बिहार का राजा हिटलर से कम नहीं है। एक प्रमाण है राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना, जिसमें राजा के आदेश पर विभाग ने राज्य के सभी स्कूली शिक्षकों से शराब पीनेवालों और और बेचनेवालों पर निगरानी रखने को कहा है। यह पहली दफा नहीं है जब स्कूली शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्य सौंपे गए हैं। लेकिन इस बार तो राजा ने हद ही कर दी है। इसको ऐसे समझिए कि बिहार के हर गांव-शहर में शराब उपलब्ध है।
तो दलित और पिछड़ा वर्ग के बच्चों के पास बहुत सारे संकट होते हैं। एक उदाहरण तो मेरे ही संकट हैं। ऐसे में भी दलित और पिछड़े वर्ग के बच्चे पढ़ने का जोखिम उठाते हैं तो उनकी जेहन में सरकारी नौकरी का ही ख्याल रहता है। सरकारी नौकरी भी किस तरह की, यह चिंतनीय सवाल है। होता यह है कि वे किसी भी तरह की नौकरी करने को तैयार हो जाते हैं। ग्रेजुएट बच्चे चपरासी तक की नौकरी करने के लिए लालायित रहते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति रहती है दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों के मामले में। अभी जो रेलवे भर्ती बोर्ड परीक्षाओं को लेकर बिहार के युवाओं में आक्रोश है, उसके पीछे की पृष्ठभूमि कमोबेश यही है।
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नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं ।
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