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बाणसागर नहर परियोजना पर अरबों हुआ खर्च फिर भी किसान तरस रहे हैं पानी को

बाणसागर परियोजना के बावजूद किसान खेतों की सिंचाई के लिए तरस रहे हैं। नहर में समुचित मात्रा में पानी नहीं आ रहा है। जुलाई 2018 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बहुप्रतीक्षित नहर परियोजना का फीता काटकर किसानों को समर्पित किया था तो उम्मीद जगी थी कि जिले के किसानों को भरपूर पानी सिंचाई के लिए मिलेगा, इसके दावे भी खूब किए गए थे। लेकिन संबंधित विभाग की लचर नीतियों और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते किसानों की उम्मीद खत्म होती दिख रही है।

मिर्जापुर। बहुप्रतीक्षित बाणसागर नहर परियोजना को लेकर जगी किसानों की उम्मीद  निराशा में बदलती दिख रही है। इतनी बड़ी परियोजना के बावजूद किसान खेतों की सिंचाई के लिए तरस रहे हैं। नहर में समुचित मात्रा में पानी नहीं आ रहा है। जुलाई 2018 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बहुप्रतीक्षित नहर परियोजना का फीता काटकर किसानों को समर्पित किया था तो उम्मीद जगी थी कि जिले के किसानों को भरपूर पानी सिंचाई के लिए मिलेगा, इसके दावे भी खूब किए गए थे। लेकिन संबंधित विभाग की लचर नीतियों और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते किसानों की उम्मीद खत्म होती दिख रही है। अब क्षेत्र के किसानों के पास बस एक सवाल बचा है कि क्या मतलब ऐसी अरबों रुपए वाली परियोजना का?

स्थानीय पत्रकार प्रभाशंकर दुबे बताते हैं कि ‘उपरौध यानी लालगंज तहसील क्षेत्र के कुछ  किसानों ने सिंचाई के पानी के अभाव में किसी प्रकार जैसे-तैसे धान की रोपाई तो कर ली थी, तो कुछ किसान इससे भी वंचित रह गए थे। कारण पानी न मिलने के कारण उनकी धान की बेहन खेत में ही सूख गई थी तो भला रोपाई कैसे व किस बात की हो? कुछ किसानों ने बेहन तैयार होने के बाद भी रोपाई नहीं की थी क्योंकि नहरों माइनर में पानी ही नहीं आया था। कुल मिलाकर धान की खेती को कुछ किसान इस लिए नहीं कर पाए कि उन्हें सिंचाई और रोपाई के लिए पानी नहीं मिल पाया था। जिससे उन्हें काफी नुकसान भी हुआ है। अब उनको उम्मीद थी कि गेहूं की फसल को बाणसागर परियोजना से पानी मिलेगा। हालांकि किसानों को खेत पलावा के लिए पानी दिया गया है। गेहूं की बुवाई करने वाले किसान अब सिंचाई के लिए पानी की आस लगाए बैठे जरूर हैं, लेकिन सिंचाई विभाग के अधिकारी बताने को तैयार नहीं हैं कि बाणसागर का पानी किसानों को मिलेगा या नहीं।

