पोरवाल ने कहा कि इस मामले में फूलन देवी समेत कुल 35 आरोपी थे। जिसमें श्याम बाबू और विश्वनाथ को छोड़कर बाकी सबकी मौत हो चुकी है। 14 फरवरी 1981 को फूलन और उसके गिरोह ने कानपुर देहात के बेहमई गांव में 20 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया था।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम का दावा है कि 'विक्टोरिया गौरी के इस तरह के कथनों के बारे में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने उन्हें कोई जानकारी नहीं दी थी, अब नियुक्ति की प्रक्रिया इतनी आगे बढ़ चुकी है कि वे कुछ नहीं कर सकते।' मगर मामला इतना सरल नहीं है। यह अनजाने में, धोखे से हुयी नियुक्ति नहीं है, बल्कि बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से न्यायपालिका में सेंध लगाकर नफरती बारूद की सुरंग बिछाने का एक और उदाहरण है।
भारतीय जेलें पुलिस महकमे की भागीदारी के बिना अधूरी ही मानी जायेंगी। यह तथ्य किसी से छिपा नही है कि आज भी पुलिस-प्रशासन का जेण्डर दृष्टिकोण सामन्ती और पिछड़ा है। यहां तक कि महिला पुलिस अधिकारी और कर्मचारी भी उन्हीं महिला विरोधी मानदण्डों और गालियों का प्रयोग बेधड़क करती हैं जो कि पुरुषों द्वारा किये जाते हैं। यहां पर सवर्ण पितृसत्तात्मक मानसिकता का इतना अधिक प्रभाव होता है कि पुलिसकर्मी महिला मामलों को संवेदनशील तरीके हल करने में सक्षम नहीं होते हैं। अधिकांश तो महिला को अपराधी सिद्ध कर देने भर की ड्यूटी तक ही सीमित रहते हैं। कई बार यह देखा गया है कि महिला पुलिसकर्मी पुरुषवादी दृष्टिकोण से महिला अपराधियों के साथ ज्यादा अमानवीय और अभद्र व्यवहार करती हैं।