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नहीं रहे विनोद दुआ

विनोद दुआ पत्रकारिता के एक चलते-फिरते संस्थान थे और उनके अनुभवों का दायरा बहुत व्यापक था। उन्हें उनकी सरोकारपूर्ण पत्रकारिता, निर्भीकता और बेबाकी के लिए भी हमेशा याद किया जाएगा। हिन्दी पत्रकारिता के चीखने-चिल्लाने के दौर में उन को एक संयमित, शिष्ट और संतुलित पत्रकार के रूप में भी याद किया जाएगा।

टेलीविज़न पर पत्रकारिता के इतिहास की एक महत्वपूर्ण शख्सियत विनोद दुआ अब हमारे बीच नहीं रहे। सड़सठ वर्ष के विनोद दुआ पिछले कुछ अर्से से बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे। एनडीटीवी पर आने वाले उनके कई कार्यक्रम अत्यंत लोकप्रिय रहे जिनमें विनोद दुआ लाइव और जायका इंडिया का खासतौर पर याद किए जाते हैं। वे पत्रकारिता के एक चलते-फिरते संस्थान थे और उनके अनुभवों का दायरा बहुत व्यापक था। उन्हें उनकी सरोकारपूर्ण पत्रकारिता, निर्भीकता और बेबाकी के लिए भी हमेशा याद किया जाएगा। हिन्दी पत्रकारिता के चीखने-चिल्लाने के दौर में विनोद दुआ को एक संयमित, शिष्ट और संतुलित पत्रकार के रूप में भी याद किया जाएगा। एक तरह से कहा जा सकता है कि कॉर्पोरेट घरानों के ज़रखरीद, मूढ़ और लोकतन्त्र के लिए घातक बन चुके पत्रकारों के बरखिलाफ़ विनोद दुआ एक ऐसी आवाज थे जो दबे-कुचले लोगों के लिए समर्पित थी।

11 मार्च 1954 को दिल्ली की एक शरणार्थी कॉलोनी में जन्मे दुआ ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी ए और एम ए किया। उन्होंने दूरदर्शन और एनडीटीवी इंडिया में काम किया। 1996 में, वह पत्रकारिता पुरस्कार में सम्मानित रामनाथ गोयनका उत्कृष्टता पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार बने। उन्हें भारत सरकार द्वारा 2008 में पत्रकारिता के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 2017 में उन्हें पत्रकारिता के लिए रेड इंक अवार्ड दिया गया था।

विनोद दुआ के माता-पिता सरायकी समुदाय से ताल्लुक रखते थे और जो 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, डेरा इस्माइल खान, खैबर पख्तूनख्वा से आए थे। अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में उन्होंने कई गायन और वाद-विवाद कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। उन्होंने 1980 के दशक के मध्य तक थिएटर भी किया। . वह एक स्ट्रीट थिएटर ग्रुप, थिएटर यूनियन के सदस्य थे, जो दहेज जैसे सामाजिक मुद्दों के खिलाफ नाटकों का निर्माण और प्रदर्शन करता था।

हंसराज कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से साहित्य में मास्टर डिग्री प्राप्त की। नवंबर 1974 में, विनोद ने युवा मंच में अपना पहला टेलीविजन प्रदर्शन किया, जो एक हिंदी भाषा में युवाओं के लिए एक कार्यक्रम था, जिसे दूरदर्शन (जिसे पहले दिल्ली टेलीविजन कहा जाता था) पर प्रसारित किया गया था।

दूरदर्शन के दिनों में विनोद दुआ

1975 में युवा जन नामक कार्यक्रम की एंकरिंग विनोद दुआ ने किया था। यह रायपुर, मुजफ्फरपुर और जयपुर के युवाओं के लिए सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न एक्सपेरिमेंट (SITE) के लिए तैयार किया जाने वाला एक शो था। उसी वर्ष, उन्होंने युवाओं के लिए एक अन्य कार्यक्रम जवाँ तरंग की एंकरिंग शुरू की।

