असर सर्वेक्षण (ASER Survey) भारत में हर साल राष्ट्रीय स्तर पर किया जाने वाला सर्वेक्षण है, जो यह पता लगाता है कि ग्रामीण भारत में बच्चों के नामांकन की स्थिति क्या है और वे क्या सीख रहे हैं ?
असर 2017 ‘बियान्ड बेसिक्स’ में 14-18 वर्ष के युवाओं के नामांकन, काम की स्थिति और क्षमताओं पर प्रकाश डाला गया था।
इस बार पुनः असर 2023 में ‘बियान्ड बेसिक्स’ सर्वेक्षण किया गया है। जिसमें 14-18 वर्ष के युवाओं पर फोकस किया गया है । इस साल के असर सर्वेक्षण में नामांकन, काम की स्थिति, क्षमताओं और आकांक्षाओ के साथ–साथ युवा डिजिटल टेक्नोलॉजी से कितने अवगत हैं, इन सभी स्थितियों को भी जाँचा और देखा गया। यह सर्वेक्षण 26 राज्यों के 28 जिलों में किया गया। इसमें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य के 2-2 जिले शामिल किये गए। उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं हाथरस जिले इसमें शामिल किए गए।
मै पिछले 13 वर्षो से प्रथम/असर में कार्य कर रहा हूँ। इतने वर्षो के अनुभव से मैं यह कह सकता हूँ कि यदि आपको बच्चों या युवाओं की शैक्षणिक कहानियों को जानना हो तो आपको असर सर्वेक्षण के दौरान गाँव में घूमना चाहिए। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के स्तर के अलावा गाँव से आपको कुछ नया सीखने को मिल सकता है।
इस लेख में ऐसी दो कहानियाँ हैं, जिन्हें मैं आपसे साँझा करना चाहता हूँ। पहली कहानी हाथरस जिले के एक गाँव की है, जहाँ मैं सर्वेक्षण के दौरान गया था। दोपहर का समय और गाँव में पहुँचने का कोई साधन नहीं, मैं तीन किलोमीटर पैदल चलकर गाँव में पहुँचा था। वहाँ पहुँचने के बाद मैंने देखा कि एक घर पर दो असर के सर्वेक्षक एक छात्रा से सर्वेक्षण से सम्बंधित जानकारी ले रहे थे। सर्वेक्षण की प्रकिया कैसी चल रही है? यह जानने के लिए मैं भी वहीं बैठ गया।
छात्रा का नाम गीता है जो 15 वर्ष की है। वह पास के ही एक निजी स्कूल में कक्षा 9 में पढ़ाई कर रही है। गीता ने सर्वेक्षक द्वारा पूछे गए हर एक सवाल का जवाब आत्म-विश्वास के साथ दिया । गीता ने बीच-बीच में सर्वेक्षक से कुछ सवाल भी पूछे। सवालों के क्रम में गीता जवाब देती है- मुझे बैंक में नौकरी करनी है और इसके लिए मैं मेहनत से तैयारी कर रही हूँ। गीता ने असर टूल के अधिकाशं सवालों के जवाब सही दिए।
सर्वेक्षक गीता के साथ सर्वेक्षण कार्य पूरा करने के बाद अगले चयनित घर की ओर चले गए । लगभग एक घंटे बाद, मैंने देखा कि गाँव के दूसरे हिस्से में जहाँ सर्वेक्षण कार्य चल रहा था, वहाँ गीता अचानक दौड़ते हुए आई।
गीता ने कहा, ‘सर एक बार पुनः मेरे घर चलिए, पापा आ गए हैं और उन्हें आपसे कुछ पूछना है।’ मैं थोड़ा असहज हुआ और तुरंत गीता से पूछा, ‘आपके पापा को क्या पूछना है?’
