एक अक्टूबर को बरेली कोर्ट ने यौन उत्पीड़न की शिकायत के मामले में एक मुस्लिम व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। फैसले में न्यायमूर्ति ने टिप्पणी की कि यह लव जिहाद का मामला है, जिसे पुलिस उस तरह से पेश करने में विफल रही है। लड़की हिंदू थी। अदालती कार्यवाही के दौरान लड़की ने इस आधार पर शिकायत वापस ले ली कि उसे हिंदुत्व समूह के दबाव में शिकायत दर्ज करानी पड़ी। माननीय न्यायाधीश को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं आया; शायद सामाजिक प्रचार उनके फैसले को प्रभावित कर रहा था। न्यायाधीश दिवाकर ने अपने फैसले में टिप्पणी की कि मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को शादी करने के लिए निशाना बनाते हैं। फैसले में आगे कहा गया, ‘सरल शब्दों में, लव जिहाद मुस्लिम पुरुषों द्वारा गैर-मुस्लिम समुदायों की महिलाओं को प्यार का नाटक करके और उनसे शादी करके इस्लाम में परिवर्तित करने की प्रथा है। लव जिहाद के माध्यम से अवैध धर्मांतरण किसी विशेष धर्म के कुछ अराजक तत्वों द्वारा किया जाता है या ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है या किसी साजिश में शामिल होता है। लव जिहाद के लिए बहुत बड़ी रकम की जरूरत होती है। इसलिए, लव जिहाद में विदेशी फंडिंग की बात से इनकार नहीं किया जा सकता है।’ लव जिहाद में विदेशी फंडिंग एक नई अवधारणा है; काश जज ने उस देश का नाम बताया होता जो इसके लिए पैसे भेज रहा है।
जबकि लव जिहाद के इर्द-गिर्द प्रचार में जिहाद श्रृंखला में सबसे पहले था, अब निश्चित रूप से कई जिहाद हैं जिन्हें लोकप्रिय बनाया जा रहा है, भूमि जिहाद, यूपीएससी जिहाद, बाढ़ जिहाद, कोरोना जिहाद आदि। गोदी मीडिया में सांप्रदायिक एंकर हैं, जो जिहाद के प्रकारों को सारणीबद्ध करने में माहिर हैं। अगर मुसलमान किसी घटना के निकट या दूर के रास्ते में हैं। यह धार्मिक समुदाय को बदनाम करने के लिए तुच्छ मुद्दों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का एक क्लासिक मामला है, जिसे ‘विदेशी धर्म’ से संबंधित माना जाता है और इसे ‘शत्रु अन्य’ के रूप में प्रस्तुत करने के लिए गुप्त और खुले तरीके से निशाना बनाया जाता है। ‘शत्रु अन्य’ का यह निर्माण सांप्रदायिक राजनीति, हिंदू राष्ट्रवादी राजनीति की जड़ में है, जो भारत में सामाजिक परिदृश्य पर हावी है।
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लव जिहाद के बारे में प्रचार बहुत पुराना नहीं है। कुछ दशक पहले केरल के कुछ ईसाई बिशपों ने इस बदनामी की शुरुआत की थी और हिंदू राष्ट्रवादियों ने इसे और भी जोर-शोर से उठाया। चूंकि उनका प्रचार तंत्र आरएसएस शाखाओं से लेकर आरएसएस संचालित स्कूलों, मीडिया के कुछ हिस्सों, सोशल मीडिया और खासकर आईटी सेल के समानांतर सोशल मीडिया तक में अच्छी तरह से काम करता है। इस प्रचार की जांच की गई कि हिंदू लड़कियों को लुभाने के लिए मुस्लिम युवाओं को फंड देने वाला एक संगठन है, जो एक धोखा है।
लव जिहाद के उद्देश्य के रूप में कई चीजों को जिम्मेदार ठहराया गया है। पहला जनसांख्यिकीय है। अब तक का प्रमुख प्रचार यह है कि मुसलमानों की ‘चार पत्नियाँ और बीस बच्चे’ होते हैं और वे जल्द ही हिंदुओं की आबादी से आगे निकल जाएंगे। लव जिहाद के जरिए हिंदू लड़कियों का धर्म परिवर्तन और बच्चे पैदा करना इसमें जुड़ गया है। इसके अलावा एक और पहलू जो इसमें जुड़ गया है, वह यह है कि इन लड़कियों को इस्लामिक स्टेट का हिस्सा बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे उनके लिए लड़ सकें।
लव जिहाद प्रचार का मुख्य उद्देश्य पितृसत्तात्मक मूल्यों से जुड़ा होना है। पितृसत्ता, धर्म और राष्ट्रवाद आज के समय में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सांप्रदायिकता के नाम पर अत्याचार और बलात्कार की घटनाओं में ;लगातार वृद्धि हो रही है। यह वृद्धि सांप्रदायिक राजनीति के उदय के समानांतर चलती है।
