के प्रावधानों पालन किया जाए और मानकों का अनुपालन न करने वाले अधिकारियों को दण्डित किया जाए, निजीकरण को समाप्त करने की भी मांग की है। इसके अलावा जो भी निजी क्षेत्र हैं उनमें आरक्षण पूर्णतः लागू किया जाए।निष्पक्ष चुनाव प्रमुख मुद्दा चुनाव को निष्पक्ष कराने हेतु ई.वी.एम. जैसी अविश्वसनीय पद्धति को समाप्त किया जाए, चुनाव अनुपातिक प्रणाली पर कराए जाएं यानी जिस दल के जितने प्रतिशत मत हों उसी अनुपात में विधायिका में उसके सदस्य हों, दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों के साथ सौतेला व्यबहार बंद किया जाए।
इस मार्गों से होकर गुजरेगी पदयात्रा
13 मार्च 2024 के सुबह 8 बजे माचा में यात्रा का शुभारंभ किया जाएगा। यह यात्रा सुबह 10 बजे पुखरायां में लोगों के बीच अपने विचारों को रखेगी। इसके बाद दोपहर 2 बजे गौरीकरन में स्वागत कार्यक्रम के साथ ही पदयात्रा की शुरुआत होगी। दूसरे दिन के पढ़ाव में यानी 14 मार्च को सुबह 8 बजे मुंगीसापुर से प्रस्थान के साथ ही मंगलपुर पहुंचेगी।
बहीं कार्यक्रम के तीसरे व अंतिम दिन 15 मार्च 2024 को सुबह 8 बजे, मंगलपुर से यात्रा आगे बढ़ेगी और, झींझंक में शाम 4 बजे तक लोगों को जागरूक करने के साथ ही कठारा में यात्रा के उद्देश्यों को बताते हुए इसका समापन किया जाएगा। यात्रा में प्रमुख रूप से कृष्ण मुरारी यादव, ओम द्विवेदी, शंकर सिंह, राजीव यादव आदि लोग मौजूद रहेंगे।