दुनिया भर में भारत का अपना विशिष्ट स्थान है। दर्शन और वैचारिकी के स्तर पर भारत दुनिया के सबसे प्राचीन देशों में माना जाता है। यहाँ के नालंदा विश्वविद्यालय ने भारत को विश्वगुरु होने का गौरव दिलाया लेकिन हजारों साल की यात्राओं में भारत आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ता गया है। इस दौर में देशों की रैंकिंग के जो मानक हैं उनमें भारत का नंबर चिंताजनक रूप से नीचे होता गया है। बेशक इसके पीछे कुछ बुनियादी कारण हैं। मसलन बड़ी संख्या में बढ़ती बेरोजगारी, भुखमरी, बीमारी और अशिक्षा इसकी बुनियाद में हैं।
हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में लोगों ने अपने रोजगार और आजीविका के साधन खोये हैं। उनके ऊपर न केवल आर्थिक दबाव और ऋणग्रस्तता बढ़ी है बल्कि शोषण और उत्पीड़न भी बढ़ा है। जैसा कि हम जानते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हिस्सा असंगठित है। लोगों ने अपने रोजगार को स्वतःस्फूर्त रूप से चलाया है। इसके बावजूद यह न केवल निरंतर चलता रहा है बल्कि पीढ़ियों तक इससे सम्मानजनक ढंग से जीवन की गाड़ी आगे बढ़ती रही लेकिन अब असंगठित क्षेत्र पर सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा है।
छोटी-छोटी जगहों पर खुदरा व्यवसाय करनेवाले लोगों को लगातार उजाड़ा जा रहा है। जितनी तेजी से उन्हें उजाड़ा जा रहा है उतनी ही तेजी से दैत्याकार मॉल और बड़े प्रतिष्ठानों की संख्या बढ़ती जा रही है। छोटे दूकानदारों के खिलाफ षड्यंत्रकारी राजनीति की जा रही है। उन्हें कमजोर और बदनाम किया जा रहा है। इनमें सबसे ज्यादा आसान शिकार पटरी व्यवसायी हैं। इनके सिर पर कभी भी उजाड़े जाने का खतरा मँडराता रहता है। कभी भी इनके ऊपर डंडा चला दिया जाता है और इनके ठेले और दुकानों को जब्त कर लिया जाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अब यह आम बात हो चुकी है। कभी राजनीतिक काफ़िले के गुजरने के नाम पर और कभी सड़क को निरापद और साफ-सुथरा रखने के नाम पर उजाड़ दिया जाता है। लेकिन इसमें जो सबसे घृणित सच्चाई यह है कि प्रायः पटरी व्यवसायियों को अवैध वसूली के नाम पर उजाड़ा जाता है। जो लोग वसूली गैंग की जेब गरम करते हैं वे अपना रोजगार करते रहते हैं लेकिन जो लोग इसमें फिसड्डी रहते हैं उनकी पीठ गरम कर दी जाती है।
सच यह है कि शहर की अस्सी फीसदी स्थायी दुकानें अपना कुछ न कुछ विस्तार पटरियों पर किए हुये रहती हैं लेकिन उनके ऊपर किसी नेता का वरदहस्त होने के कारण उनको कोई कुछ नहीं कहता। यह अनायास नहीं है कि पिछले दस वर्षों में ज़्यादातर मध्यम व्यवसायी भाजपा के समर्थक और सहयोगी बन गए हैं।
लेकिन बिलकुल इसी तरह शहर के वेंडरों की किस्मत और रणनीति नहीं है। हालांकि वे भी सत्ता से अपनी नज़दीकियाँ जाहिर करने के लिए चंदा और सम्मान देते रहते हैं। उनके कोर वॉटर होने का भरोसा भी दिलाते हैं लेकिन फिर भी बेरहमी से उजाड़ दिये जाते हैं।
इस संबंध में हाल की घटना लंका थाने की है जहां पिछले डेढ़ महीने से S H O लंका द्वारा सर सुंदर लाल अस्पताल की दीवार से सटे दुकानदारों को मारा-पीटा गया हवालात में बंद किया गया। यही नहीं उनकी दुकानों को तोड़ा गया। इस प्रकार उन्हें अपनी आजीविका से रोका गया।
गौरतलब है कि स्ट्रीट वेंडर एक्ट 2014, उत्तर प्रदेश वेन्डर नियमावली 2017 तथा उत्तर प्रदेश शासन के विभिन्न शासनादेश के माध्यम से इन पटरी व्यवसायियों का सर्वेक्षण किया गया और उन्हें रजिस्टर्ड करते हुये वहाँ रोजगार करने की स्वीकृति दी गई। इन सबको बनारस में पीएम स्वनिधि लोन दिया गया ताकि ये लोग सुचारु तौर पर अपनी आजीविका कमा सकें। इसके बावजूद लंका पुलिस ने इनको उजाड़ दिया। जब इस विषय में नगर निगम से जानकारी मांगी गई कि इन लोगों को क्यों उत्पीड़ित किया जा रहा है? लेकिन नगर निगम ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। निगम के अधिकारी लंका के मामले में भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं।
इस उत्पीड़न के विरोध में स्ट्रीट वेंडरों ने विगत 14 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया है। इस विषय में गुमटी व्यवसायी समिति के अध्यक्ष और टाउन वेडिंग कमेटी के पूर्व सदस्य चिंतामणि सेठ ने बताया कि ‘वेंडर नरेंद्र मोदी जी के पीएम स्वनिधि लोन से प्राप्त पैसे से अंडा दूध चाय ब्रेड इत्यादि की गुमटी लगाते हैं। कई दशक से ये गुमटियां बीएचयू अस्पताल में भर्ती मरीजों और उनके तीमारदारों के लिए सस्ते खाने का अच्छा विकल्प हैं।’
