कानपुर देहात में हुए बेहमई हत्याकांड में 43 साल बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। कोर्ट ने जीवित बचे दो आरोपियों में से एक को दोषी पाया और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई है।
फूलन देवी और उसके गिरोह ने कानपुर गांव में 20 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड के चार दशक बाद यहां की एक कोर्ट ने बुधवार को अपना फैसला सुनाया। हत्याकांड के 35 आरोपियों में से सिर्फ दो ही जिंदा बचे हैं। एक को कोर्ट ने सजा सुना दी, जबकि दूसरे को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया।
कानपुर देहात जिले के सरकारी वकील राजू पोरवाल ने कहा कि न्यायाधीश अमित मालवीय की डकैती रोधी कोर्ट ने श्याम बाबू को दोषी पाया लेकिन सबूतों के अभाव में विश्वनाथ को बरी कर दिया।
पोरवाल ने कहा कि इस मामले में फूलन देवी समेत कुल 35 आरोपी थे। जिसमें श्याम बाबू और विश्वनाथ को छोड़कर बाकी सबकी मौत हो चुकी है। 14 फरवरी 1981 को फूलन और उसके गिरोह ने कानपुर देहात के बेहमई गांव में 20 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया था।
फूलन देवी और उसके गिरोह ने ऊंची जाति के पुरुषों द्वारा उसके साथ बलात्कार का बदला लेने के लिए ऐसा किया था। मरने वालों में सत्रह ठाकुर थे। इस कांड के बाद के वर्षों में फूलन देवी ने आत्मसमर्पण कर दिया और सांसद बन गईं। साल 2001 में दिल्ली में उनके घर के बाहर उनकी हत्या कर दी गई थी।