1981 में विनोद दुआ ने रविवार की सुबह एक पारिवारिक पत्रिका आप के लिए की एंकरिंग शुरू की। इसे वे 1984 तक करते रहे। उन्होंने प्रणय रॉय के साथ 1984 में दूरदर्शन पर चुनाव विश्लेषण शुरू किया। आगे चलकर उन्होंने कई अन्य टेलीविजन चैनलों के लिए चुनाव विश्लेषण कार्यक्रम बनाए।

1985 में उन्होंने जनवाणी (पीपुल्स वॉयस) नामक कार्यक्रम की एंकरिंग शुरू की। यह एक ऐसा शो था जहां आम लोगों को सीधे मंत्रियों से सवाल करने का मौका मिला था। यह शो अपनी तरह का पहला शो था। विनोद 1987 में वे इसके मुख्य निर्माता के रूप में इंडिया टुडे समूह के टीवी टुडे में शामिल हुए।

करंट अफेयर्स, बजट विश्लेषण कार्यक्रमों और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण करने के लिए उन्होंने 1988 में अपनी प्रोडक्शन कंपनी द कम्युनिकेशन ग्रुप लॉन्च किया। विनोद दुआ ने 1992 में ज़ी टीवी चैनल के लिए चक्रव्यूह नामक कार्यक्रम बनाया। 1992 और 1996 के बीच उन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारित एक साप्ताहिक करंट अफेयर्स पत्रिका परख का निर्माण किया। उन्होंने तसवीर-ए-हिंद नामक कार्यक्रम बनाया जो डीडी-थ्री का लोकप्रिय कार्यक्रम था।

आगे चलकर उन्होंने सोनी एंटरटेनमेंट चैनल के शो चुनाव चुनौती की एंकरिंग की। वह साल 2000 से 2003 तक सहारा टीवी से जुड़े रहे। इसके लिए वे प्रतिदिन एंकर करते थे।

खाते तो थे ही ललचाते भी थे

विनोद दुआ ने एनडीटीवी इंडिया के कार्यक्रम ज़ायका इंडिया का को अत्यंत लोकप्रिय बना दिया।  उन्होंने इसके लिए देश के अनेक शहरों की यात्रा की। शहरी मोहल्लों, बाज़ारों के नामी-गिरामी होटलों-रेस्टुरेंटों और गली-कूँचों दुकानों से लेकर राजमार्गों और सड़कों के किनारे चलने वाले ढाबों पर बनने वाले व्यंजनों को इतने चटखारे लेकर चखा और खाया कि लगता था वह व्यंजन टीवी स्क्रीन से निकल कर हम तक आना चाहिए।

वे जीवन के आखिरी दौर तक सक्रिय रहे। उन्होंने द वायर हिंदी के लिए जन गण मन की बात की एंकरिंग शुरू की। यह 10 मिनट का करंट अफेयर्स कार्यक्रम है।  यह कार्यक्रम अपनी बेबाकी और निडरता के लिए जाना गया। इसमें अक्सर नरेंद्र मोदी सरकार की तथ्यात्मक आलोचना होती थी। विनोद दुआ का अंदाज उनके दर्शकों को हमेशा रास आया।

विनोद दुआ न केवल एक बहुत बड़े पत्रकार थे।  उनका काम संस्थागत और स्वतंत्र पत्रकारों की उस जमात के लिए एक मानक बना रहेगा जो सार्थक और जनपक्षधर पत्रकारिता करते हैं और तमाम विपरीतताओं में भी जोखिम उठाकर पत्रकारिता करने का माद्दा रखते हैं।

उनको गाँव के लोग की विनम्र श्रद्धांजलि!

अपर्णा
अपर्णा
अपर्णा गाँव के लोग की संस्थापक और कार्यकारी संपादक हैं।
1 COMMENT
  1. बहुत ही दुखद समाचार। विनोद दुआ का इंतकाल स्वतंत्र, निर्भीक, सच्ची और जन सरोकार वाली पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षति है जिसकी भरपाई अत्यंत कठिन है। वे हजारों युवा पत्रकारों के लिए प्रेरणा के स्रोत और मिसाल थे। उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।

    आपने संक्षेप में किंतु बहुत ही कुशलता से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला है। आपको भी साधुवाद।

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