बंगाल की खाड़ी के ऊपर बना साइक्लोन मिचौंग (Cyclone Michaung) का बुरा असर उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में दिखाई दिया। अचानक मौसम बदलने के साथ ही बेमौसम बारिश के कारण जहाँ ठंड बढ़ गई है, वहीं खेती-किसानी पर भी प्रभाव पड़ा है। ओडिशा में भी फसल प्रभावित होने के कारण यहाँ के कॉफी उत्पादकों के एक संगठन ने सरकार से हस्तक्षेप करने और सब्सिडी देने की मांग की है।
मौसम विज्ञानियों के अनुसार, ऐसा बदलाव साइक्लोन मिचौंग के कारण जलवायु परिवर्तन से मौसम में हो रहा है। किसान मान रहे हैं कि आने वाले दिनों में बारिश फिर हुई तो धान की फसल एकदम चौपट हो सकती है।
तेज हवा के साथ हुई बारिश ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं। बेमौसम बारिश के कारण खेतों में कटी हुई फसल भींग गई। तेज हवाओं के कारण कुछ खड़ी फसलें खेतों में लोट गई है। पिछले सप्ताह हुई बारिश की वजह से फसलों को काफी नुकसान हुआ था। इसके बाद गुरुवार को हुई बारिश से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ी।
मिचौंग गम्भीर चक्रवाती तूफान में तब्दील हो चुका है। इसका सबसे ज्यादा असर तमिलनाडु, ओडिशा, पुडुचेरी और आंध्र प्रदेश के साथ यूपी के बनारस, आजमगढ़ और मीरजापुर मंडल में देखने को मिल रहा है। इन मंडलों के जिलों में धान की कटाई और मड़ाई पर काफी असर पड़ा है। बीएचयू मौसम विभाग की मानें तो एक-दो दिन और मौसम इसी तरह बना रहेगा। वहीं, बनारस में शुक्रवार को न्यूनतम तापमान 16 और अधिकतम 24.5 बना हुआ है।
एक अनुमान के अनुसार, दिसम्बर माह में लगभग आठ वर्षों बाद इतनी बारिश हुई है। गुरुवार की अपेक्षा शुक्रवार को हवाएँ थोड़ी धीमी हो गई हैं। बनारस सहित इलाहाबाद (प्रयागराज), चंदौली, जौनपुर के तापमान में गिरावट हुई है।
‘मौसम में इस बदलाव का असर खेती-खलिहानी पर ज़्यादा पड़ा है। इधर कुछ दिनों से किसान धान की कटाई-मड़ाई में व्यस्त थे लेकिन बारिश ने काम को प्रभावित कर दिया।’ इसके आगे बरारपुर (सकलडीहा) के किसान संदीप प्रसाद बताते हैं कि ‘इस बार मैंने छह बिगहा जमीन पर सिर्फ धान लगाया था। दस दिनों में दो बार हुई बारिश से फसल का बड़ा हिस्सा बर्बाद हा गया। गुरुवार को जो बारिश हुई है, उसने मुझे ज़्याद नुकसान पहुँचाया।’
संदीप बताते हैं कि ‘बारिश के कारण फसल पानी में तैर रही है। सूखने के बाद धान सड़कर महकने लगेगा। यह खाने लायक नहीं रह जाता। इसलिए यह जानवरों को खिला दिया जाता है। इस गीली फसल को खेत से हटाने में भी मशक्कत करनी पड़ती है। उसके सूखने का इंतज़ार किया जाता है।’
चक्रवात के कारण हुई बारिश से किसानों को अब अगली फसल की बोआई के लिए लगभग दस दिन का इंतज़ार करना पड़ेगा। 15 दिसम्बर तक गेहूँ के लिए खेती शुरू हो जाती है, लेकिन ज़मीन गीली होने के कारण जोताई नहीं हो पाएगी। इस कारण फसल की दर्मनी (मात्रा) पर काफी असर पड़ेगा। एक बीघा जमीन में लगभग 20-22 मन गेहूँ होता है तो इस बारिश के कारण 16-17 मन की उपज होगी। जिससे आटे के दाम में बढ़ोत्तरी होगी।