तीस्ता सीतलवाड़ बताती हैं, ‘लक्षित समुदायों की महिलाओं को समुदायों के ‘सम्मान के प्रतीक’ के रूप में चुना जाता है, जब उन पर हिंसा की भयावहता और पाशविकता का हमला किया जाता है। विभाजन से संबंधित हिंसा- 1946-47 में, नेल्ली असम में 1983; दिल्ली में 1984, बॉम्बे में 1992-93; गुजरात में 2002 और हाल ही में मणिपुर में 2023 में देखा। हिंसा होने के मुख्य कारण वहाँ की समाजशास्त्रीय, ऐतिहासिक और वैचारिक पृष्ठ भूमि है। यह हमेशा याद रखना चाहिए कि भाजपा पर चरम दक्षिणपंथी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिंदू महासभा के वैचारिकता का गहरा असर है। यह संगठन धर्म का लगातार सैन्यीकरण कर रहा है। साथ ही महिलाओं को नियंत्रित करने के लिए उसकी लैंगिकता को भी कब्जे में रखने की पूरी कोशिश कर रहा है।’
यहां हिंदू राष्ट्रवाद के अग्रणी विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने शिवाजी की घोर आलोचना की थी, जब कल्याण के मुस्लिम राज्यपाल की पुत्रवधू को लूटने वाली सेना द्वारा उनके पास लाया गया था, जिसके बाद शिवाजी ने उन्हें सम्मान के साथ वापस भेजने का आदेश दिया था। इस घटना पर सावरकर का कहना था कि उस महिला से बदला लेना था न कि सम्मान के साथ वापस भेजना था। आज के समय आरएसएस लव जिहाद को लेकर यही कर रही है।
‘लव जिहाद’ के बढ़ते शोर के मद्देनजर, इतिहासकार चारु गुप्ता ने कहा कि यह महिलाओं के जीवन को नियंत्रित करने का एक तंत्र है, ‘हिंदू दक्षिणपंथियों द्वारा यह झूठा दावा कि लव जिहाद संगठन है जो हिंदू महिलाओं को प्रेम की झूठी अभिव्यक्ति के माध्यम से इस्लाम में धर्मांतरण के लिए मजबूर कर रहा है, 1920 में कथित अपहरण के खिलाफ प्रचार अभियान जैसा ही है। चाहे 1920 हो या 2009, हिंदू पितृसत्तात्मक धारणाएं ऐसे अभियानों में गहराई से जुड़ी हुई हैं। मुस्लिमों द्वारा अनेक असहाय पीड़ित और सताई गई हिंदू महिलाओं की कहानियाँ बढ़-चढ़कर प्रस्तुत की जाती हैं। महिलाओं द्वारा अपनई पसंद के जीवन जीने के अधिकारों और संभावनाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है।’
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भाई-बहन के हिन्दू त्योहारों जैसे रक्षाबंधन के अवसरों पर बजरंग दल की सतर्कता से साथ वे हिंदू घरों में जाते हैं और माता-पिता से कहते हैं कि वे अपनी बेटियों पर ‘नजर’ रखें। इस मुद्दे पर दुष्प्रचार जोर पकड़ रहा है और समाज के विभिन्न वर्गों को प्रभावित कर रहा है। ऐसे कई मामले हैं, जहां मुस्लिम युवाओं पर हमला किया गया है।
प्रियंका टोडी और रिजवान खान की कहानी रिजवान खान की दुखद मौत के साथ समाप्त हुई। कभी-कभी इसका उल्टा भी सच हो जाता है, जब अंकित भंडारी को उस मुस्लिम लड़की के रिश्तेदारों द्वारा मार दिया जाता है, जिससे वह प्यार करता था। हदिया, अखिला अरुणन का मामले बहुत ही चौंकाने वालए हैं, जिसने इस्लाम धर्म अपना लिया था। उसने मुस्लिम दोस्तों के साथ बातचीत कर इस्लाम धर्म को अपनाया था। बाद में उसने शफीक जहां से शादी कर ली। उसके पिता को अदालत ने इस आधार पर उसकी कस्टडी दे दी कि उसे बहकाया गया है और उसे आईएसआईएस के काम के लिए भर्ती किया जाएगा। वह सुप्रीम कोर्ट गई, जहां उसकी गवाही सुनी गई और उसे उसके पति के पास वापस भेज दिया गया। केरल में कई योग केंद्र खुल गए हैं, जहाँ मुस्लिम से शादी करने की इच्छा रखने वाली हिंदू लड़कियों को यह समझाने की कोशिश की जाती है कि वे वापस हिंदू धर्म में आ जाएँ और मुस्लिम व्यक्ति के प्रति अपने प्यार को त्याग दें। कई लड़कियों ने शिकायत की है कि उनके साथ जबरदस्ती और ब्लैकमेल किया जा रहा है।
कोर्ट द्वारा इस तरह के फैसले आने से न्यायधीशों की घातक मानसिकता का पता चलता है। यही वे फैसले हैं जो समाज में लव जिहाद के प्रति आक्रोश पैदा कर रहे हैं। ऐसे मामले में न्यायधीशों को तटस्थ होकर ठोस सबूतों के आधार पर फैसले देना चाहिए ताकि समाज की सामाजिकता के साथ कानून पर भी विश्वास बना रहे।