गीता ने कोई जबाब नहीं दिया और घर पर चलने के लिए ज़िद्द करने लगी। अंततः हमें गीता के घर जाना पड़ा। वहाँ जाने के बाद हम चारपाई पर बैठ गए।
हम सबके कुछ बोलने से पहले गीता ने अपने पापा को बताना शुरू किया, ‘सर ने मेरा टेस्ट लिया और मेरा प्रदर्शन अच्छा रहा है, अब तो मुझे पढ़ना ही है आप तो सिर्फ कक्षा 10 तक ही पढ़ाना चाहते हैं पर पापा मुझे आगे भी पढ़ना है और मुझे बैंक में नौकरी करनी है।’ हम यह सब देख और सुन रहे थेI हमें यह पता नहीं चल पा रहा था कि गीता ऐसा क्यों कह रही है? गीता मेरी तरफ देखकर बोलने लगी, ‘सर आप भी पापा को कुछ बताएं।’
मैं समझ गया था कि गीता क्या कहना चाहती है। मैंने इस संदर्भ में गीता के पापा से बातचीत शुरू कर दी। बातचीत के दौरान पता चला कि वह तो गीता को आगे पढ़ाना चाहते हैं। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हैं जिससे गीता को आगे पढ़ाया जा सके। परिवार का भरण-पोषण हो सके, इसके लिए वह दूसरों के खेतो में मजदूरी का कार्य करते हैं। खेती के कार्य के अलावा शहर में भी जाकर कुछ काम कर लेते है।
चर्चा के दौरान मैंने महसूस किया कि गीता की पढ़ाई में पैसों के साथ-साथ स्कूल की दूरी भी बाधक बन रही है। बातचीत के क्रम में, मैंने गीता के पापा को पढ़ाई के महत्व के बारे में बताया, साथ ही उन्हें यह भी एहसास दिलवाने का प्रयास किया कि गीता की आँखों में अपने सपनो को पूरा करने की चमक है, हमें उसे सहयोग देने कि जरुरत है। गीता निःसंदेह आगे कुछ कर सकती है। उन्होंने बड़े ध्यान से मुझे सुना और मुझे भरोसा दिलाया कि ‘गीता की पढ़ाई आगे बाधित नहीं होगी और मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा।’
इन बातों ने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया। आज के दौर में कौन सा अभिभावक नहीं चाहता है कि उसका बच्चा न पढ़े? सभी पढ़ाने की कोशिश करते हैं। आज भी पैसों का न होना सपनों को पूरा करने में कितना बाधक है ?
असर 2023 की रिपोर्ट अभी जनवरी के महीने में जारी हुई है। असर 2023 के डाटा पर शिक्षाविद अपनी-अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं। असर 2023 में युवाओं से उनकी शैक्षिक और व्यावसायिक आकांक्षाओ के बारे में पूछा गया था।
जिसमें यह जानकारी निकलकर आई कि 14-18 साल के 78% युवक एवं 76% युवतियां पढ़ाई पूरी करने के बाद कोई न कोई काम या नौकरी करना चाहते हैं। यह प्रतिशत बड़ा है इसमें गीता जैसे बेटी भी शामिल हो सकती है जो आगे कुछ बनना चाहते हैं लेकिन परिस्थितियाँ शायद उनके अनुकूल न हों। हम सबको इनके सपनों को पूरा करने में मदद करनी चाहिएं। रिपोर्ट से यह भी पता चला कि लगभग 20% से 22% युवा ऐसे भी है जो यह नहीं बता सके कि उन्हें आगे क्या करना है। हमें इनकी भी मदद करनी चाहिए ताकि वे भी सपने देख सकें और उसे पूरा करने की दिशा में अपना पहला कदम आगे बढ़ा सकें।
हाथरस जिले के एक दूसरे गाँव की मिलती-जुलती कहानी भी आपको बताना चाहता हूँ। गाँव में सर्वेक्षण पूरा होने के कुछ दिनों के बाद मैं रीचेक के दौरान एक घर पर पहुँचा था । वहाँ मेरी मुलाकात निशा से हुई। निशा की उम्र 16 वर्ष है और उसने कक्षा 8 तक पढ़ाई करने के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया है।
घर पर निशा की माँ से भी मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि निशा पढ़ने में तेज थी, लेकिन गाँव में आठवीं के बाद का स्कूल न होने से आगे पढ़ाई के लिए नामांकन नहीं करा पाई। पढ़ाई के लिए निजी स्कूल तो था लेकिन घर से काफी दूर था, वहाँ रोज आना-जाना लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं था। निजी स्कूल की फ़ीस भी ज्यादा थी।
