वाराणसी। तीन अगस्त, 1991 को लहुराबीर इलाके में हुए अवधेश राय हत्याकांड के 32 साल बाद आज वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। हत्याकांड के आरोपी मुख्तार अंसारी को दोषी मानते हुए अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही एक लाख जुर्माने भी लगाया। सुनवाई के दौरान बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी की पेशी वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से हुई। मुख्तार को सजा सुनाए जाने के बाद अवधेश राय के भाई और कांग्रेस नेता व पूर्व विधायक अजय राय ने कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था कि एक दिन हत्यारों को सजा जरूर मिलेगी। मुख्तार अंसारी पक्ष की पैरवी से जुड़े अधिवक्ता आदित्य वर्मा ने फैसले पर कहा कि वे लोग उच्च न्यायालय जाएंगे।
अवधेश राय हत्याकांड के अन्य आरोपी
अवधेश राय हत्याकांड के दो आरोपियों कमलेश सिंह और पूर्व विधायक अब्दुल कलाम की मौत पहले ही हो चुकी है। मामले के दो अन्य आरोपी राकेश न्यायिक और भीम सिंह हैं। इस प्रकरण की सुनवाई पहले बनारस के एडीजे कोर्ट में चल रही थी। 23 नवंबर, 2007 को सुनवाई के दौरान अदालत से चंद कदमों की दूरी पर बम ब्लास्ट हुआ। आरोपी राकेश न्यायिक ने सुरक्षा का हवाला देकर हाईकोर्ट की शरण ली। लंबे समय तक इस मुकदमे की सुनवाई पर रोक लगी रही। एमपी-एमएलए कोर्ट का गठन होने के बाद प्रयागराज में मुकदमे की सुनवाई फिर शुरू हुई। वाराणसी में एमपी-एमएलए की विशेष कोर्ट का गठन होने के बाद यहां मुख्तार अंसारी के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई। राकेश न्यायिक और भीम सिंह की पत्रावली अभी भी प्रयागराज में ही लंबित है।
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आजीवन कारावास और भ्रांतियां
अवधेश राय हत्याकांड में 32 साल बाद आए फैसले के संबंध में क्राइम रिपोर्टर पुष्पेंद्र कुमार त्रिपाठी ने कहा कि निश्चित रूप से अभियोजन पक्ष प्रभावी पैरवी करने में असफल रहा, जिससे इस नृशंस हत्याकांड की सुनवाई पूरी होने में इतना लम्बा वक्त लगा।
गौरतलब है कि इस हत्याकांड की सुनवाई के दौरान मूल केस डायरी गायब हो गई थी। केस डायरी गायब होने के प्रकरण में पुलिस की तरफ से कैंट थाने में मुकदमा दर्ज कराया गया था। इस प्रकरण के बारे में बताते हुए पुष्पेंद्र कहते हैं कि पत्रावली गायब होने की बात इस तरफ इशारा करती है कि आज भी न्यायिक, पुलिस और सत्ता से माफियाओं का इतना तगड़ा गठजोड़ है कि वे एक नृशंस हत्याकांड से जुड़ी मूल पत्रावली को ही गायब कराने में सफल हो जा रहे हैं। मुख्तार अंसारी को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा की व्याख्या करते हुए पुष्पेंद्र बताते हैं कि आजीवन कारावास को लेकर कई भ्रांतियां हैं। कई लोग मानते हैं कि 14 साल पूरा हो गया तो आजीवन कारावास की सजा पूरी हो गई। कई लोग यह भी कहते हैं कि आजीवन कारावास की सजा में दिन और रात जोड़ा जाता है। इन सब भ्रांतियों की कोई जगह नहीं है। अदालत कई मामलों में स्पष्ट कर चुकी है कि आजीवन कारावास का अर्थ यह है कि दोषी जब तक जीवित रहेगा, तब तक सजा चलती रहेगी। जिले की सेंट्रल जेल में 90 वर्ष से अधिक उम्र के कैदी हैं जो आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। पुष्पेंद्र आगे बताते हैं कि अन्य मामलों में सुनवाई के दौरान जेल में रहने की अवधि गिनी जाती है, लेकिन आजीवन कारावास के मामले में ऐसा नहीं होता है। यह उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय और राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि वह बंदी के सदाचरण, कार्यशैली और व्यवहार को देखते हुए एक लम्बी अवधि के बाद उसके दंड को परिमार्जित करते हुए उसे बाहर जाने की अनुमति देता है कि नहीं देता है।
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अवधेश राय हत्याकांड
लहुराबीर इलाके में तीन, अगस्त 1991 को अवधेश राय की उनके घर के बाहर हत्या कर दी गई थी। अवधेश राय अपने छोटे भाई अजय राय के साथ घर के बाहर खड़े थे। उसी वक्त एक वैन वहां तेजी से आई। अवधेश राय को संभलने का मौका दिए बिना हथियारबंद अपराधियों ने अत्याधुनिक हथियारों से ताबड़तोड़ गोलियां दाग अवधेश राय के शरीर को छलनी कर दिया। वे लहूलुहान होकर जमीन पर गिर पड़े। आननफानन में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। अवधेश राय के भाई अजय राय की तहरीर पर मुख्तार अंसारी व उसके सहयोगियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ। इस हत्याकांड की सुनवाई के दौरान जून 2022 केस की मूल पत्रावली गायब होने की बात सामने आई। इस मामले में पुलिस ने कैंट थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। मूल केस डायरी को गायब कराने के मामले में मुख्तार अंसारी पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का आरोप लगा।
विभांशु केशव गाँव के लोग डॉट कॉम के मुख्य संवाददाता हैं।