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ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार : मुजफ्फरपुर के कोठिया गांव में मशरूम की खेती से आत्मनिर्भर होती महिलाएं

पहले इस गांव की महिलाओं की स्थिति बद से बदतर थी। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे कैसे अपना घर परिवार चलाएं। लेकिन आत्मा नामक संस्था से मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लेने के बाद आज इस गांव की महिलाएं बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भर बन रही हैं।

 आज मशरूम भोजन व स्वाद की दुनिया में अलग ही पहचान बना रही है। लोगों की जुबान पर मशरूम की सब्जी, खीर, अचार, नमकीन आदि का स्वाद चढ़ता जा रहा है। देश के अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी इसकी खेती तेज़ी से बढ़ती जा रही है। नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021-22 में बिहार में तकरीबन 28,000 मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन हुआ है, जो देश मे उत्पादित कुल मशरूम का 10.82 फीसदी है। पिछले साल बिहार में कुल 23 हजार मीट्रिक टन मशरूम का उत्पादन हुआ था। बिहार सरकार मशरूम की खेती करने वाले किसानों को 50 फीसदी तक का अनुदान दे रही है। इससे सूबे में मशरूम उत्पादन और किसानों की आय में बढ़ोतरी हो रही है। एकीकृत बागवानी मिशन योजना के तहत बिहार सरकार मशरूम की खेती पर उत्पादकों को सब्सिडी देने से किसानों का मनोबल भी बढ़ा है और अब इस क्षेत्र में तेज़ी से महिला किसान आगे आ रही हैं। बिहार के कई ज़िले ऐसे हैं जहां पुरुषों की तुलना में महिला किसानों ने मशरूम उत्पादन कर अपनी अलग पहचान बना ली है।

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पिछले दस साल से मनोरमा सिंह सिर्फ वैशाली ही नहीं, बल्कि राज्यभर में मशरूम उत्पादन के लिए जानी जा रही हैं। वे खुद मशरूम उगाती हैं और आसपास के किसानों को इसकी ट्रेनिंग भी देती हैं। वह स्वयं मशरूम के बीज तैयार करती हैं और जरूरी खाद भी बनाती हैं। वहीं मुजफ्फरपुर जिला हेड क्वार्टर से करीब 17 किमी दूर कांटी प्रखंड के कोठिया गांव के 45 वर्षीय किसान लाल बहादुर बताते हैं कि आज मशरूम की खेती में पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी एक अलग पहचान बना रही हैं। लोगों को इसका उत्पादन करना फायदेमंद लग रहा है क्योंकि इसकी खेती करना बहुत आसान होता है। इसे लोग अपने घर में ही बहुत सरलता से उगा सकते हैं। इसकी खेती में लागत कम और मुनाफा अधिक होता है। मशरूम की फसल सिर्फ 25 दिनों में ही तैयार हो जाती है। लाल बहादुर बताते हैं कि शुरुआत में उनमें भी मशरूम की खेती की जानकारी का अभाव था। फिर साल 2012 में उनकी मुलाकात पूसा कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ। दया राम से हुई। उनके साथ रहकर उन्होंने मशरूम की खेती करने का प्रशिक्षण लिया। उसके बाद आसपास के गांवों में मशरूम की खेती को लेकर उन्होंने किसानों को जागरूक करने का प्रयास किया।