किसान राजूराम बताते हैं कि अब किसानों को आलू और गेहूँ की खेती के लिए मौसम साफ होने का इंतज़ार करना पड़ेगा। खुले में रखी धान की फसल को आंशित रूप से नुकसान होगा। बारिश से प्याज, लहसून पर खराब प्रभाव होगा। जिन क्षेत्रों में किसान धान की फसल पहले ही काट चुके हैं, वहाँ तिलहनी और दलहनी की फसलों के लिए यह बारिश अच्छी साबित होगी।
मौसम के बाबत बीएचयू के भूतपूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर और मौसम विज्ञानी एसएन पांडेय बताते हैं कि साइक्लोन मिचौंग का प्रभाव अब खत्म हो गया है। अब जो मौसम बदलाव होगा उससे ठंड बढ़ेगी, शीतलहरी भी चलेगी। साइक्लोन के कारण ही खेती-किसानी प्रभावित हुई है। भारतीय मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की थी कि मिचौंग के कारण कई राज्यों में अगले 2-3 दिन में जोरदार बारिश हो सकती है।
फूलों की खेती पर भी पड़ा प्रभाव
साइक्लोन मिचौंग के कारण हुई बेमौसम बारिश से फूलों की खेती पर भी प्रभाव पड़ा है। तेज हवाओं और पानी की चोट से गेंदे की फसल चौपट हो गई। गुलाब, अढ़उल की पंखुड़ियाँ कुम्हला गई हैं। वैवाहिक और अन्य शुभ कार्यों के लगन होने के बावजूद गुरुवार को फूल मंडियों में रोज की अपेक्षा कम ग्राहक आए। बनारस की दोनों मंडियों से अन्य जिलों में भेजने के लिए रखे फूलों को भी नुकसान हुआ है। बागबानों को पानी लग चुके फूलों को फेंकना पड़ा। इस कारण उनकी जेब पर भी चपत बैठी।
कॉफी उत्पादक भी हुए परेशान
ओडिशा कॉफी ग्रोअर्स एसोसिएशन (ओसीजीए) ने सरकार से फसलों को आधुनिक तरीके से सुखाने की तकनीक को अपनाने के लिए सब्सिडी प्रदान करने का आग्रह किया। किसानों के संगठन के अनुसार, कॉफी बागानों के लिए मशहूर कोरापुट जिले में बीते मंगलवार एवं बुधवार को बारिश हुई और फसलों को नुकसान पहुंचा है।
उन्होंने कहा कि फसलों की कटाई के दौरान यह आपदा आई जिससे पके हुए कॉफी फलों की गुणवत्ता एवं बनावट प्रभावित हुई। कॉफी उत्पादकों के संगठन के उपाध्यक्ष सुजॉय प्रधान ने कहा कि यह कॉफी फलों के पकने का मौसम है। चक्रवाती तूफान ने उत्पादकों को बहुत प्रभावित किया है। बेमौसम बारिश के बाद काटी गई कॉफी को सुखाना मुश्किल हो गया है। इस स्थिति का सामना हम लगभग हर साल करते हैं। इसके अलावा, गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
जिले में काश्तकार फसल को सुखाने के लिए काटे गए कॉफी के फलों को धूप में रखते हैं। प्रतिकूल मौसम की स्थिति के दौरान यह अभ्यास चुनौतीपूर्ण हो जाता है, जिससे गुणवत्ता सम्बंधी समस्याएं पैदा होती हैं। इसके अतिरिक्त, खुले में सुखाने की प्रक्रिया के दौरान अनजाने में कई पदार्थ कॉफी के साथ मिल सकते हैं। वर्तमान में, कोरापुट में 3,500 हेक्टेयर से अधिक कॉफी बागान हैं, जिसमें लगभग 4,300 उत्पादक शामिल हैं।