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बिहार में सालों से रेलवे वैकेंसी की बाट जोह रहे प्रतियोगी छात्रों पर लाठीचार्ज, क्या कह रहे छात्र?

पटना। बिहार में पटना के भिखना पहाड़ी, मुसल्लहपुर और बाज़ार समिति के इलाक़े एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। कोचिंग संस्थानों और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए चर्चित इन इलाकों में जगह-जगह पुलिस-प्रशासन की तैनाती है। प्रशासन ने धारा 144 लगा दी है। कोचिंग संस्थान बंद हैं और कई कोचिंग संस्थानों के संचालकों और शिक्षकों […]

पटना। बिहार में पटना के भिखना पहाड़ी, मुसल्लहपुर और बाज़ार समिति के इलाक़े एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। कोचिंग संस्थानों और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए चर्चित इन इलाकों में जगह-जगह पुलिस-प्रशासन की तैनाती है।

प्रशासन ने धारा 144 लगा दी है। कोचिंग संस्थान बंद हैं और कई कोचिंग संस्थानों के संचालकों और शिक्षकों के फ़ोन स्विच ऑफ हो गए हैं। वजह है, रेलवे वैकेंसी की बाट देख रहे प्रतियोगी छात्र-छात्राओं का प्रदर्शन, जिन पर प्रशासन ने जमकर लाठियाँ बरसाईं हैं।

छात्रों ने सड़क पर उतरने से पहले ट्विटर से लेकर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से अपनी आवाज़ बुलंद की। लेकिन सरकार को उनकी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है। बात दरअसल ऐसी है कि, बीते दिनों रेलवे भर्ती बोर्ड ने सहायक लोको पायलट (Assistant Loco Pilot) बहाली के लिए 5,697 पदों पर वैकेंसी निकाली। इस पद के लिए आवेदन बीते 20 जनवरी से लिए जा रहे। मगर, इन भर्तियों को लेकर प्रतियोगी छात्रों में गहरी नाराजगी है।

छात्र-छात्राओं के पढ़ने के स्थान मणि पुस्तकालय में तैनात पुलिसकर्मी

नाराजगी की मुख्य वजह टटोलने पर यह पता चला कि, रेलवे ने बीते 6 सालों से कोई व्यवस्थित वैकेंसी नहीं निकाली है। पिछली बार रेलवे ने लोकसभा चुनाव से पूर्व (2018) में 64,371 पदों के लिए बहाली निकाली थी और तब ढाई करोड़ से अधिक फ़ॉर्म भरे गए थे। उसके बाद से कोई व्यवस्थित बहाली नहीं निकली।

रेलवे द्वारा निकाली गई वैकेंसी (बहाली) और प्रदर्शन को समझने के लिए ‘गांव के लोग’ की टीम उन इलाक़ों तक गई जिसे पटना में कोचिंग हब के साथ ही कबूतरखानेनुमा लॉजों के लिए जाना जाता है।

एक ऐसे ही लॉज के छोटे से कमरे में दरभंगा के रहनिहार बबलू कुमार ठाकुर (24) कहते हैं, ‘मैं पिछले 4-5 साल से रेलवे बहाली की तैयारी कर रहा हूँ। उम्मीद थी कि वैकेंसी आएगी तो नौकरी ले लूँगा। पिता मुझे दो लाख (अपने जीवन का सेविंग) दे भी रहे थे कि, मैं सैलून (पुश्तैनी काम) में लग जाऊँ, लेकिन मैंने उन्हें मना कर दिया। मैंने बोला कि, जमाना बदल रहा है और मैं सरकारी नौकरी करना चाहता हूँ। दो साल दरभंगा में तैयारी की। इस बीच आईटीआई भी किया। उसमें भी पैसे लगे। जबकि इतने पैसे हैं भी नहीं। लेकिन आज स्थिति यह है कि, वह पैसा भी ख़त्म हो गया है। अब, आगे कुछ नज़र भी नहीं आ रहा।’