बांडसागर नहर पर बना माइनर

नहरों और माइनरों की हालत को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि तलहटी में नाम मात्र का पानी बचा हुआ है जो पहाड़ी नदी से बहकर आ रहा है, वह भी प्रयागराज के लिए छोड़ा जा रहा है। किसान मनीष सिंह पटेल कहते हैं, ‘मिर्जापुर जिले के किसान इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं की संपूर्ण पानी प्रयागराज को क्यों दिया जा रहा है, जबकि मिर्जापुर और प्रयागराज दोनों किसानों के लिए संयुक्त रूप से बराबर पानी देने की बात पूर्व में वैधानिक रूप से की गई थी। सिंचाई विभाग के अधिकारी बांध का रोड मैप इस तरह बना रखे हैं कि यदि प्रयागराज के लिए पानी छोड़ा जाएगा तो मिर्जापुर के मुख्य गेट तक पानी नहीं पहुंचेगा। पानी की मात्रा को देखते हुए प्रयागराज नहर को दिए जाने वाले गेट की डिजाइन नए तरीके से बनाए जाने की आवश्यकता है। यदि बांध की आंतरिक रोड डिजाइन में सुधार नहीं किया गया तो मिर्जापुर के किसानों को बाणसागर परियोजना से आने वाला पानी नहीं मिल पाएगा। इसके चलते किसान पूरी तरह से सूखे की चपेट में फंस जाएंगे और उनकी गेहूं की फसल सूख जाएगी। यह संभावना बांध के पानी को देखकर लगाई जा सकती है।’ मनीष सिंह के कथन में दम नजर आता है। हाल यह है कि बांध के बीचों बीच प्रयागराज के लिए मुख्य गेट तलहटी में बना दिया गया है जिसके कारण आने वाला बाणसागर का संपूर्ण पानी प्रयागराज छोड़ा जा रहा है। वर्षों पुराने बनाई गई परंपरा की इंजीनियरिंग सिंचाई विभाग सुधारने के स्थान पर बनाए रखे हुए हैं। हालांकि विभाग के अवर अभियंता रमेश वर्मा ने बताया कि इधर कुछ दिनों से बाणसागर का पानी ददरी बांध में 384 क्यूसेक प्रतिदिन पहुंच रहा है, जबकि 1400 क्यूसेक पानी बाणसागर परियोजना से आनी चाहिए। ऐसी स्थिति में पानी का स्टोरेज हो जाएगा तो रानीवारी, उपरौध रजवाहा के किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा।’ लेकिन यह कब तक संभव हो पायेगा कह पाना मुश्किल है।

छलावा साबित हो रही है बाणसागर नहर

बाणसागर परियोजना से निर्मित मिर्जापुर के लालगंज तहसील क्षेत्र के रानीबारी एवं उपरौध राजवाहा में पानी न छोड़े जाने से किसानों की गेहूं की फसल की सिंचाई नहीं हो पा रही है जिससे किसान परेशान हैं। किसानों ने ‘गांव के लोग’ को बताया कि ‘पूर्व में सिंचाई के पानी के इंतजार में धान की रोपाई नहीं हो सकी थी, लगता है कि अब गेहूं की खेती की सिंचाई करने के लिए भी पानी समय से नहीं मिलेगा।’ उपरौध एवं रानीबारी पर बसे गांव लहंगपुर रजई, कटाई चिरईराम, बसकोप, निनवार उत्तर पूरा ठाकुर राम, घुरुमा, बनवारी, गंगहरा खुर्द, कनोखर आदि क्षेत्रों में गेहूं की फसल की सिंचाई को लेकर किसान हलकान दिखाई दे रहे हैं। सौरेह निवासी किसान रामजी पाल, कालीचरण, कन्हैयालाल ने बताया कि उपरौध राजवाहा एवं रानीबारी राजवाहा कहने को तो बाणसागर परियोजना से संबद्ध किया गया है, किंतु सिंचाई के पानी के नाम पर यह छलावा साबित हो रहा है। मेढ़रा निवासी भूप नारायण पांडेय, राकेश पांडेय, चिंतामणि दुबे, उमाशंकर विश्वकर्मा, ललई विश्वकर्मा, गोविंद नारायण पांडेय आदि लोगों ने बताया कि उपरौध एवं रानीबारी रजवाहा पर विगत तीन वर्षों से लोग सूखे की चपेट में पड़े हुए हैं। प्रकृति के साथ बाणसागर नहर भी दिखावटी साबित हो रही है। ग्रामीणों ने उपरौध एवं रानीवारी नहर में पानी संचालित किए जाने की मांग की है।