Women become self-reliant through mushroom cultivation

मशरूम की खेती से बदल रही महिला किसानों की हालत 

वह बताते हैं कि शुरू में तो सही जानकारी न होने के कारण लोगों ने उनका साथ नहीं दिया। उन्हें लगता था कि ये एक जंगली पौधा है, जिसे आज भी हम गांव में ‘गोबरछता’ के नाम से जानते हैं। इनकी कुछ किस्में बहुत जहरीली होती है। लोगों को बहुत समझाने के बाद जब वे जानने लगे कि मशरूम अलग होता है और गोबर छत्ता अलग होता है, तब जाकर ग्रामीणों ने उनके साथ मिलकर मशरूम की खेती करनी शुरू की। इसमें महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। उसी गांव की एक महिला किसान लक्ष्मी देवी बताती हैं कि लाल बहादुर जी ने हमें किसानी का एक नया रास्ता दिखाया है। जब तक हमें इसके बारे में जानकारी नहीं थी, तब तक हम मेहनत-मजदूरी करने गांव से बाहर शहर जाते थे। फिर भी हमारे घर की आर्थिक हालत उतनी अच्छी नहीं थी, लेकिन जब से हम मशरूम की खेती करने लगे हैं तब से घर की हालत भी सुधरने लगी है। अब हम महिला किसान अपने घर में रहकर ही खेती करती हैं। कोठिया गांव के कई किसानों ने भी बताया कि लाल बहादुर जी ने उन्हें एक नारा दिया है, ‘हर घर में खेती हो मशरूम की, हर थाली में एक व्यंजन हो मशरूम की’। यह सिर्फ एक नारा ही नहीं है बल्कि किसानों विशेषकर महिला किसानों को इस क्षेत्र में आगे आने के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है।

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बंदरा प्रखंड की 34 वर्षीय किसान नीलम देवी बताती हैं कि उनकी बहुत कम उम्र में ही शादी करा दी गयी क्योंकि उसके घर की हालत अच्छी नहीं थी। लेकिन वह स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी। एक दिन उन्होंने एक एनजीओ ‘आत्मा’ के द्वारा मशरूम की खेती के प्रशिक्षण के बारे में सुना। उससे जुड़कर उन्होंने मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया और फिर अपने घर के एक कमरे में इसकी खेती शुरू कर दी। हालांकि उनके ससुराल वालों को उनका यह काम पसंद नहीं था और उन्होंने उन्हें इसकी खेती करने से मना भी किया, लेकिन नीलम फिर भी नहीं मानी और अपनी जिद पर अड़ी रहीं। वह बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें काफी दिक्कतें आईं। ससुराल वाले भी उनके इस काम से बिल्कुल खुश नहीं थे। लेकिन वह पीछे नहीं हटी और अपने घर-परिवार के खिलाफ जाकर काम शुरू कर दिया।

गाँव की 200 से अधिक महिलाएं मशरूम की खेती करने का ले रही प्रशिक्षण

धीरे धीरे उन्हें इस काम में सफलता मिलने लगी और मशरूम उत्पादन से काफी लाभ होने लगा। आज वह इस काम में इतनी निपुण हो गयी हैं कि वह अपनी जैसी 200 महिलाओं को मशरूम की खेती करना सिखा रही हैं और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने में मदद कर रही हैं। इस सराहनीय कार्य के लिए नीलम को सफल किसान के रूप में पूसा कृषि विश्वविद्यालय में सम्मानित भी किया जा चुका है। आज मशरूम के प्रशिक्षक व उत्पादक के रूप में नीलम की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। कभी विरोध करने वाले उनके ससुराल वाले ही आज उनकी जिद और जुनून पर गर्व महसूस करते हैं। नीलम जैसी आज मुजफ्फरपुर में दर्जनों महिला किसान मशरूम की खेती कर एक नयी पहचान बना रही हैं और प्रतिवर्ष लाखों रुपए का लाभ कमा रही हैं।

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सब्जी के रूप में मशरूम का डिमांड हाल के वर्षों में बिहार के विभिन्न जिलों में काफी तेज़ी से बढ़ा है। होटल, रेस्टोरेंट से लेकर मांगलिक कार्यक्रमों व भोज आदि में मशरूम की सब्जी स्टेटस सिंबल बनती जा रही है। राजधानी पटना को छोड़िए, अब तो हाजीपुर, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में सड़क किनारे लगे सब्जी के बाजारों में मशरूम आसानी से मिल जाते हैं। जैसे जैसे मशरूम का बाजार बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे इसकी डिमांड भी बढ़ती जा रही है। इसी बढ़ते डिमांड ने किसानों विशेषकर महिला किसानों के लिए खेती के नए दरवाज़े खोल दिए हैं। इससे न केवल उन्हें लाभ हो रहा है बल्कि बिहार को भी आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने में महिला किसान अपना योगदान दे रही हैं।

(सौजन्य से चरखा फीचर) 

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