कुछ ऐसी ही कहानी रवि प्रकाश (21) की भी है। रवि और बबलू रूममेट हैं। बबलू के मार्गदर्शन में ही रवि पटना चले आए। रवि को तैयारी करते 4-5 साल तो नहीं हुए, लेकिन उन्हें अभी से यह डर सताने लगा है कि, गाँव-घर लौटकर क्या करेंगे? पिता के हिस्से तो 10 कट्ठे ज़मीन भी थी, लेकिन तीन भाइयों में बंटकर वह भी तीन कट्ठे के आस-पास ही ठहरेगी।

रेलवे में नौकरी पाने के लिए तैयारी कर रहे छात्र

रवि इस बीच सड़क पर हो रहे प्रदर्शन में भी शामिल हुए थे। सड़क पर प्रदर्शन में शामिल होने की वजह पर रवि कहते हैं, ‘सड़क पर उतरना और प्रदर्शन करना तो अंतिम विकल्प है। इससे पहले हमने (छात्रों) ट्विटर पर ट्रेंड कराने की कोशिश की। कई लोग उम्र सीमा बढ़ाने की माँग कर रहे थे। तब वह हुआ भी, लेकिन फिर हमारा हैशटैग ही हटा दिया गया।

‘तभी इस बीच रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा और गणतंत्र दिवस के साथ ही सरकार की अदला-बदली होने लगी। हमने भी धैर्य बनाए रखा, ताकि कोई यह न कहे कि हम धर्म और देश के ख़िलाफ़ हैं। लेकिन हमने देखा कि, हमारी कहीं सुनवाई ही नहीं हो रही थी। अंततः हमें सड़क पर उतरना पड़ा। हमें किसी पार्टी-पॉलिटिक्स से कुछ लेना-देना नहीं। हम तो चाहते हैं कि जो रेलवे सालों से वैकेंसी नहीं निकाल रहा, वो बहालियां निकाले। रेलवे बहालियों के लिहाज़ से कैलेंडर जारी करे।’

उम्र चली जाएगी तो क्या करेंगे

बाज़ार समिति के इलाक़े में हमारी मुलाक़ात मनीष कुमार से भी हुई। मनीष की आँखें हमसे बात करते-करते नम हो जाती हैं। जब हमने उनसे इसकी वजह पूछी तो मनीष कहते हैं, ‘मेरे घर में मुझे ही सबसे मेधावी छात्र के तौर पर जाना जाता रहा है। बेटों पर घर को संभालने की ज़िम्मेदारी अधिक होती है। इस बीच बहनों की बहाली (बिहार में शिक्षक) हो गई है, तब प्रेशर मुझ पर ज़्यादा है। हमारी तैयारी भी भरपूर है। टेस्ट वग़ैरह के स्कोर में दिख भी रहा है। लेकिन, हर बीतते दिनों के साथ हर जगह भीड़ भी बढ़ रही और वैकेंसी नहीं आ रही। जैसे पूरे पटना ज़ोन में सिर्फ़ 38 सीटें आई हैं और लोकसभा की सीटें बिहार में 40 हैं।’

प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाला अभ्यर्थी

आख़िर रेलवे ही क्यों?

अब यह सवाल बहुतों के ज़ेहन में उठते होंगे कि, बिहार-उत्तर प्रदेश से भारी संख्या में छात्र क्यों रेलवे के ग्रुप डी से लेकर ग्रुप बी की बहालियों की तैयारी या इंतज़ार करते हैं। हमने यह सवाल प्रतियोगी छात्रों से भी किया।

हालाँकि, इस बीच देश भर में हो रहे प्रदर्शन और बहालियों के संदर्भ में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि, रेलवे ने हाल ही में 1.5 लाख पदों के लिहाज़ से भर्ती प्रकिया पूरी की है। इसके बाद असिस्टेंट लोकों पायलट के 5,697 और टेक्निशियन के 9 हज़ार पदों पर बहालियां निकाली गई हैं। वे आगे भी टेक्निकल, नॉल टेक्निकल और ग्रुप डी में भर्ती निकाले जाने की बात कह रहे।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव भले ही और अधिक बहालियों में अधिक से अधिक लोगों को मौक़ा देने की बात कह रहे हों, लेकिन सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी लिमिटेड के दावे के हिसाब से साल 2023 के सितंबर माह में बेरोज़गारी की दर 7.09 % से बढ़कर अक्टूबर माह में 10.05 % हो गई। जो मई 2021 के बाद से सबसे अधिक है। इस दौरान ग्रामीण बेरोज़गारी 6.2 % से बढ़कर 10.82 % हो गई। जबकि शहरी दर थोड़ी कम 08.44 % हुयी है।

