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क्या सचिन पायलट के पास अपनी राजनीतिक हैसियत को सिद्ध करने का यही उचित अवसर है?

कांग्रेस के अंदर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बाद देश में लोकप्रियता की बात करें तो राजस्थान के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट का नाम प्रमुखता से सुनाई देता है। बल्कि व्यक्तिगत राजनीतिक लोकप्रियता में देश के युवाओं में सचिन पायलट राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से भी ऊपर दिखाई देते […]

कांग्रेस के अंदर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के बाद देश में लोकप्रियता की बात करें तो राजस्थान के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट का नाम प्रमुखता से सुनाई देता है। बल्कि व्यक्तिगत राजनीतिक लोकप्रियता में देश के युवाओं में सचिन पायलट राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से भी ऊपर दिखाई देते हैं। यह भी सही है कि सचिन पायलट देश के युवाओं के सबसे पसंदीदा नेता हैं। युवाओं के भीतर सचिन पायलट की लोकप्रियता का आकलन, पायलट के राजनीतिक दौरे के समय युवाओं की जुटी भीड़ से भी नहीं लगाया जा सकता है, असली आकलन तब होगा जब उसका परिणाम चुनाव में कांग्रेस की जीत के रूप में तब्दील होगा। क्या विकट परिस्थितियों में सचिन पायलट कांग्रेस को जीत दिलवा सकते हैं ? शायद इसका जवाब पायलट समर्थक राजस्थान के संदर्भ में दे सकते हैं। 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सचिन पायलट के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए बड़ी कामयाबी मिली थी, कांग्रेस ने भाजपा को हराकर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई थी, लेकिन उसका श्रेय अकेले सचिन पायलट को नहीं मिल कर अशोक गहलोत सहित अन्य नेताओं ने भी लिया बल्कि सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया, और सिद्ध किया कि प्रदेश में कांग्रेस को मिली सफलता का कारण अकेले सचिन पायलट नहीं थे।

[bs-quote quote=”उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट यह सिद्ध करके बता सकते हैं, यदि वह इस चुनौती को स्वीकार करें तो, क्योंकि उत्तर प्रदेश के एक बड़े क्षेत्र में सचिन पायलट का अपना प्रभाव मौजूद है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में सचिन पायलट का प्रभाव कांग्रेस को ताकत दे सकता है, और सचिन पायलट पश्चिम उत्तर प्रदेश में मेहनत करते हुए भी दिखाई दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी का विजन और सचिन पायलट की मेहनत रंग ला सकती है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

 

2022 से पहले यदि 2018 की बात करें तो, कांग्रेस के पास राष्ट्रीय स्तर पर, सचिन पायलट के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया जतिन प्रसाद सुष्मिता सिंह देव और आरपीएन सिंह जैसे युवा कद्दावर नेता मौजूद थे, लेकिन आज कांग्रेस के पास अकेले सचिन पायलट युवा कद्दावर नेता बच गए हैं, और शायद यही बात है कि सचिन पायलट के सामने अपने आप को राजनीतिक हैसियत वाला नेता सिद्ध करने की चुनौती है, कांग्रेस संकट के दौर से गुजर रही है यह चर्चा देश के राजनीतिक गलियारों में लंबे समय से हो रही है, कांग्रेस के संकट की घड़ी में कांग्रेस का साथ देना किसी भी बड़े नेता की बड़ी उपलब्धि है, प्रमाण कांग्रेस के प्रति और गांधी परिवार के प्रति वफादारी का देना नहीं है बल्कि प्रमाण इस बात का देना है की कांग्रेस को संकट से कैसे निकाला जाए, और यह अवसर सचिन पायलट के पास मौजूद है जब वह सिद्ध कर सकते हैं कि उनमें कांग्रेस को संकट की घड़ी से उभारने की कूबत है।
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट यह सिद्ध करके बता सकते हैं, यदि वह इस चुनौती को स्वीकार करें तो, क्योंकि उत्तर प्रदेश के एक बड़े क्षेत्र में सचिन पायलट का अपना प्रभाव मौजूद है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में सचिन पायलट का प्रभाव कांग्रेस को ताकत दे सकता है, और सचिन पायलट पश्चिम उत्तर प्रदेश में मेहनत करते हुए भी दिखाई दे रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी का विजन और सचिन पायलट की मेहनत रंग ला सकती है।

यदि पश्चिम उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सफल होती है तो इसकी क्रेडिट सचिन पायलट को मिलेगी या नहीं, इस पर भी सफलता के बाद सवाल खड़ा हो सकता है क्योंकि उत्तर प्रदेश में लंबे समय से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खास सिपहसालार जुबेर खान और धीरज गुर्जर कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं, हां यह बात अलग है कि जुबेर खान लगभग दो दशक से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव रहते हुए उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी के रूप में काम कर रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में सफलता के नाम पर, जुबेर खान का प्रभाव अभी तक नजर नहीं आया।
बात पते की यही है की अपनी राजनैतिक हैसियत बताने के लिए सचिन पायलट के पास पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव मौजूद हैं।

 

देवेंद्र यादव कोटा स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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