बाणसागर नहर से जोड़ने की लगाए हैं आस

चार दशकों से ज्यादा समय बीतने के बाद भले ही बाणसागर नहर को प्रारंभ कर दिया गया हो, लेकिन मिर्जापुर के कई ऐसे नहर और माइनर आज भी अछूते चलें आ रहे हैं जिन्हें बाणसागर नहर से जोड़ने की आवाज शुरू से ही उठती आई है, लेकिन कोई अभी तक सुनने वाला नहीं मिला है। बुधवार को शाम ढलने के बाद ‘गांव के लोग’ टीम जैसे ही नहरों और सिंचाई की जमीनी हकीकत की पड़ताल कर मुख्यालय की ओर लौटने को होती है कि तभी गंगहरा खुर्द गांव के चट्टी से थोड़ा आगे बढ़ते ही लहंगपुर गांव निवासी छांगुर प्रसाद मौर्या, रेही गांव के संजय मौर्या, मड़वा नेवादा निवासी शुभम मौर्या से सामना होता है। टीम सवाल करती उसके पहले ग्रामीण ही सवाल कर बैठते हैं कि ‘आप लोग मीडिया वाले हैं क्या?’ हां में जवाब देते ही वह लोग मुखर होकर अपनी व्यथा-कथा बताने लगते हैं कि ‘खेत है मगर सिंचाई के लिए पानी नहीं है, थोड़ा बहुत मिलता भी है तो वह भी असमय।  ‘का बरसा जब कृषि सुखानी’ के तर्ज पर जिससे किसानों को लाभ तो नहीं हानि जरूर होती है।’ सभी एक स्वर में कहते हैं  कि सिरसी नहर खुलती हैं तो पानी मिलता है अन्यथा नहर खुलने की आस लगाए बैठे रहते हैं। यदि बाणसागर नहर से लहंगपुर राजवाहा को जोड़ दिया जाए तो कम से कम 12/14 गांवों के किसानों को काफी राहत मिल जाएंगी। किसानों का कहना है कि वह इसके लिए लंबे समय से गुहार भी लगाते आऐ हैं, बावजूद इसके उनकी कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है।’

पहाड़ी से रिस कर नहर में आता पानी

इन किसानों का दर्द रहा है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों की आय दुगनी करने की बात करते हैं लेकिन यह आय कैसे दुगुनी होगी जब सिंचाई के लिए खेतों को पानी ही नहीं मिलेगा?

3,500 करोड़ की है बाणसागर परियोजना

गौर करें तो तकरीबन 3,500 करोड़ की बाण सागर परियोजना से सिर्फ मिर्जापुर ही नहीं बल्कि प्रयागराज समेत इस पूरे क्षेत्र की 1।5 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचाई की सुविधा मिलने की बात उदघाटन के समय कहीं गई थी, लेकिन कालांतर में यह अपने उद्देश्य से भटकती हुई नज़र आ रही है। दो जनपदों के किसानों को कौन कहें अकेले एक विधानसभा क्षेत्र के ही किसान पूरी तरह से लाभान्वित नहीं हो पा रहे हैं। बताते चलें कि बाणसागर नहर मध्य प्रदेश के बाद मिर्जापुर जिले में जिस एरिया से प्रवेश करते हुए गुजरती है वह एरिया मिर्जापुर का छानबे विधानसभा क्षेत्र कहलाता है। अकेले यहीं के किसान पूरी तरह से इस नहर का पानी नहीं पा रहे हैं तो अन्य इलाकों की क्या स्थिति होगी आसानी से समझा जा सकता है?

किसानों के खुशहाली का दावा दावा ही रहा 

बहुप्रतीक्षित बाणसागर नहर परियोजना कि योजना थी कि शहडोल (मध्य प्रदेश) से पानी लाकर उत्तर प्रदेश के पहाड़ी भू-भाग वाले मिर्जापुर के अदवा और जरगो बांध एवं प्रयागराज के मेजा बांध को नहरों के जरिए आपस में जोड़ा जाए। लिंक नहरों के माध्यम से असिंचित क्षत्रों में सिंचाई के लिए इसके पानी को उपलब्ध करवाना था, जिससे तकरीबन डेढ़ लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सके। दावा किया गया था कि बाणसागर नहर परियोजना के पूरी होने से 1 लाख 70 हजार किसानों को इस योजना का लाभ मिल सकेगा। 15 जुलाई 2018 को मिर्जापुर के चनईपुर में आयोजित कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे देश को समर्पित किया था। उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि जब हमने वर्षो से अटकी, भटकी और लटकी परियोजनाओं को खंगाला तो उसमें यह बाणसागर परियोजना भी शामिल थी, जिसे आज किसानों को समर्पित किया जा रहा है।