हालाँकि, प्रतियोगी छात्रों में सरकार के दावे और देश में बेरोज़गारी को लेकर जारी होने वाले आँकड़ों की बाज़ीगरी के इतर कई ऐसे भी छात्र हैं जिनकी बढ़ती उम्र उनके लिए चिंता का सबब है। बाज़ार समिति इलाक़े में ही सालों से रहकर रेलवे वैकेंसी का इंतज़ार करते मनीष (26) कहते हैं, ‘मैं घर में सबसे बड़ा लड़का हूँ। पिता जी ने मेरे पीछे-पीछे भाई को भी तैयारी के लिए भेज दिया है। रेलवे सबसे बड़ा पब्लिक सेक्टर है जहां लोगों को नौकरियाँ मिलती रहीं। छात्र भी इसकी ओर उम्मीद से देखते रहे हैं। लेकिन अब तो वो उम्मीद भी धुंधली हो रही। लगता नहीं कि सरकार वैकेंसी बढ़ाएगी।’

बेरोजगारी के प्रति अपने विचार रखने वाला अभ्यर्थी

बिहार-उत्तर प्रदेश या कहें कि हिन्दी पट्टी में सरकारी नौकरियों या रेलवे बहालियों को लेकर जारी क्रेज़ को समझने के लिए हमने देश के भीतर प्रतियोगी छात्र-छात्राओं और युवाओं के बीच उनके मसलों को लेकर सक्रिय ‘युवा हल्ला बोल’ के संस्थापक सदस्य प्रशांत कमल से बातचीत की।

प्रशांत कमल हालिया प्रदर्शन के संदर्भ में कहते हैं कि, ‘इस असिस्टेंट लोको पायलट (ALP) को लेकर देश भर में हो रहे प्रदर्शन में अभ्यर्थियों को एकदम से आया गुस्सा नहीं है। यह गुस्सा वादों को पूरा न करने से आया है। जैसे उदाहरण के तौर पर पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले, तब के रेल मंत्री पियूष गोयल ने अगले कुछ सालों में चार लाख वैकेंसी लाने की बात कही थी, लेकिन 6 साल बीतने के बाद भी 6 हज़ार से कम वैकेंसी आई है।’

प्रशांत कमल

प्रशांत कमल आगे कहते हैं, ‘जो बच्चे गाँव-देहात के इलाक़े से आते हैं या जिनकी आर्थिक स्थिति पहले से ही ख़स्ताहाल है और उनकी उम्र निकली जा रही। वे अंततः सड़क पर उतरते हैं। छात्र तो सिर्फ़ सीटों की संख्या बढ़ाए जाने की बात कह रहे। जबकि रेलवे में 3 लाख से भी अधिक सीटें ख़ाली हैं और प्रदर्शनकारी छात्रों पर लाठियाँ बरसाई जा रहीं। उनसे प्रशासन व सरकार ऐसे निपट रही जैसे वे अपराधी हों।’

विचारणीय है कि, देश में जैसे-जैसे बेरोजगारी दर बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे बेरोजगारों में रोजगार के प्रति निराशा बढ़ रही है। ऐसे में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय क्या कर रहा है, कुछ समझ नहीं आ रहा? सरकार भी बेरोजगारी जैसी गम्भीर समस्या के समाधान के लिए कोई वाजिब रास्ता नहीं तलाश पा रही है। अगर देश को वाकई बेरोजगारी से निजात दिलाना है, तो सरकार द्वारा आर्थिक नीतियों में सुधार की ओर विचार किया जाना चाहिए।

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