Tuesday, July 1, 2025
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मिर्ज़ापुर में ग्रामीण सड़क : तमाम दावे फेल, सड़क के गड्ढे डरावने हो चुके हैं

पूरे उत्तर प्रदेश को आपस में जोड़ने के लिए एक्स्प्रेस वे, हाई वे, रिंग रोड बनाये गए हैं और अभी बन भी रहे हैं। गाड़ियों से चलने वाले खुश हैं और 'विकास हुआ' का दावा भी कर रहे हैं लेकिन उप्र के गांवों में जाने पर विकास की असलियत सामने आती है, जहां सड़क के नाम पर दशकों पहले बनी हुई सड़कों के निशान बाकी हैं। असल में सरकार दिखावे वाले विकास पर काम करती है। पढ़िये मिर्ज़ापुर के विशुनपुरा गांव से संतोष देवगिरि की ग्राउंड रिपोर्ट 

निज़ामाबाद : जर्जर सड़कों के निर्माण के लिए किसानों का प्रदर्शन

निजामाबाद की सड़कों का खस्ताहाल होने के कारण सोशलिस्ट किसान सभा ने सड़कों को जल्द ठीक कराने के लिए मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा।

आजमगढ़ नहर से सिंचाई के लिए नहीं मिल पा रहा पानी 

आजमगढ़ के नहरों में पानी नहीं हैं जिसके कारण किसान अपने खेतों की सिचाई नहीं कर पा रहे हैं। नहरों में जो पानी छोड़ा जाता वह नहर में मिट्टी एवं घास-फूस होने से पानी इधर-उधर बह जाता है। पानी नहीं मिलने से  खेतों में धान की फसल सिंचाई के बिना सूख रही है और सिंचाई विभाग निष्क्रिय है।

Mirzapur का प्रसिद्ध ओझला पुल गंदगी और नशेड़ियों का अड्डा बना

विंध्य की पहाड़ियों की गोद में बसा मिर्जापुर अपने में कई गौरवशाली इतिहास संजोए हुए है। उन्हीं ऐतिहासिक कहानियों में एक है विंध्याचल के रास्ते में बने ओझला पुल की। कहा जाता है कि रास्ता न होने के चलते कॉटन के व्यापारियों ने अपने एकदिन की कमाई से इस पुल का निर्माण कराया था। लेकिन आज यह पुल जर्जर हो गया है।

कृषि योजनाओं के बावजूद हो रही किसानों की दुर्दशा

किसान और कृषि विभाग में तालमेल का अभाव है। किसानों का आरोप है कि पदाधिकारी जान-पहचान वाले लोगों को किसान बताकर किसान श्री सम्मान और अन्य कृषि लाभ देते रहते हैं। कागजी खानापूर्ति करके किसी तरह योजनाओं का बंदरबांट हो जाता है। दूसरी ओर, वास्तविक किसानों को मौसम की मार ओलावृष्टि, कभी बाढ़, कभी सुखाड़ की मार झेलनी पड़ती है। फसल भंडारण की कोई उचित व्यवस्था नहीं है।

मुख्तार को आजीवन कारावास, उच्च न्यायालय में फैसले को देंगे चुनौती

वाराणसी। तीन अगस्त, 1991 को लहुराबीर इलाके में हुए अवधेश राय हत्याकांड के 32 साल बाद आज वाराणसी की एमपी-एमएलए कोर्ट ने अपना फैसला...

जिलेटिन रॉड के हादसे को मोबाइल विस्फोट बताने का प्रयास

अच्छे इलाज के लिए घायल आशीष को लेकर दर-दर भटक रहा गरीब परिवार मीरजापुर। जिस जिलेटिन रॉड को पहाड़ों को तोड़ने और ब्लास्टिंग के काम...

हक़ की हर आवाज़ पर पहरेदारी है और विकास के नाम पर विस्थापन जारी है

[भव्यता के ख्वाब तले कुचले जा रहे स्वपन अब एक बड़े वर्ग की आँखों में चुभने लगे हैं। लोग दर्द में हैं और हक़ की आवाज पर सरकार की पहरेदारी है। धमकियाँ हैं। बावजूद इसके लोग अब भी लड़ रहे हैं। जब तक लोग लड़ रहे हैं तब तक उम्मीद जिंदा है। इस जिंदा उम्मीद के लिए न्याय की नियति क्या होगी, भविष्य क्या होगा, इस पर अभी तो प्रश्नवाचक का पेंडुलम वैसे ही झूल जा रहा है, जैसे समय के साथ चलने वाली घड़ी के बंद हो जाने पर उसका पेंडुलम खामोशी से झूलता रहता है और इंतजार करता रहता है कि कभी तो कोई उसकी चाभी भरकर उसे चला देगा।

कामुक ही नहीं हिंसक भी हो चुकी है अश्लील आर्केस्ट्रा की उत्सवी अवधारणा

यौन कुंठा में अराजक तत्व के लिए कठपुतली बन रही हैं नाचने वाली लड़कियां यह शादियों का मौसम चल रहा है। गांव-देहात में अभी...

बेराह बनारस में बवाल उर्फ मोदी सरकार के नौ साल

समर्थकों के विशेष वर्ग को उन आलोचनाओं को सुन अपना पारा नहीं चढ़ाना चाहिए, जिन आलोचनाओं में भारत सरकार, केंद्र सरकार या एनडीए सरकार का संबोधन प्रयोग किया जाता है। ये तीनों अब कहीं हैं ही नहीं। यहां तक कि अब तो विदेश भी मोदी सरकार ही जाती है, भारत सरकार नहीं। जब भारत सरकार की जगह एक व्यक्ति विदेशी दौरों पर जाएगा, तो वो देश के कार्य से अधिक तवज्जो व्यक्तिगत कार्य को देगा।

आए क्यों थे, गए किसलिए… के प्रश्नों में घिरे रहे 2000 के नोट

जितने धूम धड़ाके, आन-बान-शान और गुलाबी गरिमा के साथ 2000 रुपये के नोट प्राणवान हुए थे, उतनी ही फुस्स और अनुल्लेखनीय, निराश विदाई के...

प्रयागराज : गंगा में डूब रहे हैं लोग, प्रशासन लापरवाह

गंगा में डूबने की एक के बाद लगातार हो रही घटनाओं के बाद अब प्रशासनिक तंत्र भी जागा है।

‘आवास योजना’ के रहते कच्चे घरों में रहने को हैं मजबूर

इंदिरा आवास योजना का उद्देश्य यह है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोग, जिनके पास रहने के लिए घर नहीं है और वह अपनी जिंदगी झुग्गियों-बस्तियों में रहकर गुजारा करते हैं। इसके अंतर्गत जिनके पास घर खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते हैं, ऐसे लोगों को पक्के मकान उपलब्ध कराना होता है।

दम तोड़ रहा है पूर्वांचल का हथकरघा कारोबार, कला के कारीगर मजदूरी करने को मजबूर

जरदोज़ी का काम अब सिर्फ मजदूरी का काम बन गया है। लोग इस काम के अंतिम रूप को देखते हैं और अक्सर इसमें लगी मेहनत और कौशल को देख नहीं पाते। लॉकडाउन के पहले रोजाना 12 घंटे का काम मिलता था। अब रोजाना 8 घंटे का काम मिलता है। कई सारे कारखाने बंद हो रहे हैं। मंदी की हालत में लोगों को जैसा भी काम मिल रहा है, वही करने लगे हैं।

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