Friday, March 29, 2024
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शिक्षकों को पढ़ाने दें बिहार के हिटलर महोदय(डायरी, 29 जनवरी 2022)

पढ़ना अच्छा लगता है। बचपन में उबाऊपन भी आता था और किशोरावस्था में तो पढ़ाई एकदम से बोझ लगने लगा था। हालांकि इंटर के बाद पढ़ने की इच्छा जाग उठी थी। मतलब यह कि मैट्रिक करने के दो साल तक पढ़ने का मन नहीं के बराबर करता था। दरअसल, उन दिनों पापा ने अल्टीमेटम दे […]

पढ़ना अच्छा लगता है। बचपन में उबाऊपन भी आता था और किशोरावस्था में तो पढ़ाई एकदम से बोझ लगने लगा था। हालांकि इंटर के बाद पढ़ने की इच्छा जाग उठी थी। मतलब यह कि मैट्रिक करने के दो साल तक पढ़ने का मन नहीं के बराबर करता था। दरअसल, उन दिनों पापा ने अल्टीमेटम दे रखा था कि पढ़-लिखकर सरकारी नौकरी करनी है तो पढ़ो, वर्ना पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। जैसे भैया ने अपना बिजनेस शुरू कर दिया है, तुम भी कर लो। लेकिन मैं तो पढ़नेवालों में था। लेकिन पापा की हालत से परिचित था और इतना तो जानता ही था कि बिना कमाये पढ़ाई नहीं हो सकेगी। तो हुआ यह कि जैसे-जैसे लोग बताते गए, करता चला गया। लोगों ने कहा कि टाइपिंग और शार्टहैंड सीख लो तो सरकारी नौकरी मिल सकती है। मैंने वह भी कर लिया। लेकिन सरकारी नौकरी को लेकर चाव नहीं था तो इसे बीच में ही छोड़ दिया और फिर इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए तैयारी करने लगा। गणित में ठीक-ठाक था और फिजिक्स-केमिस्ट्री पर भी पकड़ अच्छी थी।
उन दिनों नाम के वास्ते ही कहिए कि मैंने अनिसाबाद के रामलखन सिंह यादव कालेज में इंटर में दाखिला ले लिया था। यह कालेज मगध विश्वविद्यालय के तहत आता है। वहां पढ़ाई नहीं होती थी। हालांकि शिक्षक अवश्य थे। एक मिथिलेश कुमार सिंह जो कि गणित पढ़ाते थे, अपना खर्चा ट्यूशन पढ़ाकर निकालते थे। दरअसल उस कॉलेज के सभी शिक्षकों को सरकार हर महीने तनख्वाह नहीं देती थी। कॉलेज को सरकार की ओर से अनुदान मिलता था और उसके ही सहारे शिक्षकों से लेकर चपरासी विजय यादव तक का खर्च निकलता था। महीनों तक वे बिना वेतन के काम करते थे।

[bs-quote quote=”बिहार का राजा हिटलर से कम नहीं है। एक प्रमाण है राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना, जिसमें राजा के आदेश पर विभाग ने राज्य के सभी स्कूली शिक्षकों से शराब पीनेवालों और और बेचनेवालों पर निगरानी रखने को कहा है। यह पहली दफा नहीं है जब स्कूली शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्य सौंपे गए हैं। लेकिन इस बार तो राजा ने हद ही कर दी है। इसको ऐसे समझिए कि बिहार के हर गांव-शहर में शराब उपलब्ध है।” style=”style-2″ align=”center” color=”” author_name=”” author_job=”” author_avatar=”” author_link=””][/bs-quote]

तो इंटर के पाठ्यक्रम की पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी नहीं होने की अनेक वजहें थीं। इसी बीच मेरी शादी भी हो गई। फिर तो पढ़ाई से अधिक पत्नी के साथ जीवन जीने में मन रमने लगा। लेकिन यह खुमारी भी बहुत जल्दी उतर गयी और मैं वापस अपनी पढ़ाई में जुट गया।
दरअसल अपनी बात कहने के पीछे मेरा आशय यह है कि बिहार में दलित और पिछड़े वर्ग के परिवारों के बच्चे मेरे जैसे ही होते हैं। उनके पास मजबूत वित्तीय अधिसंरचना नहीं होती है और होती भी है तो माता-पिता निवेश नहीं करना चाहते। मसलन, मेरे ही पिता यदि चाहते तो एक-दो कट्ठा जमीन बेचकर मुझे इंजीनियरिंग काॅलेज में दाखिला दिला सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं किया।

 तो दलित और पिछड़ा वर्ग के बच्चों के पास बहुत सारे संकट होते हैं। एक उदाहरण तो मेरे ही संकट हैं। ऐसे में भी दलित और पिछड़े वर्ग के बच्चे पढ़ने का जोखिम उठाते हैं तो उनकी जेहन में सरकारी नौकरी का ही ख्याल रहता है। सरकारी नौकरी भी किस तरह की, यह चिंतनीय सवाल है। होता यह है कि वे किसी भी तरह की नौकरी करने को तैयार हो जाते हैं। ग्रेजुएट बच्चे चपरासी तक की नौकरी करने के लिए लालायित रहते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रहती है दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों के मामले में। अभी जो रेलवे भर्ती बोर्ड परीक्षाओं को लेकर बिहार के युवाओं में आक्रोश है, उसके पीछे की पृष्ठभूमि कमोबेश यही है।