लक्ष्य रखा गया था कि बाणसागर नहर परियोजना से मिर्जापुर में 75309 हेक्टेयर तथा इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में 74823 हेक्टेयर, कुल 1,50,132 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई हो सकेगी।

परियोजना का उद्देश्य

साल 1978 में 222 करोड़ की लागत से इस परियोजना की शुरुआत की गई थी। उसके 41 साल बाद 3500 सौ करोड़ खर्च कर इसे पूरा किया जा सका। परियोजना के तहत नहरों का जाल बिछाकर मिर्जापुर और प्रयागराज जिलों के असिंचित इलाकों में सिंचाई के लिए पानी पंहुचाना मकसद था। इसके लिए मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के सोन नदी पर बने बांध से पानी लिफ्ट कर 171 किलोमीटर लम्बी नहर और टनल के जरिए अदवा, मेजा और जरगो बांध को जोड़ना था। बढ़ते समय के साथ ही साथ इसकी लागत में भी इजाफा होता आया है।

परियोजना का निरीक्षण करते कर्मचारी

परियोजना की कुल लागत 3420.24 करोड़ थी। इससे 1,70,00 किसान लाभान्वित होंगे का दावा किया गया था। इससे जुड़ी नहरों की कुल लंबाई 171.80 किलोमीटर है। क्षमता 46.46 क्यूसेक पानी की। 25.600 किलोमीटर अदवा मेजा लिंक नहर का निर्माण किया गया। मेजा जिरगो लिंक नहर 71.130 किलोमीटर तथा फिर मेजा कोटा फीडर 3.577 किलोमीटर नहर निर्माण का कार्य हुआ। आखिरकार 41 साल बाद पूरी हुई बाणसागर सिंचाई परियोजना से 1.70 लाख किसानों को फायदा होने का दावा कर जरगो जलाशय तक नहर की खुदाई भी पूरी की गई। यहां पठारी इलाका होने के कारण कुछ जगहों पर सीपेज हो गया था, जिसके कारण पानी आगे नहीं बढ़ पा रहा था सो, सीपेज ठीक करने के बाद पानी आगे बढ़ाकर जरगो जलाशय तक पहुंचाया गया, बावजूद आज भी सीपेज बना हुआ है। किसानों का कहना है कि बाणसागर परियोजना को पूरा कर ईकाई अन्यत्र की परियोजना पर लगा दी गई है। ऐसे में इसके रखरखाव को लेकर कोई विशेष ध्यान भी नहीं रखा जाता है। जिससे चाहकर भी किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है। किसान राघवेंद्र सिंह कहते हैं ‘कहने को तो विंध्य क्षेत्र के किसानों के लिए चलाई गई बाणसागर सिंचाई परियोजना तकरीबन 41 साल बाद पूरी हुई जरूर है, लेकिन अभी भी काफी संख्या में जिले के किसान इससे अछूते चलें आ रहे हैं।’ वह कहते हैं कि बाणसागर नहर परियोजना से प्रयागराज और मिर्जापुर जिले के डेढ़ लाख हेक्टेयर असिंचित जमीन की सिंचाई होने व परियोजना के पूरे होने से 1 लाख 70 हजार किसानों को इस योजना का लाभ मिलने के दावे को वह इलाके मुंह चिढ़ा रहे हैं जहां बाणसागर नहर का पानी अभी भी पहुंच से दूर होकर सपना बना हुआ है।

संतोष देव गिरि
संतोष देव गिरि
स्वतंत्र पत्रकार हैं और मिर्जापुर में रहते हैं।

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