Sunday, July 7, 2024
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ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण का माध्यम बना इंटरनेट

कहा जाता है कि महिला सशक्तीकरण एक ऐसी अनिवार्यता है, जिसकी अवहेलना किसी भी समाज और देश के विकास की गति को धीमा कर देती है। इसलिए पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भी हर क्षेत्र में भागीदारी एक महत्वपूर्ण किरदार निभाती है। परंतु जब इंटरनेट आया तो उसके बाद पुरुषों का ही इससे ज्यादा संबंध […]

कहा जाता है कि महिला सशक्तीकरण एक ऐसी अनिवार्यता है, जिसकी अवहेलना किसी भी समाज और देश के विकास की गति को धीमा कर देती है। इसलिए पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भी हर क्षेत्र में भागीदारी एक महत्वपूर्ण किरदार निभाती है। परंतु जब इंटरनेट आया तो उसके बाद पुरुषों का ही इससे ज्यादा संबंध रहा है। ऐसे में आधी आबादी इससे बहुत अधिक परिचित नहीं हो सकी, लेकिन बदलते समय के साथ साथ धीरे-धीरे ही सही, महिलाएं भी इंटरनेट से जुड़ने लगी हैं। हालांकि, अभी भी देश के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की बात करें तो इसकी रफ़्तार बहुत धीमी है। बात केंद्र प्रशासित जम्मू-कश्मीर की करें तो यहां के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं भी अब पुरुषों के साथ मिलकर देश और दुनिया से जुड़ने को तैयार हैं।

इंटरनेट से जुड़ने के बाद महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। इसका प्रमाण है कि साल 2018 तक जहां 8 से 10 फीसदी महिलाएं ही इंटरनेट का प्रयोग करती थीं। वहीं, वर्ष 2019 के बाद प्रदेश में 43.1 फीसदी महिलाएं इंटरनेट का प्रयोग करके देश और दुनिया से जुड़ रही हैं। देश में जहां कुल 33 फीसदी महिलाएं इंटरनेट का उपयोग करती हैं। वहीं, जम्मू-कश्मीर में यह आंकड़ा 43.1 फ़ीसदी पर पहुंच गया है। हालांकि, शहरों के मुकाबले गांव में लड़कियां अब भी इंटरनेट का कम उपयोग कर पा रही हैं, फिर भी पिछले कुछ सालों में यह आंकड़ा तेजी से बढ़ा है। शहरी क्षेत्रों की महिलाओं की इंटरनेट से जुड़ने की संख्या जहां 55 फ़ीसदी है, तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 38.9 फ़ीसदी तक पहुंच गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य संरक्षण के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के लिए कार्वी डेटा मैनेजमेंट द्वारा 1 जुलाई, 2019 से 2 साल का सर्वे लिया गया है। इसमें महिलाओं में आए बदलाव का असर साफ दिखाई दे रहा है। यह जानकारी प्रदेश के अलग-अलग जिलों के लगभग 18086 घरों की 23037 महिलाओं और 3087 पुरुषों से 12 विभिन्न बिंदुओं पर बातचीत कर एकत्र की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की इंटरनेट तक पहुंच अभी भी काफी कम है। महिलाओं के पास स्मार्टफोन होने की संभावना 20 फ़ीसदी कम है। परंतु 2018 के बाद से महिलाओं में इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है।

[bs-quote quote=”भारत में मोबाइल यूजर पर ऑक्स फॉर्म द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि भारत में 32 फीसदी से भी कम महिलाएं मोबाइल का इस्तेमाल करती हैं, जबकि पुरुषों की संख्या 60 फीसदी से भी ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल इंटरनेट यूजर में महिलाओं की भागीदारी एक तिहाई है। यह इसलिए कम है, क्योंकि महिलाओं के पास सस्ते फोन होते हैं और वह केवल फोन पर ही बात कर पाती हैं।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