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मैं तो खबरों को समाज का दर्पण मानता हूं। बिहार के पिछड़ेपन को बताने के लिए किसी आंकड़े की आवश्यकता नहीं है। बस वहां की खबरों को देखिए। कल की खबर है कि नवादा जिले के काशीचक थाने के भट्ठा गांव में तीन साल के बच्चे आलोक की हत्या कर दी गयी। हत्या की वजह से आप बिहार में गरीबी का हाल समझ सकते हैं। दरअसल हुआ यह कि आलोक अपने नाना जयचंद महतो के घर तीन दिन पहले ही आया था। उसे अपराधियों ने किडनैप कर लिया और उसकी फिरौती के लिए पांच लाख रुपए की मांग करने लगे। परिजन रुपए देने की स्थिति में नहीं थे तो उन्होंने पुलिस का सहारा लिया। अपराधियों ने मासूम आलोक की हत्या कर दी।
अब एक खबर और देखिए। वहां बक्सर जिले में जहरीली शराब से मरनेवालाें की संख्या छह हो गई है। जिला प्रशासन यह मानने से इंकार कर रहा है कि लोग जहरीली शराब पीकर मरे हैं। उसके मुताबिक जब-तक पोस्टमार्टम की रपट सामने नहीं आ जाती है तब-तक कुछ नहीं कहा जा सकता है। लेकिन साथ ही मुरार थाना, जिसके इलाके में यह घटना घटित हुई है, उसके थाना प्रभारी मनोरंजन कुमार, दारोगा राजेश कुमार और चौकीदार हरिनारायण को निलंबित कर दिया गया है। अब यह सवाल जिला प्रशासन से जरूर पूछा जाना चाहिए कि यदि जहरीली शराब मौत की वजह नहीं है तो इन कर्मियों को निलंबित किस गुनाह के लिए किया गया?

खैर, बिहार का राजा हिटलर से कम नहीं है। एक प्रमाण है राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना, जिसमें राजा के आदेश पर विभाग ने राज्य के सभी स्कूली शिक्षकों से शराब पीनेवालों और और बेचनेवालों पर निगरानी रखने को कहा है। यह पहली दफा नहीं है जब स्कूली शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्य सौंपे गए हैं। लेकिन इस बार तो राजा ने हद ही कर दी है। इसको ऐसे समझिए कि बिहार के हर गांव-शहर में शराब उपलब्ध है। एक समानांतर व्यवस्था खड़ी हो गई है। गांवों में कौन शराब बेचता है और कौन पीता है, यह सब जानते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं रहती है। मैं तो अपनी बात करता हूं। मेरी जेहन में वे सभी हैं जो बिना पीये एक दिन भी नहीं रह सकते। मैं तो बेचनेवालों को भी जानता हूं। लेकिन मैं किससे कहूं और यदि मान लिजीए कि मैंने साहस कर भी दिया तो उसके बाद जो मेरे साथ और मेरे परिजनों के साथ जो झगड़ा-झंझट होगा तो हमारा साथ कौन देगा। बिहार पुलिस को भी नीतीश कुमार ने बर्बाद करके रख दिया है। एक उदाहरण देखिए। पटना में बिहार पुलिस मुख्यालय को सरदार पटेल स्मारक भवन में स्थानांतरित कर दिया गया है। अब इसी बिल्डिंग में अन्य विभागों को भी जगह दे दी गयी है। तो होता यह है कि इमारत की सुरक्षा दांव पर है। बिहार पुलिस के आला अधिकारी इस बात को लेकर चिंतित हैं और राजा यानी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कान में तेल डालकर सोए हैं।
खैर, मैं यह सोच रहा हूं कि अब यदि कोई गांव में कोई शराब पीनेवाला या बेचनेवाला धराएगा तब सबसे पहले लोग शिक्षकों पर ही शक करेंगे कि उसने ही पुलिस को सूचना दी होगी। मास्टर होकर मुखबिरी करता है और इस आरोप में उसके साथ जो होगा, वह अकल्पनीय ही है। हो सकता है कि किसी को मारपीट करके छोड़ दिया जाएगा या फिर किसी को गाली देकर। लेकिन अति तो कुछ भी हो सकता है। अब बेचारे शिक्षक पढ़ाएंगे या मुखबिरी करेंगे? और यदि मुखबिरी करेंगे तो पढ़ाएंगे कब?
खैर, मिर्जा गालिब का एक शे’र याद आ रहा है–
तुम उनके वादे का जिक्र उनसे क्यों करो गालिब,
यह क्या, कि तुम कहो, और वो कहें कि याद नहीं।

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।

गाँव के लोग
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