निशा के पापा पहले दिल्ली में नौकरी करते थे लेकिन कोरोना बंदी के दौरान उनकी नौकरी चली गयी। अब वह घर पर ही रहकर मजदूरी का कार्य करते हैं। मैंने गाँव भ्रमण के दौरान देखा कि इस गाँव की अधिकांश लड़कियों ने आठवीं पढ़ने के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया है। सबने एक ही समस्या बताई, स्कूल गाँव में नहीं है, जो है वह काफी दूर है। दूर आना-जाना लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है।
बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा तो पता चला कि निशा को स्कूल छोड़े 2 साल हो गए है। अब उसकी भी घर पर रहने की आदत हो गयी है। वह घर के कामों में मदद करती है और आगे नहीं पढ़ना चाहती है। गाँव में एक महिला सिलाई सिखाती है। निशा शाम को कुछ घंटो के लिए सिलाई सीखने जाती हैं। अब वह सिलाई करना सीख भी गयी है।
भारत में (UDISE+ 2021-22 के अनुसार) प्राइमरी शिक्षा से उच्चतर प्राइमरी शिक्षा में लड़कियों की संक्रमण दर (Transition Rate) 93.3% तथा लड़कों की 93% है। उच्चतर प्राइमरी से सेकंडरी स्कूल में लड़कियों की संक्रमण दर (Transition Rate) 87.8% है तथा लड़कों की 89.7% है।
सेकंडरी स्कूल से हायर सेकण्ड्री में लड़कियों की संक्रमण दर(Transition Rate) 79.3 % है तथा लड़कों की 77.6% है। यह आँकड़े इंगित करते है कि प्राइमरी शिक्षा से उच्चतर माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक से सेकंडरी स्कूल तथा सेकंडरी स्कूल से हायर सेकेंडरी में संक्रमण दर (Transition Rate) में गिरावट है। कम संक्रमण दर से संकेत मिलता है कि छात्र स्कूल छोड़ रहे या उच्च स्तर पर आगे नहीं बढ़ रहे हैं।
असर 2023 रिपोर्ट में भी यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है उनका स्कूल छोड़ने का प्रतिशत बढ़ जाता है। असर 2023 रिपोर्ट से पता चलता है कि 14 साल के 3.9% युवा औपचारिक शिक्षा संस्थानों से बाहर हैं जबकि यह आँकड़ा 18 साल के युवाओं के लिए 32.6% है। असर 2023 में, जब 17-18 साल के युवाओं से पढ़ाई छोड़ने का कारण पूछा गया तो पता चला किलगभग 19% युवाओं का पढ़ाई में मन नहीं था।
18% ने आर्थिक समस्या, 17% ने पारिवारिक समस्या, 8% ने व्यावसायिक प्रशिक्षण में स्थानांतरित होने की वजह से तथा 7% ने औपचारिक शिक्षा संस्थान घर से दूर होने के वजह से पढ़ाई छोड़ी।
इन कहानियों और आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण करें तो हम पाते है कि अभी भी कुछ चीजें हैं जो सार्वभौमिक शिक्षा की उपलब्धि में बाधा डाल रही हैं। सरकारों को इनकी तत्काल पहचान करके दूर करना चाहिए। भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। हालाँकि, यह सुनिश्चित करने के लिए अभी भी कई नये कदम उठाने की जरुरत है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम का अस्तित्व में आना वास्तव में एक ऐतिहासिक कदम था। इसका फायदा प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकीकरण के रूप में मिला है। समुदाय में पर्याप्त संख्या में स्कूल खोले गए तथा अध्यापकों की नियुक्ति एवं अन्य कार्य किये गए। असर 2022 के अनुसार 6-14 आयु वर्ग के 98.4% बच्चों का नामाँकन स्कूलों में है।
नई शिक्षा नीति में भी बच्चों तथा युवाओं की पढ़ाई-लिखाई समावेशी और गुणवत्ता परख हो इसके लिए कई नए कदम सुझाये गए हैं। इन सुझावों को जल्द से जल्द अमल में लाना जरुरी है। बच्चों की पढ़ाई आगे न छूटे इसके लिए शिक्षा का अधिकार (आर.टी.आई ) का दायरा बढ़ाना भी एक अच्छा कदम हो सकता है। जिससे बच्चे अपने सपनों को पूरा करें तथा इन सपनों को पूरा करने में पारिवारिक बंदिशे तथा आर्थिक स्थिति बाधक न बन सकें।