सेठ कहते हैं ‘जब से नरेंद्र मोदी वाराणसी से सांसद बने हैं तब से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के बाहर ठेले पर सामान बेचने वालों के लिए अपना सामान बेचना कठिन हो गया है। 3 सितम्बर को उन्हें पुलिस द्वारा बर्बरतापूर्वक लाठी चला कर हटा दिया गया। यह पथ विक्रेता अधिनियम 2014 का स्पष्ट उल्लंघन है। 9 अक्टूबर को भेलूपुर जोनल कार्यालय के बाहर धरने के बाद जोनल अधिकारी ने मान लिया था कि अगले दिन से ठेले लगेंगे किन्तु फिर भी लंका थाने की पुलिस ठेले नहीं लगने दे रही है। इसलिए पथ विक्रेता अधिनियम 2014 के तहत अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए आज से हमलोग एक अनिश्चितकालीन धरने की शुरुआत कर रहे हैं।’
धरना स्थल पर समर्थन देने पंहुचे प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मैग्सेसे पुरस्कार विजेता डॉ संदीप पांडेय ने कहा कि ‘2014 से ही झूठे सब्जबाग में फंसा बनारस अपने ही जनप्रतिनिधि के वीआईपी होने का भुगतान कर रहा है। धरने पर बैठे ये लोग अपनी आजीविका को अपने बलबूते पर चला रहे हैं। सरकार तो इनको नौकरी दे नहीं सकती और न ही इनके व्यवसाय के लिए स्थान दे सकती है, मगर इनको उजाड़ने का काम तेजी से चला रही है। सरकार की यह कोशिश उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने और लघु व्यापार को चौपट करने की कोशिश के रूप में भी देखी जानी चाहिए। क्योंकि यदि इनका व्यवसाय रुकेगा तभी तो लोग महंगे रेस्टोरेंट और शोरूम को लाभ पहुंचाने के लिए मजबूर रहेंगे। इन छोटे वेंडरों की आजीविका छिन जाने के बाद इनका भविष्य क्या होगा? इनके बच्चो का भविष्य क्या होगा? इस मामले में सरकार का क्या पक्ष है? हम ये सवाल उठाना चाहते है। भुखमरी के आंकड़ों में हम 105 वें नंबर पर पंहुच गए हैं। कोरोना के बाद लघु और मध्यम उद्योगों के लिए आर्थिक हालात बद से बदतर हुए हैं। अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ी है। ऐसे में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में ही वेंडर पुलिस उत्पीड़न का शिकार होगा तो फिर मैं पूछता हूँ कि इन लोगों को क्या करना चाहिए?
यह भी पढ़ें –मिर्ज़ापुर में सिलकोसिस : लाखों लोग शिकार लेकिन इलाज की कोई पॉलिसी नहीं
क्या कहता है स्ट्रीट वेंडर अधिनियम
1-अधिनियम की धारा 3 कि उप धारा 3 में यह प्रावधान है कि जबतक स्ट्रीट वेंडरों को वेन्डिग जोन बनाकर विक्रय प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता है तब तक किसी भी स्ट्रीट वेंडरों को हटाया नहीं जाएगा।
2- एक्ट की धारा 3( क) में यह प्राविधान है कि जिस स्थान पर स्ट्रीट वेंडरों का सर्वेक्षण किया गया है उक्त स्थान को नो वेन्डिग जोन घोषित नहीं किया जायेगा व वैधानिक रूप से वेन्डिग जोन है।
3- एक्ट की धारा ( य ख VI ) में यह प्रावधान है कि जो पथ विक्रेता 50 वर्षों से जहां वेन्डिग का कार्य करते रहें है उनको वहां विरासत बाजार बनाया जाएगा उनका विस्थापन नहीं किया जायेगा।
4- अधिनियम की धारा 29 में यह प्रावधान किया है कि स्ट्रीट वेंडरों को पुलिस व अन्य अधिकारियों के उत्पीड़न से संरक्षण प्रदान करती है और पुलिस को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं दिया गया है।
उक्त कानून के आलोक में वेंडरो की ओर से 5 सूत्री माँग प्रस्तुत की गई
1- लंका नरिया मार्ग पर बीएचयू अस्पताल के बाहर दीवाल से सटे उक्त क्षेत्र को एक्ट 2014 के तहत प्राकृतिक बाजार के तौर पर मान्यता देते हुए वेन्डिग जोन घोषित करें।
2- वेन्डरों का आजीविका शासन प्रशासन कि जिम्मेदारी है।
पुलिस उत्पीड़न को रोकने के लिए आवश्यक पत्राचार करते हुए तत्काल प्रभाव से आजीविका को ध्यान में रखते हुए दुकान लगावने की व्यवस्था करें।
4- वेन्डिग जोन आवंटन के अनुपस्थिति में वेन्डर विस्थापन कानून के अनुसार एक आविधिक और गलत प्रक्रिया है।
5 – लंका नरिया मार्ग पर दुकानदारों को अवैध प्रकिया के तहत हटाने वाले अधिकारियों और दस्ते पर समुचित अनुशासनात्मक कार्रवाई करें।