महिलाओं के इंटरनेट पर प्रतिशत बढ़ने से कई महिलाओं को फायदा पहुंचा है। कई महिलाएं आज इंटरनेट की बदौलत अपने पांव पर खुद खड़ी हो चुकी हैं। इससे न केवल उनकी आर्थिक स्थिति में काफी मजबूती आई है, बल्कि वह देश और दुनिया से अपने आप को भी जोड़ पाने में सक्षम हो रही हैं। कहीं सोशल मीडिया से जुड़कर महिलाएं अपने आप को आगे ले जा रही हैं, तो कहीं अलग-अलग प्लेटफार्म से अपनी कला को बेहतर करके वह अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही हैं। ऐतिहासिक रूप से भारत में घर का खाना बनाना कभी आर्थिक गणना में शामिल नहीं रहा है, लेकिन इंटरनेट के माध्यम से खाने का बढ़ता कारोबार इस मिथक को तोड़ रहा है। आंकड़े बता रहे हैं कि अब भारत की 15 प्रतिशत महिलाएं रोजगार से जुड़ गई हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। जिसकी पूर्ति में इंटरनेट अच्छा माध्यम बना हुआ है। सोशल मीडिया से जुड़कर जिला पुंछ की रहने वाली 24 वर्षीय अपर्णा देओल आज एक प्रतिष्ठित नाम बन चुकी हैं। अपर्णा एक लाइफस्टाइल ब्लॉगर हैं। उन्होंने अपने दैनिक जीवन के बारे में ब्लॉग बनाकर सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रियता हासिल की है। उन्होंने सितंबर 2020 में सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाया था। वर्तमान में उनके 1.19 मिलियन सब्सक्राइबर हैं।

पुंछ जिले के ही तहसील मंडी की रहने वाली रेहाना कौसर का कहना है कि मैं एक स्वतंत्र लेखिका हूं। अगर मैं इंटरनेट से ना जुड़ पाती तो आज मेरी लिखी चीज डायरी में ही पड़ी रह जाती। इंटरनेट से जुड़ने के बाद मेरे द्वारा लिखे आलेख आज न केवल अखबारों में प्रकाशित हो रहे हैं, बल्कि सरकार द्वारा उस पर प्रतिक्रिया भी देखने को मिली है। मेरे एक आलेख का यह इम्पैक्ट (असर) था कि कुछ ज़रूरतमंद बच्चियों को फ्री शिक्षा मिलने लगी है। अगर मैं इंटरनेट से न जुड़ी होती तो आज मैं प्रतिष्ठित संजॉय घोष मीडिया अवॉर्ड प्राप्त नहीं कर पाती। रेहाना कहती हैं कि एक तरफ जहां इंटरनेट किशोरियों के लिए विकास और सशक्तीकरण का माध्यम है तो वहीं, इसका दुरुपयोग विनाश का भी कारण बन सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हम लड़कियों को इस टेक्नालॉजी से ही वंचित कर दें।

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वहीं, कठुआ की रहने वाली 22 वर्षीय तानिया कहती हैं कि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण मैं आत्मनिर्भर बन कर मदद करना चाहती थी, लेकिन ट्रेनिंग के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में मैंने यूट्यूब पर वीडियो से सिलाई का काम सीखा। मैंने घर बैठे फोन से इतने अच्छे-अच्छे डिजाइन सीख लिए कि मैंने घर में कपड़े बनाना शुरू कर दिया। मेरे द्वारा तैयार कपड़े लोगों को इतने पसंद आए कि उन्होंने मुझसे कपड़े बनवाना शुरू कर दिया, जिससे मैं आज अच्छी-खासी कमाई कर लेती हूं और सभी मुझसे कपड़े सिलवा रहे हैं। तानिया कहती हैं कि इंटरनेट का इस्तेमाल सही तरह किया जाए, तो यह एक इंसान की जिंदगी बदल सकता है। वहीं पुंछ की रहने वाली साक्षी वर्मा का कहना है कि मेरे माता-पिता ने कभी भी मुझे इंटरनेट से दूर नहीं रखा, जिसकी बदौलत इंटरनेट मेरी पढ़ाई में काफी काम आया और यही कारण है कि ग्रेजुएशन पूरी होते ही मुझे नौकरी मिल गई।

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भारत में मोबाइल यूजर पर ऑक्स फॉर्म द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि भारत में 32 फीसदी से भी कम महिलाएं मोबाइल का इस्तेमाल करती हैं, जबकि पुरुषों की संख्या 60 फीसदी से भी ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल इंटरनेट यूजर में महिलाओं की भागीदारी एक तिहाई है। यह इसलिए कम है, क्योंकि महिलाओं के पास सस्ते फोन होते हैं और वह केवल फोन पर ही बात कर पाती हैं। इसमें एक बात और सामने आती है कि जो महिलाएं निम्न परिवार से ताल्लुक रखती हैं तो उनके पास अगर फोन हो भी तो उनके पास डेटा के लिए पैसे नहीं होते हैं। अब ऐसी महिलाओं की इंटरनेट पर भागीदारी कैसे संभव हो सकती है, यह एक विचारणीय मुद्दा है। लेकिन इन सबके बीच अच्छी बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं भी इंटरनेट को न केवल एक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं, बल्कि इसे सशक्तीकरण का माध्यम भी बना रही हैं।

(सौजन्य से चरखा फीचर)

भारती देवी पुंछ (जम्मू) की युवा सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं।

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