फर्क
तुम्हारे और मेरे में फर्क क्या है।
यही न जैविक रूप से
तुम पुरुष हो मैं स्त्री।
तुम सत्ताधारी हो मैं सत्ताहीन।
लेकिन हैं तो हम इंसान ही न
तुम हमे इंसान कम,
स्त्री ज्यादा समझते हो।
तुम्हें पता होना चाहिए,
स्त्री पैदा नहीं होती बनाई जाती है।
तुमने भी मुझे स्त्री बनाई है सोच-समझकर।
एक ऐसी स्त्री,
जिसे स्त्री संस्कार देकर, वर्चस्व जमा कर
घर संसार का घेरा बनाकर।
हमे स्त्री बनाया गया
हमारी औकात बताई गई,
स्त्री हो स्त्री की तरह रहो
अफसोस!
मैं स्त्री थी नहीं,
मुझे स्त्री बनाया गया।
आत्म सम्मान
हम तुम्हारे हैं।
इसका मतलब यह नहीं कि,
हम तुम्हारे ही हैं।
मेरा अपना अस्तित्व है।
मेरा अपना आत्मसम्मान है।
हम तुम्हारे हैं,
पर प्रेम से रिश्ते के डोर में।
ना की समझो हमें,
अपने इस्तेमाल की वस्तु।
सुनो !
मैं और तुम का रिश्ता हम है।
इसका मैं सम्मान करती हूं।
हम तुम्हारे हैं,
इसका मतलब यह नहीं कि,
हम तुम्हारे ही हैं।
मेरे अपने सपने हैं।
मेरा अपना एकांत है।
मैं कोई सामान नहीं हूं।
मैं तुम्हारी तरह इंसान हूं।
अन्यथा!
तुम अपनी राह और मैं अपनी राह।
कवयित्री अर्चना सिंह दिल्ली में रहती हैं।
खूबसूरत कविता
[…] तुम सत्ताधारी हो मैं सत्ताहीन […]
अच्छी कविता
[…] तुम सत्ताधारी हो मैं सत्ताहीन […]